गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल बिना चुनाव लड़े ही निर्विरोध सांसद निर्वाचित हो गए. कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी का नामांकन रद्द होने के बाद बाकी बचे 8 प्रत्याशियों ने भी अपना नामांकन वापिस ले लिया. चुनाव आयोग ने सोमवार को उन्हें जीत का सर्टिफिकेट दिया. इस जीत को लेकर सियासी घमासान शुरू हो गया है. कांग्रेस इसे तानाशाही बता रही है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि तानाशाह की असली 'सूरत' एक बार फिर देश के सामने आ गई. जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है. मैं फिर कहना चाहता हूं कि यह चुनाव देश बचाने का है, संविधान की रक्षा करने का है.' राहुल गांधी भले ही इस मुद्दे पर बीजेपी को घेर रहे हों, लेकिन असलियत में कांग्रेस से चूक हुई है.
दरअसल, गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होना है. जिसके लिए 19 अप्रैल को नामांकन दाखिल किया गया था. नामांकन वापस लेने की तारीख आज यानी 22 अप्रैल थी. सूरत लोकसभा सीट से बीजेपी और कांग्रेस समेत कुल 11 प्रत्याशियों ने अपना पर्चा भरा था. इनमें बीजेपी के मुकेश दलाल, कांग्रेस के निलेश कुंभानी, बसपा से प्यारेलाल भारती समेत अन्य उम्मीदवार मैदान में थे.
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कांग्रेस उम्मीदवार का क्यों हुआ नामांकन रद्द?
निलेश कुंभानी को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने गठबंधन का उम्मीदवार बनाया था. लेकिन उनके नामांकन में कमी होने की वजह से जिला रिटर्निंग अधिकारी ने कुंभानी की दावेदारी रद्द कर दी. चुनाव अधिकारी ने निलेश कुंभानी को तीन प्रस्तावकों को हस्ताक्षर करने के लिए बुलाया था. कुंभानी ने अपने फॉर्म में बहनोई, भांजे और भागीदार के हस्ताक्षर होने का दावा किया था, लेकिन जब चुनाव अधिकारी ने इन प्रस्तावकों को साइन करने के लिए बुलाया तो एक भी पेश नहीं हुआ.
बीजेपी की तरफ से शिकायत की गई कि कांग्रेस कैंडिडेट निलेश कुंभानी ने अपने फॉर्म में फर्जी प्रस्तावकों के हस्ताक्षर कराए हैं. रिटर्निंग अधिकारी ने हलफनामों और सबूतों की समीक्षा करने के बाद कुंभानी के नामांकन में प्रस्तावकों के हस्ताक्षर संदिग्ध माना और पर्चा खारिज कर दिया. कुंभानी की इस गलती की वजह से कांग्रेस को चुनाव होने से पहले ही गंवानी पड़ी.
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