डीएनए हिंदी: दुनिया भर में सेमीकंडक्टर चिप की कमी से कार कंपनियों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. इस वजह से कार कंपनियों को कार बनाने में मुश्किल आ रही है. इस लिस्ट में तमाम बड़ी कंपनियां शामिल हो गई हैं जैसे - टेस्ला, जनरल मोटर्स, हुंडई, महिंद्रा और मारुती. यहां हम आपको जानकारी दे रहे हैं कि क्यों सेमीकंडक्टर चिप में कमी आ रही है और भारत सरकार इसके लिए क्या कर रही है.
भारत में नहीं बनती हैं सेमीकंडक्टर चिप
भारत में कोई भी कंपनी अभी सेमीकंडक्टर चिप नहीं बनाती है. देश इस मामले में पूरी तरह से आयात पर निर्भर है. ज्यादातर चिप भारत के कार निर्माताओं को मलेशिया (Malaysia) से सप्लाई किए जाते हैं, जहां इस समय चिप का उत्पादन कोविड की वजह से बाधित है.
सेमीकंडक्टर चिप में क्यों कमी आ रही?
माना जा रहा है कि चिप संकट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कोरोना वायरस है. कोविड से जुड़े हुए प्रतिबंधों की वजह से इसका उत्पाद प्रभावित हुआ है. इस वजह से पिछले एक साल से इसके उत्पादन में कमी आई है जिससे इसकी सप्लाई डिमांड की तुलना में काफी कम हो गई है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि पूरी दुनिया में बहुत ही कम कंपनियां सेमीकंडक्टर चिप बनाती हैं. माना जा रहा है कि कंपनियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के बावजूद साल 2023 तक इसकी कमी बनी रहेगी. जाहिर है इसका असर कार निर्माता कंपनियों के निर्माण पर भी पड़ेगा.
क्यों जरूरी है सेमीकंडक्टर चिप
आजकल दुनिया में जितनी भी गाड़ियां बन रही हैं उन सभी के लिए पावर स्टीयरिंग, ब्रेक सेंसर, एंटरटेनमेंट सिस्टम, एयरबैग और पार्किंग कैमरों में सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल होता है. आमतौर पर एक गाड़ी में 1,000 से ज्यादा सेमीकंडक्टर चिप्स लगाए जाते हैं. ये चिप कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पर आधारित होते हैं और आपकी गाड़ी के डेटा को भी प्रोसेस करते हैं. सेमीकंडक्टर चिप्स के बिना आधुनिक गाड़ियों का निर्माण लगभग असंभव है. सेमीकंडक्टर चिप्स का इस्तेमाल न सिर्फ गाड़ियों में होता है बल्कि इसका इस्तेमाल हर उस चीज में होता है जो इंटरनेट से जुड़ा हुआ होता है, उदाहरण के लिए मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी और अन्य घरेलू उपकरण. इसलिए उनकी मैन्युफैक्चरिंग भी इसी कमी से प्रभावित हुई है. Apple को इस साल iPhone 13 की 90 मिलियन यूनिट का उत्पादन करना था लेकिन चिप की कमी के कारण केवल 80 मिलियन यूनिट का ही उत्पादन हुआ है.
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भारत में कैसे दूर होगा चिप संकट?
कंपनियों के मुताबिक चिप का संकट साल 2022 तक बना रहेगा और यह समस्या 2023 तक सुलझ सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक नए वाहनों की समय पर डिलीवरी नहीं होने से पुराने गाड़ियों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में इस साल पुराने गाड़ियों की बिक्री नए गाड़ियों के मुकाबले डेढ़ गुना रही है, जो 2025 तक दोगुनी हो सकती है. इसके अलावा इस संकट में अवसर की तलाश में केंद्र सरकार ने 76,000 करोड़ रुपये की नई योजना को मंजूरी दे दी है. इसके तहत आने वाले छह वर्षों में सेमीकंडक्टर चिप के उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया है.
सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन फैसिलिटी बनाने की कोशिश
वर्ल्ड क्लास सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन फैसिलिटी बनाने की दिशा में भारत मजबूती से कदम बढ़ा रहा है. सरकार की योजना शुरुआत में ताइवान के हिंशु या सिंगापुर के वुडलैंड वेफर फैब पार्क जैसा एक मेगा सेमीकंडक्टर क्लस्टर बनाने की है. सरकार का ये कदम इस मामले में साहसिक कहा जा सकता है कि दुनिया में फिलहाल सेमीकंडक्टर की डिमांड के मुताबिक उत्पादन क्षमता मौजूद है. केवल कोरोना की वजह से उत्पादन पर असर पड़ने से इसकी सप्लाई में रुकावट आ गई है. एक साल पहले तक उद्योग जगत के भी एक बड़े हिस्से का मानना था कि भारत को न्यू एज फेब्रिकेशन के लिए जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है. इसकी वजह है कि इस पर भारत को 4 से 5 अरब डॉलर तक खर्च करने पड़ सकते हैं. इसके अलावा सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन फैसिलिटी बनाने की एक कोशिश पहले फेल भी हो चुकी है. हालांकि अब सेमीकंडक्टर चिप की कमी के बाद ज्यादातर देश अपनी सेमीकंडक्टर क्षमता विकसित करने पर ध्यान दे रहे हैं. इसकी वजह है कि आज चिप डिजिटल वर्ल्ड के फाउंडेशन की तरह यूज किया जा रहा है. फिलहाल सेमीकंडक्टर कारोबार पूरी तरह से ताइवान पर निर्भर है.
बोस्टन कंसलटिंग का अनुमान है कि दुनिया में सबसे एडवांस सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग क्षमता में ताइवान की हिस्सेदारी 92 फ़ीसदी तक है. ऐसे में भारत को सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाने के लिए सरकार की शुरु की गई प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव यानी PLI स्कीम गेमचेंजर साबित हो सकती है. इसके बाद दुनिया की बड़ी कंपनियां भारत में कामकाज करना चाहती हैं. सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी में उद्योग जगत के खर्च के बराबर ही भारत सरकार भी खर्च कर रही है. दुनिया के कई देशों ने सेमीकंडक्टर बनाने के लिए इंसेंटिव की शुरुआत की है लेकिन भारत में कंपनियों को शानदार मौके नजर आ रहे हैं. ऐसे में भारत के पास डिजिटल प्रॉडक्ट्स के दौर में सेमीकंडक्टर्स की मांग में होने वाली संभावित बढ़ोतरी का एक बड़ा हिस्सा अपने पाले में करने का शानदार मौका है.
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