जानिए क्या है First और Second Copy का मतलब, कैसे कन्फ्यूज करते हैं दुकानदार

Written By कृष्णा बाजपेई | Updated: Dec 11, 2021, 06:26 PM IST

बाजार में Ray Ban के चश्मे से लेकर iPhone और मनीष मल्होत्रा के डिजाइनर कपड़े तक फर्स्ट और सेकेंड कॉपी में मिल रहे हैं.

डीएनए हिंदीः  नामी ब्रांड्स के कपड़े, जूते या चश्मे पहनना सभी की ख्वाहिश होती है लेकिन अक्सर अधिक कीमत के चक्कर में लोग इसे नहीं ले पाते हैं. ऐसे में दुकानदार उन्हें सस्ते में वैसी ही चीजें दिखाने की बात करता है. लोग ये चीजें आसानी से खरीद लेते हैं. वहीं कई बार दुकानदार लोगों को नामी ब्रांड का कॉपी बताकर अपने प्रोडक्ट्स बेचते हैं. अब कई बार लोग इस टर्म में कन्फ्यूज हो जाते हैं कि फर्स्ट कॉपी या सेकेंड कॉपी क्या होता है. अगर आपको भी ऐसा कोई कन्फ्यूजन होता है तो हम आज आपका ये कन्फ्यूजन दूर कर देंगे. 

क्या होता है कॉपी 

किसी भी बड़े ब्रांड के प्रोडक्ट्स की लोकप्रियता अधिक होती है. लोग इन्हें खूब पसंद करते हैं किन्तु मध्यम या निचले तबके के व्यक्ति इन्हें नहीं खरीद पाते हैं. इस वर्ग को साधने की कोशिश में ही बड़े ब्रांड्स के प्रोडक्ट्स की तरह ही हूबहू सस्ते प्रोडक्ट बनाए जाते हैं. इन्हें ही कॉपी कहा जाता है. लोग इन्हें अपनी जेब के अनुसार खरीद लेते है. वहीं कॉपी का बिजनेस इतने तक ही सीमित नहीं है. इसमें फर्स्ट कॉपी और सेंकेड कॉपी नाम का भी एक विशेष टर्म होता है जो जानना आपके लिए आवश्यक है. 

फर्स्ट कॉपी प्रोडक्ट्स 

'फर्स्ट कॉपी' प्रोडक्ट्स की बात करें तो ये किसी बड़े ब्रांड की नकल करके बनाए जाते हैं. इन्हे देखकर असली और इनमें अंतर बता पाना अतयंत मुश्किल होता है. इन प्रोडक्ट की पैकिंग से लेकर स्टिकर तक हर चीज का ख्याल रखा जाता है. ये ठीक वैसे ही चिपकाए जाते हैं जैसे असल प्रोडक्ट्स में लगे होते हैं. ये किसी प्रकार की ब्रांडिंग या प्रमोशन का सहरा नहीं लेते है. इसके विपरीत इनके साथ सबसे नकारात्मक बिन्दु ये होता है कि ये इनकी ड्यूरेबिलिटी कम ही रहती है. इनके आसानी से बिकने की वजह मात्र नामी ब्रांड की तरह दिखना ही है. 

ये है सेकेंड कॉपी का खेल

फर्स्ट कॉपी के प्रोडक्ट्स को यूजर्स काफी समय तक प्रयोग कर सकते हैं. उन्हें प्रोडक्ट्स के साथ किसी तरह की परेशानी नहीं आती है. इसके विपरीत अब बात करते है 'सेकंड कॉपी' की. इन सेकेंड कॉपी प्रोडक्ट्स के साथ सर्वाधिक झोल होता है. ये भी किसी नामी प्रोडक्ट की नकल ही होते हैं किन्तु इनकी क्वालिटी बेहद खराब होती है. ये दूर से दिखने में तो नामी कंपनी के ओरिजिनल प्रोडक्ट्स लगते हैं किन्तु हाथ में लेते ही सारा भेद खुल जाता है. केवल प्रोडक्ट्स ही खराब नहीं होते हैं अपितु प्रोडक्ट की पैकेजिंग के साथ भी समझौता किया जाता है.

ये नामी ब्रांड्स की फर्स्ट कॉपी एवं सेकेंड कॉपी का वो खेल है जिसमें मुख्यतः फर्स्ट कॉपी के प्रोडक्ट्स जीत जाते हैं जबकि सेकेंड कॉपी के प्रोडक्ट्स केवल दिखावे के होते हैं.