JN.1: क्यों बार-बार होता है Covid के वेरिएंट में म्युटेशन, कितने खतरनाक हैं नए वेरिएंट?

Written By अभिषेक शुक्ल | Updated: Dec 20, 2023, 03:02 PM IST

JN.1 के मामले देशभर में बढ़ रहे हैं. 

कोविड-19 के सब वेरिएंट JN.1 के मामले दुनियाभर में तेजी से फैल रहे हैं. आइए जानते हैं क्यों कोविड के स्ट्रेन में बार-बार बदलाव होता है.

डीएनए हिंदी: कोरोना वायरस (Coronavirus) अक्सर नए वेरिएंट में दुनिया के सामने आता है. कोविड-19 से लेकर ओमिक्रोन तक, ऐसे कई वेरिएंट हैं जिन पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ शोध करते हैं. दिसंबर 2019 से लेकर अब तक, कोविड के कई म्युटेशन सामने आ चुके हैं. लाखों लोग कोविड महामारी में मारे जा चुके हैं, करोड़ों लोग संक्रमित हो चुके हैं.  SARS-CoV-2, हर बार कैसे म्युटेट हो जाता है, इसका रूप बदलता है, हर कोई यह जानना चाहता है. वजह है कि अब कोविड JN.1 के रूप में दुनिया के सामने आ गया है. यह वेरिएंट BA.2.86 का ही एक स्ट्रेन है.

कोविड वेरिएंट में म्युटेशन होता रहता है. यह प्राकृतिक प्रक्रिया है. इसकी वजह से वेरिएंट खतरनाक नहीं होता है, न ही वैक्सीन के असर को म्युटेशन कम करने में सक्षम होता है. बस कोविड के किसी स्ट्रेन में हल्का सा बदलाव उसे कम या ज्यादा संक्रामक बना सकता है. अब तक कोविड के कई वेरिएंट सामने आ चुके हैं.

कोविड के ओमिक्रोन, डेल्टा और अल्फा वेरिएंट के असर को दुनिया देख चुकी है. डेल्टा वेरिएंट ज्यादातर देशों में मौत की वजह बना था. यह अति संक्रामक था. ओमिक्रोन के आते-आते कोविड कमजोर हो गया था. लोगों की हर्ड इम्युनिटी बढ़ गई थी. ज्यादातर लोगों का टीकाकरण हो चुका था. यही वजह है कि यह वेरिएंट कम जानलेवा साबित हुआ. आइए जानते हैं कोविड क्यों बार-बार अपना रूप बदलता है.

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क्यों बार-बार कोविड में होता है म्युटेशन
हर वायरस का स्वरूप बदलता रहता है. उनके जेनेटिक कोड्स में होने वाले बदलावों को म्युटेशन कहते हैं. वायरस में होने वाला म्युटेशन के प्रभावों के बारे में कुछ भी तत्काल नहीं कहा जा सकता है. न ही इसका तत्कालिक कोई असर नजर आता है. कोई भी वायरस, जैसे कोविड जिंदा रहने के लिए इंसान पर ही निर्भर होता है. वे क्लोन बनाने के लिए मेजबान पर निर्भर होते हैं. जब वायरस किसी शरीर को संक्रमित करता है, तब अपने राइबोज़ न्यूक्लिक एसिड (RNA) को कोशिकाओं में फैलाने के लिए यह शरीर से जुड़ जाता है. मेजबान की अपनी कोशिकाएं आनुवंशिक कोड को रीड करती हैं और उसका क्लोन तैयार करती हैं, जिससे ज्यादा पैदा होता है. यहीं से नया वायरस संक्रमित करने के लिए दूसरे शरीर में जाता है तो थोड़ा सा बदलाव नजर आता है. 

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जब वायरस का जेनेटिक कोड, प्रोटीन में ट्रांसलेट होता है, तभी इसका कोड बदल जाता है. इसी कोड में बदलाव को म्युटेशन कहते हैं. मानव कोशिकाएं डीएनए पर आधारित होती हैं. DNA, RNA की तुलना मे ज्यादा मजबूत होता है, उसमें खुद को ठीक करने की क्षमता होती है. अगर इसके आनुवांशिक कोड में बदलाव होता है, यानी म्युटेशन होता है, तो वह पहले की स्थिति में आ जाता है. आरएनए के साथ ऐसा नहीं है. आरएनए के प्रोटीन कोडिंग में बदलाव होता रहता है. यह प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है. ऐसे में SARS-CoV-2 में होने वाले बदलाव बेहद सामान्य हैं.

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क्या म्युटेशन के बाद क्या खतरनाक हो जाता है वायरस
आयाशा हेल्थ क्लीनिक के वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर शाहिद अख्तर के मुताबिक वायरस में होने वाले ज्यादातर म्युटेशन का कोई विध्वंसक परिणाम नहीं होता है. किसी एक समायोजन से प्रोटीन का विन्यास नही्ं बदल जाता है. ऐसे परिवर्तनों को फ्लो कहते हैं. आमतौर पर प्रोटीन की संरचना में थोड़ा सा बदलाव होता है, तो उसका असर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पर पड़ता है. अगर ऐसे बदलाव होते हैं तो उन्हें शिफ्ट कहा जाता है. अब तक कोविड में होने वाले बदलावों से यह साबित नहीं हुआ है कि इससे वैक्सीन पर कोई विपरीत असर पड़ता हो. कोविड वैक्सीन हर म्युटेशन पर कारगर है. कोविड संक्रमण के किसी भी म्युटेशन से बचने के लिए सबसे पहले टीकाकरण कराना चाहिए.

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