Rice Price: बांग्लादेश से आई भारी डिमांड, जानिए आने वाले समय में क्यों महंगा हो सकता है चावल?
तेजी से बढ़ सकती हैं चावल की कीमतें
Rice Production in India: खराब मौसम, कम बारिश और ज्यादा मांग की वजह से इस साल भारत में चावल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. मॉनसून की बिगड़ी लय ने चावल के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं.
डीएनए हिंदी: चावल के सबसे बड़े निर्यातक देशों (Rice Producer Countries) में से एक नाम भारत का भी है. ऐसे में यहां धान की बुआई कम होने से चावल का उत्पादन (Rice Production) कम हो जाता है. इसका असर घरेलू बाजार के साथ-साथ उन देशों पर भी पड़ेगा जहां भारत अपने चावल का निर्यात (Rice Export) करता है. पहले से महंगाई की मार झेल रहे भारत में गेहू के बाद अब चावल की खेती भी मौसम की मार झेलती नज़र आ रही है. ऐसा अंदेशा है कि आने वाले समय में लोगों की थाली में रोटी के साथ-साथ चावल की कीमत भी बढ़ने वाली है. कृषि विभाग के मुताबिक, भारत में इस साल अब तक धान की बुआई में 13% तक की कमी आ चुकी है. इसका प्रमुख कारण देश के कुछ हिस्सों खासकर बंगाल और उत्तर प्रदेश और बिहार में जैसे राज्यों में पर्याप्त बारिश का ना होना है. बता दें कि सिर्फ ये तीन राज्य मिलकर भारत के वार्षिक चावल उत्पादन में लगभग एक तिहाई का योगदान करते हैं. कृषि मंत्रालय के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, साल-दर-साल चावल की बुआई में 17% की कमी आई है.
बांग्लादेश के कारण भारत में बढ़ रहे हैं चावल के दाम
बांग्लादेश से आई भारी डिमांड की वजह से भारत में चावल की कीमत बढ़ रही है. भारत के डोमेस्टिक और ग्लोबल दोनों बाजारों में कीमत 10 फीसदी बढ़ गई है. भारत में 25 किलो चावल की बोरी पिछले महीने 750 रु. की थी, अब यह 850 रुपये तक पहुंच गई है. एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अनुसार, 2020-21 में बांग्लादेश ने भारत से 4,91,000 टन चावल का आयात किया था. वहीं, 2021-22 में यह राशि बढ़कर 9,14,000 टन हो गई है. ऐसा इसलिए है कि बाढ़ और मौसम के बदलाव के कारण बांग्लादेश सहित ज़्यादातर देशों में इस बार चावल की पैदावार अच्छी नहीं हो पाई है. ज्यादा डिमांड और कम सप्लाई के चलते भारत की ज़्यादातर मंडियों में चावल की सभी किस्मों की कीमतों में 30% की वृद्धि हुई है.
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चावल की रत्न किस्म, जिसकी कीमत 26 रुपये प्रति किलोग्राम थी, वह बढ़कर 33 रुपये तक पहुंच गई है. बासमती चावल की कीमतें भी लगभग 30% बढ़ गई हैं. खुदरा बाजार में बासमती चावल की कीमत 62 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 80 रुपये तक चली गई है क्योंकि भारत और भारत के बाहर दूसरे देशो में मांग बढ़ गई है. डिपार्टमेंट ऑफ़ कंज्यूमर अफेयर्स के आंकड़ों से पता चलता है कि 25 जुलाई को थोक चावल की कीमतें साल-दर-साल 7.2 प्रतिशत अधिक थीं. वहीं, कोलकाता में दैनिक खुदरा कीमतें सबसे अधिक बढ़कर 40 रुपये प्रति किलोग्राम हो गईं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है.
दुनिया के 100 से ज़्यादा देशों को चावल सप्लाई करता है भारत
आपको बता दें कि भारत दुनिया के चावल व्यापार में 40% हिस्सेदारी के साथ एक प्रमुख चावल निर्यातक देश है. आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021-22 में, भारत ने 21 मिलियन टन चावल का निर्यात किया जो कि 127.9 मिलियन टन के वार्षिक उत्पादन का लगभग छठा भाग है. वहीं, चालू खरीफ फसल सीजन में, भारत ने 112 मिलियन टन चावल का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है. जानकारी के मुताबिक, भारत दुनिया के 100 से अधिक देशों को चावल की सप्लाई करता है. इनमें बांग्लादेश, चीन, नेपाल और मिडिल ईस्ट के कई देश शामिल हैं.
मौसम की बेरुखी का सीधा असर
कम पैदावार का असर सीधे तौर पर सरकारी योजनाओं पर पड़ने के आसार बन रहे हैं. जैसे मुफ्त खाद्य योजना (प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना) जो सितंबर तक है. उसके आगे बढ़ाए जाने की संभावना कम होती जा रही है. यहां तक कि निर्यात कर या न्यूनतम निर्यात मूल्य (Minimum Export Price) जैसे व्यापार नियंत्रण लागू करने के विकल्पों पर भी सरकार विचार कर सकती है.
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चावल के व्यापारियों का मानना है कि देश में इसका कम उत्पादन जहां महंगाई के साथ लड़ाई को कमजोर करेगा. वहीं, हमें निर्यात पर पाबंदी लगाने के लिए मजबूर भी कर सकता है. पहले ही सरकार देश में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए गेहूं और चीनी के निर्यात पर पहले ही कई बंदिश लगा चुकी है. रिपोर्ट्स की माने तो भारत में चावल के कुछ किस्मों में बढ़त होनी शुरू भी हो गई है.
चावल पर पड़ी महंगाई की मार
भारत में गर्मियों में बोए गए चावल का वार्षिक उत्पादन का 85% से अधिक हिस्सा है. जो फसल वर्ष में जून 2022 तक रिकॉर्ड 129.66 मिलियन टन हो गया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1 जुलाई तक भारत में मिल्ड और धान चावल का स्टॉक कुल 55 मिलियन टन था, जबकि लक्ष्य 13.54 मिलियन टन था. बात करें पिछले एक साल में चावल के एक्सपोर्ट की तो साल 2021 में भारत के रिकॉर्ड 21.5 मिलियन टन शिपमेंट किया है जो दुनिया के अगले चार सबसे बड़े निर्यातकों- थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भेजे गए कुल से अधिक था.
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नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी के अनुसार, जून और जुलाई दो सबसे महत्वपूर्ण खरीफ महीने हैं. खासकर उन 61% किसानों के लिए जो वर्षा आधारित कृषि करते हैं. शुष्क जून का मतलब है कि जमीन की नमी का स्तर बुवाई के लिए अनुकूल नहीं है और देरी से खाद्य उत्पादन बाधित हो सकता है. इस साल, जून का अंत 8% की कुल बारिश की कमी के साथ हुआ जिसका सीधा असर देश के 18 राज्यों में बारिश की भारी कमी (लंबी अवधि के औसत से 60-99 प्रतिशत %) दर्ज़ किया गया . भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, दक्षिणी प्रायद्वीप, पूर्व और उत्तर पूर्व, मध्य और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में मॉनसून की बौछारें काफी हद तक गायब ही रही है.
खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल धान को आमतौर पर जून के मध्य में नर्सरी तैयार करने के लिए लिया जाता है और जुलाई तक रोपाई शुरू हो जाती है. 16 जुलाई तक करीब 13 लाख हेक्टेयर धान की बुवाई हो चुकी थी. यह अभी भी पिछले साल की तुलना में 2.68 मिलियन हेक्टेयर कम है. पंजाब, हरियाणा, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित सभी प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में पिछले दो वर्षों की तुलना में कम बुवाई दर्ज की गई है.
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बारिश के पैटर्न में आया बड़ा बदलाव
मौसम विभाग के मुताबिक जुलाई में स्थिति में भारी बदलाव आया और महीने की 22 तारीख तक मानसून सामान्य से 10 प्रतिशत अधिक रहा था. लेकिन पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों को छोड़कर सभी क्षेत्रों में बारिश या तो सामान्य के करीब रही या फिर सामान्य से अधिक रही जिसकी वजह से खरीफ की फसल पर भारी असर पड़ा है. वहीं, कृषि विभाग के अनुसार 22 जुलाई तक, किसानों ने 37 मिलियन हेक्टेयर से थोड़ा अधिक में बीज बोया था. जोकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन डैशबोर्ड (NFSM) के अनुसार, यह पिछले वर्ष की तुलना में 26 % कम और 2020 की तुलना में 34 % कम रहा है.
मौसम पर निर्भर है भारत में खेती
भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां फसलों का उत्पादन ज़्यादातर मौसम पर ही निर्भर करता है. ऐसे में मौसम की करवट या देरी का सीधा असर देश की फसलों पर और खेती पर पड़ता है. मानसून में देरी से कई राज्यों के सूखे के आसार बने है लेकिन अभी भी कुछ कृषि वैज्ञानिक आशावादी हैं कि रोपाई के लिए अभी समय बचा है. अगस्त और सितंबर महीने में सामान्य बारिश का अनुमान है. ऐसे में अगर मानूसन का साथ मिलता है तो फसल उत्पादन में सुधार हो सकता है. अब भी अगर ढंग से बारिश नहीं हुई तो समस्या वाकई गंभीर हो सकती है.
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