DNA TV Show: चांद छूने से अलग है ISRO का ये खास चेहरा, कैसे जुड़ा है आपकी जिंदगी के हर पल से

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Aug 24, 2023, 06:27 PM IST

DNA TV Show 

Chandrayaan-3 Update: इसरो की बदौलत ही देश में टीवी प्रसारण की क्रांति आई तो इस भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के कारण ही आज देश में आने वाले भयावह चक्रवात सैकड़ों जिंदगियां नहीं लील पाते हैं. आज इसरो के इसी चेहरे का डीएनए पेश करती ये रिपोर्ट.

डीएनए हिंदी: DNA TV Show- भारत का चंद्रयान-3 आखिरकार चांद की चौखट पार कर उसके घर में जा पहुंचा है. चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम की सफल लैंडिंग ने पूरी दुनिया में भारत का सीना चौड़ा कर दिया है. गर्व के इस पल का हक भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO का है, जिसकी कामयाबी के तमाम किस्से आपने सुने होंगे. चांद तक पहुंचने के दौरान की कई तस्वीरें देखीं होंगी, लेकिन आज आपको इस एजेंसी की कुछ और तस्वीरें ज़रूर देखनी चाहिए. ये तस्वीरें ISRO का वो असली चेहरा हैं, जो अक्सर Count Downकी आवाज और स्पेसक्राफ्ट के इंजन के शोर के साथ तालियों की गड़गड़ाहट में अक्सर भुला दिया जाता है, तो चलिए इस सफर की शुरुआत इस चेहरे को देखने से करते हैं. 

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पहले इन तीन घटनाओं के बारे में जान लीजिए

  • तारीख थी 8 जून और साल था 1998: गुजरात का कच्छ एक विनाशकारी तूफान का सामना करने वाला था. 165 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से आए उस तूफान ने किसी को संभलने का मौका तक नहीं दिया. एक ही झटके में 10 हज़ार से ज्यादा लोग मौत की गोद में सो गए. सैकड़ों का आज तक पता नहीं चला और लाखों लोग बेघर हो गए.
  • तारीख थी वर्ष 1999 की: एक सुपर साइक्लोन ओडिशा के पारादीप से टकरा चुका था. नतीजा गुजरात जैसा ही रहा. करीब 10 हजार लोगों की जान चली गई, जबकि लाखों लोग तबाह हो गए. सिर्फ दो वर्षों के अंतराल पर आए इन तूफानों ने भारत को ऐसे ज़ख्म दिए, जिन्हें भरनेमें  अर्सा लग गया.
  • अब बात 15 जून 2023 की: गुजरात का कच्छ एक बार फिर एक सुपर साइक्लोन का सामना करने वाला था, लेकिन इस बार बेहतर तैयारियों और संसाधनों के साथ सामना किया गया. तूफान आया और आकर गुजर गया, लेकिन साल 1998 की तुलना में सिर्फ 5 जाने गईं.

24 साल के इस बदलाव का कारण है ISRO

प्राकृतिक आपदाओं से जान गंवाने में इतने बड़े पैमाने पर दिख रहे अंतर के पीछे ISRO के वैज्ञानिक हैं. दरअसल ISRO के earth imaging satellite से मिल रहे Live Updates की वजह से बचाव एजेंसियों को पर्याप्त वक्त मिल गया था और तूफान के तट से टकराने से पहले ही लाखों लोगों को सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचा दिया गया था.

यह पहला मौका नहीं है, जब ISRO ने जिंदगियां बचाने का ऐसा काम किया है. बीते करीब तीन दशकों से ISRO और उसके satellites की बदौलत न जाने कितनी ज़िन्दगियां बचाई गई हैं और न जाने कितने Rescue Missions को अंजाम तक पहुंचाया गया है, क्योंकि ISRO और उसके satellites बिना किसी credit के दिन रात हमारी पहरेदारी में जुटे रहते हैं.

इन 7 पॉइंट्स से जानिए कैसे इसरो हमारे जीवन के हर हिस्से में शामिल है

  1. भारत में Television की शुरुआत 1959 में हो गई थी, लेकिन कार्यक्रमों के नियमित प्रसारण की शुरुआत 1965 में हुई...हालांकि देश की बड़ी आबादी अभी भी टीवी सिग्नलों की पहुंच से दूर थी. हालांकि इसके बाद 80 के दशक में भेजे गए INSAT satellites ने इस क्षेत्र में नई क्रांति ला दी. आज Television की पूरी दुनिया ही सैटेलाइट सिग्नल्स के बूते पर चल रही है.
  2. 1961 में भारत की साक्षरता दर सिर्फ 28 प्रतिशत थी, जो आज आज बढ़कर 77.7 प्रतिशत हो चुकी है. इस छलांग में ISRO का बड़ा योगदान है. इसरो के EDU SATS जैसे सैटैलाइट्स ने distance learning के क्षेत्र में जबरदस्त भूमिका निभाई है.
  3. इसरो की satellites की बदौलत ही भारत अब मानसून का सटीक अनुमान लगा पाता है, जिससे भारत की Agriculture based economy को काफी फायदा होता है.
  4. साल 1969 यानी ISRO के जन्म के वक्त भारत की GDP 44 हजार करोड़ रुपये थी, जो आज बढ़कर 3.75 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है. आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. 
  5. इसी तरह इंटरनेट के बिना आप अपने दिन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. जो इंटरनेट घर बैठे आपको दुनिया के किसी कोने तक पहुंचा देता है और दुनिया की कोई भी चीज आप तक पहुंचा देता है. उस इंटरनेट को भी आप तक इसरो के satellites ही पहुंचाते हैं.
  6. पिछले 5 दशकों में भारत ने हर क्षेत्र में जबरदस्त तरक्की की है और इसमें ISRO का योगदान भुलाया नहीं जा सकता. Distance Learning से लेकर रिमोट इलाक़ों में मेडिकल केयर पहुंचाने तक ये सैटेलाइट्स अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं.
  7. यही नहीं आज Space Technology की दुनिया में भारत महाशक्ति है. ISRO की गिनती दुनिया की टॉप Space Agencies में होती है.

अर्थ इमेजिंग का महारथी है अब ISRO

इसरो की कामयाबी हर किसी की हैरत में डाल सकती है. अर्थ इमेजिंग में तो इसरो को जैसे महारथ हासिल है. अंतरिक्ष में भेजे गए कार्टोसेट सीरीज के satellite तो ऐसे हैं, जो दुनिया में किसी भी जगह की सटीक Image दिखा सकते हैं. ये इतने सटीक हैं कि इनसे ज़मीन में एक मीटर के दायरे पर मौजूद चीज भी साफ साफ देखी जा सकती है. पिछले 50 वर्षों में ISRO ने Black & White युग से HD तस्वीरों तक का सफर तय कर लिया है. 

पहले इन्कोस्पार, फिर इसरो, ऐसे चला भारत का अंतरिक्ष सफर

कभी साइकिल और बैलगाड़ी से रॉकेट ढोने वाला ISRO किस तरह आज चांद की चौखट पर मुस्कुरा रहा है, लेकिन उसके जन्म की कहानी बड़ी अनूठी है. 20 जुलाई 1969 को अमेरिका के नीलआर्म स्ट्रांग चांद पर क़दम रख चुके थे. नील और बज एल्ड्रिन की चांद पर चहलकदमी करतीं तस्वीरें करोड़ों लोगों ने टीवी पर LIVE देखी थीं, लेकिन उस वक़्त भारत में कुछ आंखें ख़्वाब देख रही थीं. चांद पर तिरंगा लहराने के ख़्वाब. 

विक्रम साराभाई और होमी जहांगीर भाभा जैसे साइंटिस्ट अमेरिका की तरह भारत के अपने स्पेस कार्यक्रम के ख़्वाब बुन रहे थे. साराभाई की कोशिशें रंग लाईं और वर्ष 1962 में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च यानी इन्कोस्पार का गठन हुआ. विक्रम साराभाई इसके मुखिया थे. इन्कोस्पार के जन्म लेने के एक वर्ष के अंदर ही वर्ष 1963 को भारत ने अपना पहला रॉकेट लॉन्च कर दिया. ये एक नाइक-अपाचे रॉकेट था, जिसे अमेरिका की मदद से तैयार किया गया था. उस रॉकेट के पार्ट्स बैलगाड़ी और साइकिल पर लाद कर लॉन्च साइट तक पहुंचाए गए थे. 

इसके बाद 15 अगस्त 1969 को इन्कोस्पार का विस्तार हुआ और इसरो अस्तित्व में आया यानी नील आर्म स्ट्रांग के चांद पर पहुंचने के भी क़रीब 45 दिन बाद. जाहिर है इस रेस में हम अमेरिका से काफ़ी पीछे थे. अब अमेरिका हमसे पीछे है. क्योंकि भारत अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों को पीछे छोड़कर चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन चुका है. यही नहीं भारत अगले वर्ष मिशन गगनयान के ज़रिए इंसान को भी अंतरिक्ष में भेजेगा. हालांकि अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय स्क्नाड्रन लीडर, राकेश शर्मा थे, लेकिन वो रूस की मदद से 3 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में गए थे. उस वक़्त उन्होने अंतरिक्ष से जो कुछ कहा था. वो आज भी हर हिंदुस्तानी को गर्व से भर देता है.

विदेशी मदद लेने से दूसरों को मदद देने तक का सफर

  • कभी साइकिल और बैलगाड़ी से रॉकेट ढोने वाला इसरो आज खुद संचार उपग्रह बना रहा है. अर्थ इमेजिंग में तो इसरो को जैसे महारथ ही हासिल है. हालांकि इसकी शुरुआत विदेशी मदद से हुई थी.
  • 19 अप्रैल 1975 को इसरो ने रूस की मदद से अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च किया. ठीक चार वर्ष बाद इसके दूसरा सैटेलाइट भास्कर-1 लॉन्च किया था.
  • भास्कर-1 भारत का पहला रिमोट सेंसिंग Satellite था, जिसका इस्तेमाल धरती और वायुमंडल में हो रहे बदलावों की निगरानी के लिए किया गया था.
  • तब तक भारत के पास सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए अपना ख़ुद का रॉकेट नहीं था. हालांकि वर्ष 1980 में भारत ने अपना अपना रॉकेट SLV यानी सैटलाइट लॉन्च वीकल तैयार कर लिया. ये बड़ी कामयाबी थी.
  • 1980 में ही भारत ने SLV-3 की मदद से रोहणी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया. रोहणी भारत का पहला सैटेलाइट था, जिसे भारत में ही लॉन्च किया गया था.
  • इसके बाद वर्ष 1982 और 1983 में INSAT-1 और INSAT-2 को लॉन्च किया गया. इन दोनों सैटेलाइट्स ने टीवी, रेडियो और टेली कम्युनिकेशन के क्षेत्र में एक नई क्रांति को जन्म दिया.
  • वर्ष 2013 में इसरो ने भारतीय सेनाओं के लिए एक बेहद ख़ास सैटेलाइट GSAT-7 को भी लॉन्च किया. 
  • साल 2017 में भारत ने एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था. इन सैटेलाइट्स को PSLV यानी
  • पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के जरिए अंतरिक्ष में पहुंचाया गया था.
  • PSLV इसरो का पहला ऑपरेशनल लॉन्च व्हीकल है, जो वर्ष 2021 तक 50 से भी ज़्यादा कामयाब उड़ाने भर चुका है.
  • भारत ने चांद और मंगल तक पहुंचने का सपना भी pslv के भरोसे ही देखा था, जिसने इस भरोसे को कभी टूटने भी नहीं दिया.
  • इसरो ने पहली बार वर्ष 2008 में चंद्रयान-1 के जरिये चांद का रुख किया था. इस मिशन ने पहली बार चांद में पानी का पता लगाया था.
  • चांद के बाद बारी थी मंगल के रहस्यों से पर्दा उठाने की. इसरो ने 5 नवंबर 2013 को श्रीहरिकोटा से मंगलयान-1 को लॉन्च किया.
  • पहले ही प्रयास में मंगल तक पहुंच कर भारत ने एक बार फिर नया रिकॉर्ड बना दिया.
  • इससे पहले सिर्फ़ अमेरिका और रूस ही मंगल तक पहुंच पाए थे, हालांकि उन्हे ये कामयाबी कई असफलताओं के बाद मिली थी.
  • मिशन मंगलयान की कुल लागत सिर्फ़ 450 करोड़ थी, और ये ग्रैविटी जैसी किसी हॉलीवुड फिल्म के बजट से भी कम थी.
  • GSLV यानी जियोसिंक्रोनस सैटलाइट लॉन्च वीकल ISRO का एक और शानदार आविष्कार है.
  • GSLV रॉकेट PSLV की तुलना में ज्यादा पेलोड ले जा सकता है और सैटेलाइट्स को जियो स्टेशनरी ऑर्बिट में भी स्थापित कर सकता है.
  • हालांकि GSLV का सफर भी आसान नहीं था. इसके लिए आवश्यक क्रॉयोजेनिक तकनीक सिर्फ़ अमेरिका, रूस और जापान के पास ही थी. 
  • अमेरिका के दबाव की वजह से बाकी कोई भी देश भारत को क्रॉयोजेनिक टेक्नीक देने के लिए तैयार नहीं हुआ.
  • भारत ने वर्ष 1994 में अपना क्रायोजेनिक इंजन बनाना शुरू किया और वर्ष 2014 में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस GSLV ने पहली कामयाब उड़ान भरी.
  • आज इसी क्रॉयोजेनिक इंजन की मदद से लॉन्च किया गए चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के साउथ पोल में सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रच दिया है.

1962 में जमीन पर देखा ख्वाब 2023 में चांद की चौखट पर पहुंचा

वर्ष 1962 में ज़मीन पर देखा गया इतिहास रचने का ख़्वाब आज चांद की चौखट पर हकीकत बनकर मुस्कुरा रहा है, लेकिन मुस्कान और ये मुक़ाम दशकों की मेहनत, जुनून और जज़्बे का हासिल है. इस दिन के लिए हमें डॉ. होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई, सतीश धवन, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे कई रियल हीरोज का शुक्रगुज़ार होना चाहिए. ये यही वो लोग हैं, जिन्होने न सिर्फ़ ख़ुद ख्वाब देखे, बल्कि अनगिनत आंखों में सपनों की पूरी फसल बो गए.

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