कौन है आतंकी राजोआना, सीएम बेअंत सिंह की हत्या के आरोप में जिसकी फांसी रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 03, 2023, 03:51 PM IST

Balwant Singh Rajoana (File Photo)

CM Beant Singh Murder Case: साल 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की आत्मघाती हमले में बम से उड़ाकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में बलवंत सिंह राजोआना को फांसी की सजा मिली थी.

डीएनए हिंदी: Punjab News- पंजाब में लगातार उठ रही मांग को ठुकराते हुए सु्प्रीम कोर्ट ने बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका ठुकरा दी है. राजोआना 27 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह (CM Beant Singh Murder Case) की आत्मघाती हमले में हत्या करने का आरोपी है. उसे करीब 15 साल पहले फांसी की सजा सुनाई गई थी. उसने अपनी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी, जिस पर बुधवार को सुनवाई हुई.  जस्टिस बीआर गवई, जस्टिव विक्रम नाथ और जस्टिव संजय करोल की बेंच ने याचिका को ठुकराते हुए केंद्र सरकार को जल्द से जल्द राजोआना की दया याचिका पर जल्द फैसला लेने का निर्देश दिया है. इस फैसले के बाद पंजाब में तनाव का माहौल बनने की संभावना है, क्योंकि राजोआना को खालिस्तान आंदोलन से जुड़ा हुआ माना जाता है और एक राजनीतिक दल भी उसकी फांसी को टालने की मांग कर रहा था.

पहले जान लेते हैं कौन था बलवंत सिंह राजोआना

बलवंत सिंह लुधियाना जिले के राजोआना कलां गांव का निवासी है. बलवंत सिंह खालिस्तान आंदोलन से हमदर्दी रखता था. साल 1987 में वह पंजाब पुलिस में कॉन्सटेबल के तौर पर भर्ती हुआ था. पंजाब पुलिस की तरफ से आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर उसने मानवाधिकार हनन का शोर मचाया था. बेअंत सिंह की हत्या के लिए उसने ही दिलावर सिंह के शरीर पर बम बांधकर उसे सुसाइड बॉम्बर बनाया था. दिलावर के हत्या नहीं कर पाने पर बलवंत प्लान-बी के तौर पर अपने शरीर पर भी बम बांधकर मौके पर मौजूद था. बलवंत के संबंध आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल के साथ होने के सबूत भी पुलिस को मिले थे.

पहली बार किसी मौजूदा मुख्यमंत्री की हुई थी हत्या

पंजाब में 80 के दशक में खालिस्तानी उग्रवाद बेहद हिंसक रहा था, लेकिन 90 के दशक में इसे मिटाने का श्रेय तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल की जोड़ी को ही दिया जाता है. इसके चलते इन दोनों से खालिस्तानी उग्रवादियों से बेहद नाराज रहे थे. इसी नाराजगी के दौरान 31 अगस्त, 1995 को मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की कार को खालिस्तानी उग्रवादियों ने आत्मघाती हमला कर मानव बम से उड़ा दिया था. बेअंत सिंह के साथ इस हमले में कुल 16 लोग मारे गए थे. भारतीय इतिहास में किसी मौजूदा मुख्यमंत्री की हत्या का यह पहला मामला था. इस हमले की साजिश रचने के आरोप में बलवंत सिंह राजोआना को गिरफ्तार किया गया था.

2007 में मिली थी फांसी की सजा

राजोआना के खिलाफ बेअंत सिंह की हत्या का मुकदमा चलाया गया था. जुलाई, 2007 में सेशन कोर्ट ने राजोआना को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. इसके बाद साल 2010 में पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने भी राजोआना की याचिका खारिज करते हुए सजा को बरकरार रखा था. साल 2012 में राजोआना की तरफ से दया याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें फांसी की सजा को उम्र कैद में बदलने की गुहार लगाई गई थी. इस याचिका पर 11 साल बाद भी केंद्र सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है.

27 साल जेल में रहने के आधार पर मांगी थी रिहाई

राजोआना की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दया याचिका दाखिल की थी. मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया था कि राजोआना पिछले 27 साल से जेल में बंद है और उसकी उम्र अब 56 साल हो चुकी है. उसकी दया याचिका 11 साल से लंबित है. इतने लंबे समय तक दया याचिका लंबित रखना उसके मूल अधिकारों का हनन है, इसलिए कोर्ट को उसकी तत्काल रिहाई का आदेश देना चाहिए.

केंद्र ने किया था रिहाई का विरोध

केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की दया याचिका पर जवाब मांगा था. इस पर केंद्र सरकार ने एफिडेविट के जरिये राजोआना की रिहाई से पंजाब में दोबारा कानून व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा जताया था. इस पर राजोआना के वकील ने दया याचिका पर और ज्यादा इंतजार नहीं करने की बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट से फैसला मांगा था. उन्होंने राजोआना को इतने समय तक जेल में रहने के चलते पैरोल पर रिहाई देने की भी मांग की थी और दया याचिका को लंबित रखने के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने का आग्रह किया था. 

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