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Haryana Assembly Election Results 2024: वोट शेयर बढ़ाकर भी कैसे पिछड़ गई कांग्रेस, 5 पॉइंट्स में समझें पूरी बात

Haryana Assembly Election Results 2024: हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान माहौल पूरी तरह भाजपा के खिलाफ माना जा रहा था. एग्जिट पोल में भी सत्ता विरोधी रिजल्ट का अनुमान सामने आया था यानी हर तरीके से माहौल कांग्रेस के फेवर में था, लेकिन EVM खुलते ही सब बदल गया.

Haryana Assembly Election Results 2024: वोट शेयर बढ़ाकर भी कैसे पिछड़ गई कांग्रेस, 5 पॉइंट्स में समझें पूरी बात

Haryana Assembly Election Results 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Vidhan Sabha Chunav 2024) का परिणाम अब लगभग तय हो चुका है. सभी एग्जिट पोल फेल साबित हुए हैं और कांग्रेस को लगातार तीसरी बार सत्ता से बाहर रहने का आदेश जनता की तरफ से मिला है. मतगणना अपने आखिरी दौर में पहुंच चुकी है. भाजपा 50 के आसपास सीट पर जीतती दिख रही है, जबकि कांग्रेस 35 सीट के आसपास सिमट रही है. इस रिजल्ट को बड़े आश्चर्य के साथ देखा जा रहा है, क्योंकि भाजपा को जहां जनता का समर्थन मिला है, वहीं कांग्रेस को भी मतदाताओं ने लगभग भाजपा के करीब ही खड़ा कर रखा है. कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 (Haryana Assembly Elections 2019) के मुकाबले अपने वोट शेयर में भारी बढ़ोतरी की है. चुनाव प्रचार के दौरान दिखाई दिया जनता का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में वोट शेयर के तौर पर जमकर बरसा है. 

जन समर्थन के बावजूद कांग्रेस सीट जीतने में कैसे पिछड़ गई, चलिए 5 पॉइंट्स में इसे समझने की कोशिश करते हैं.

1. पहले जान लीजिए कितना बढ़ा 2019 के मुकाबले कांग्रेस का जनसमर्थन

कांग्रेस को साल 2019 के विधानसभा चुनावों में भी जीत का दावेदार माना गया था. चुनावी सर्वे उस समय भी भाजपा नेतृत्व वाली राज्य सरकार के विरोधी रुख दिखा रहे थे. इसके बावजूद जब रिजल्ट सामने आया तो 2014 के मुकाबले सीटें बढ़ाने के बावजूद कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में नहीं दिखी. कांग्रेस ने 31 सीट हासिल की और उसे 28.08% जनता ने अपना समर्थन दिया था. इसके उलट भाजपा ने 36.49% वोट के साथ 40 सीट अपने नाम की थी. इस बार कांग्रेस को 39.05% वोट मिला है, लेकिन उसे 35 सीटों पर जीत मिलती हुई दिख रही है. इसके उलट भाजपा ने भी अपना वोट शेयर बढ़ाया है, लेकिन यह बढ़त ज्यादा बड़ी नहीं रही है. भाजपा को 39.89% वोट मिले हैं, जबकि उसके खाते में करीब 50 सीट आती दिख रही हैं.


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2. कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा है बागियों से

कांग्रेस को भाजपा के बराबर वोट मिलने के बावजूद हार का सामना करना पड़ रहा है तो इसका कारण बागी उम्मीदवार माने जा रहे हैं. दरअसल कांग्रेस में टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरने वाले नेताओं की सूची इस बार लंबी थी. नामांकन वापसी से पहले कांग्रेस ने करीब 36 बागी नेताओं को मनाकर उनके पर्चे वापस कराए थे, लेकिन तब भी 20 सीटों पर 29 बागी मैदान में खड़े हुए थे. माना जा रहा है कि इन बागी नेताओं ने कांग्रेस के वोट जमकर काटे हैं, जिससे पार्टी भाजपा के मुकाबले 15 सीटो से पिछड़ती दिखी है.

3. जाटों को तरजीह देने से बाकी वोटर्स ने काटी कन्नी

हरियाणा में किसान आंदोलन, अग्निवीर और पहलवानों के मुद्दे के चलते माना जा रहा था कि जाट वोटर भाजपा से नाराज है. ऐसे में भाजपा ने अपनी जाट बनाम 35 समुदाय की रणनीति पर फोकस किया, जबकि कांग्रेस सिर्फ जाट वोटर्स के ही सहारे खड़ी रह गई. जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ में कमान थी और उनके पसंदीदा 72 नेताओं को टिकट मिला. हरियाणा के कुल वोट शेयर में जाट करीब 27 फीसदी हैं. ऐसे में उन्हें कांग्रेस ने 35 जाट उम्मीदवार उतारे. माना जा रहा है कि जाट समुदाय के प्रति इस झुकाव के कारण अन्य समुदाय कांग्रेस से कन्नी काट गए. राज्य में करीब 20 फीसदी ओबीसी वोट हैं. भाजपा ने चुनाव से कई महीने पहले मनोहर लाल खट्टर को हटाकर ओबीसी नेता नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का जो दांव खेला था, वो चुनाव में इन वोटर्स को भगवा दल के फेवर में करने में सफल रहा है.

4. कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच की लड़ाई

कांग्रेस भले ही पहले दिन से चुनाव जीतती लग रही थी, लेकिन इससे उसकी मुश्किलें ही बढ़ी थीं. सरकार बनने की संभावना देखकर पार्टी के अंदर कई गुट बन गए थे, जिनमें से हर कोई मुख्यमंत्री बनना चाह रहा था. भूपेंद्र सिंह हुड्डा पूर्व मुख्यमंत्री थे और जाट समुदाय में उनका बड़ा प्रभाव भी है. ऐसे में चुनावी कमान उन्हें मिली और माना गया कि वही अगले मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन कुमारी सैलजा का गुट हो या रणदीप सिंह सुरजेवाला का गुट, ये अलग चलते दिखाई दिए. इससे पार्टी के अंदर की रार सभी के सामने आ गई और कार्यकर्ताओं का मनोबल प्रभावित हुआ. भाजपा ने भी चुनाव प्रचार के दौरान इस विवाद को जमकर हवा दी थी.

5. छोटे दलों ने काटे कांग्रेस के वोट

कांग्रेस की सीटें नहीं जीतने का कारण छोटे-छोटे दलों को भी माना जा रहा है, जो करीब 8% वोट हासिल करने में सफल रहे हैं. कांग्रेस ने चुनाव से पहले AAP के साथ गठबंधन नहीं किया, जबकि Arvind Kejriwal की आम आदमी पार्टी 1.79% वोट हासिल करने में सफल रही है. ये सभी वोट कांग्रेस खाते के ही माने जा रहे हैं. इसी तरह INLD ने 4.18% और बसपा ने 1.62% वोट हासिल किए हैं. इनेलो का वोट बैंक जाट वोटर ही माने जाते हैं यानी उसने कांग्रेस के खाते में ही सेंध लगाई है, जबकि बसपा ने भी कांग्रेस के ही वोट काटे हैं.

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