2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 7 चरणों में मतदान हो चुका है. 4 जून को इसका फैसला हो जाएगा कि सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई कौन खाएगा. इससे पहले अलग-अलग सर्वे एजेंसियों और मीडिया समूह की ओर से जारी Exit Polls हमारे सामने हैं. इन एग्जिट पोल्स को देखें तो कहा यही जाएगा कि सरकार कोई भी बनाए लेकिन जो कुछ तमाम जटिलताओं के बाद INDIA ब्लॉक ने किया है वो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. सवाल होगा कैसे? तो आइये उसे समझने का प्रयास करते हैं.
अगस्त 2022 में नीतीश कुमार के एक फैसले ने बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों को न केवल चिंतन का मौका दिया. बल्कि मीडिया के गलियारों में भी चर्चा तेज हो गई कि 2024 के मद्देनजर कुछ बहुत बड़ा करने वाले हैं. तब नीतीश ने NDA से अपने रास्ते अलग कर लिया और महागठबंधन में शामिल होकर UPA से हाथ मिला लिया था.
दो सालों तक विपक्ष को एकजुट करने की ये नीतीश की शिद्दत ही थी कि INDIA ब्लॉक (ये नाम ममता बनर्जी का सुझाया था जिसकी वर्तमान में कमान राहुल गांधी के हाथों में है) अस्तित्व में आया जो अब भी हमारे सामने है.
भले ही आज कोई क्रेडिट न दे रहा हो. या फिर ये कहें कि भले ही आज India ब्लॉक से दूध में पड़ी मक्खी की तरह नीतीश को अलग कर दिया गया हो. लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि INDIA ब्लॉक के गठन से लेकर उसकी मौजूदा स्थिति तक आज जो कुछ भी हमारे सामने है वो नीतीश कुमार की ही बदौलत है.
नीतीश आज इस ब्लॉक का हिस्सा नहीं हैं. मगर सोच के देखिये यदि नीतीश होते तो क्या आज INDIA ब्लॉक इसी स्थिति में होता? इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी आज INDIA ब्लॉक से दूर हैं. यदि वो साथ हो लेतीं तो आज ब्लॉक की स्थिति कुछ अलग होती. यक़ीनन दोनों के साथ आने के बाद इंडिया ब्लॉक का पलड़ा एनडीए के मुकाबले भारी रहता.
क्योंकि नीतीश INDIA ब्लॉक के फाउंडिंग मेंबर थे, तो यदि आज वो होते तो इंडियन पॉलिटिक्स में न केवल हमें विपक्ष का प्रभाव देखने को मिलता. बल्कि लाजमी था कि इससे नीतीश का कद भी बढ़ता.
ध्यान रहे बार-बार नीतीश ने कांग्रेस को भविष्य के खतरों के लिए आगाह किया था लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया. आज भले ही कांग्रेस विपक्ष का पर्याय बनी हो लेकिन हम फिर उसी बात को दोहराएंगे कि यदि कांग्रेस नीतीश को खुश कर पाती तो आज INDIA ब्लॉक की सूरत कुछ अलग होती.
भले ही आज तेजस्वी यादव नीतीश का उपहास करें, राहुल गांधी उन्हें ख़ारिज करने की कोशिश करें लेकिन भारत की राजनीति को समझने वाला हर एक शख्स इस बात को जानता है कि वर्तमान में विपक्ष में शायद ही कोई ऐसा हो जो नीतीश की स्टाइल में भाजपा को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर करे.
गौरतलब है कि चाहे वो राहुल गांधी हों या फिर तेजस्वी यादव और अखिलेश 2024 के लोक सभा चुनाव में जिस जिस ने पीएम मोदी पर हमला किया, ज्यादातर मामलों में हमें दांव उल्टा पड़ता हुआ नजर आया. (कांग्रेस ने मोदी के परिवार को मुद्दा बनाया बाद में पूरी भाजपा और प्रधानमंत्री के समर्थक मोदी का परिवार हो गए. )
इन तमाम बातों के बाद एक सवाल ये भी हमारे सामने आता है कि यदि INDIA ब्लॉक न होता तो कांग्रेस या फिर राहुल गांधी भाजपा और एनडीए का मुकाबला कर पाते? जवाब के लिए हमें 2019 के लोकसभा चुनावों का अवलोकन करना होगा.
2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनावों के परिणाम ने जाहिर कर दिया था कि देश से कांग्रेस पार्टी अपना जनाधार खो चुकी है. ऐसे में 24 के चुनावों के लिए जिस तरह INDIA ब्लॉक बना वो कांग्रेस पार्टी के लिए एक संजीवनी की तरह देखा गया.
कोई कुछ कह लें लेकिन INDIA ब्लॉक के अस्तित्व में आने और बने रहने का एक फायदा ये हुआ कि किसी थर्ड फ्रंट को हमने नहीं देखा (हालांकि इसके प्रयास हुए लेकिन थर्ड फ्रंट के पुरोधाओं को कोई विशेष सफलता नहीं मिली) कह सकते हैं कि भले ही अलग अलग एग्जिट पोल्स में INDIA ब्लॉक की सीटें कम दिख रही हों लेकिन न केवल ये आया बल्कि टिका रहा वो अपने आप में बड़ी बात है.
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