डीएनए हिंदी: Diwali 2023 Updates- भारतीय इतिहास में दिवाली का त्योहार प्रभु श्रीराम के रावण का वध करने के बाद अयोध्या वापस लौटने पर मनाना शुरू किया गया था. करीब 7,096 साल पहले मनाई गई इस पहली दिवाली जितनी ही साल 1947 की दिवाली भी होनी चाहिए थी, क्योंकि करीब 800 साल विदेशी शासकों की सत्ता की गुलामी में रहने के बाद भारत आजाद हुआ था. पहली बार देश में 'गुलामी' नहीं 'आजाद हवा' के बीच दिवाली के दीयों की रोशनी होने जा रही थी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद की देश की पहली दिवाली कैसे मनाई गई थी? दरअसल यह दिवाली देश के लिए खुशियों के बीच नहीं बल्कि आजादी के बाद के पहले युद्ध की भयावहता के बीच आई थी. पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों की आड़ लेकर कश्मीर पर हमला बोल दिया था. ऐसे में 1947 की दिवाली वाला ही दिन था, जब मेजर सोमनाथ शर्मा और उनके 90 जवानों की बटालियन ने दीयों की रोशनी के बजाय गोली-बमों के शोर के बीच अपनी बहादुरी और शहादत से देश की आन बचाई थी और देश को गिफ्ट में कश्मीर दिया था.
3 नवंबर, 1947 के दिन थी तब दिवाली, खूब छूटे असली बम और गोले
साल 1947 में 3 नवंबर के दिन दिवाली का त्योहार था. इस दिन चार कुमाऊं रेजिमेंट के 24 वर्षीय मेजर सोमनाथ शर्मा अपनी 90 जवानों की बटालियन के साथ कश्मीर के बडगाम में तैनात थे. पाकिस्तान की सेना श्रीनगर एयरफील्ड कब्जाने के लिए आगे बढ़ रही थी, जिसने भारतीय सेना को खत्म करने के लिए अपने आगे 700 कबाइलियों की फौज को उतार रखा था. श्रीनगर एयरफील्ड बडगाम चेकपोस्ट से महज 8 किलोमीटर दूर था यानी मेजर शर्मा और उनके जवान ही पाकिस्तानी फौज को वहां तक पहुंचने से रोकने वाली एकमात्र उम्मीद थे. ऐसे में मेजर शर्मा और उनके जवानों ने कबाइलियों को चुनौती दी. दिवाली का मौका था तो बम और गोले फोड़कर जश्न मनना था. यहां भी जमकर बम-गोले छूटे, लेकिन दिवाली वाले नहीं बल्कि असली बम और गोलों के विस्फोट ने दिवाली का दिन गुंजायमान कर रखा था.
6 घंटे तक लड़ती रही मेजर शर्मा की बटालियन
मेजर शर्मा और उनकी बटालियन अपने से करीब 7 गुना ज्यादा संख्या वाले दुर्दांत कबाइलियों के सामने डटे रहे. करीब 6 घंटे तक दोनों तरफ से खूब बम-गोले चले. इसी दौरान एक मोर्टार फटने से मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद हो गए. शहादत के समय भी मेजर शर्मा ने आखिरी मैसेज यही भेजा था कि चारों तरफ से फायरिंग के बीच हम बेहद कम हैं, लेकिन आखिरी जवान और आखिरी गोली तक पीछे नहीं हटेंगे. मेजर शर्मा की बटालियन शहीद हो गई, लेकिन 200 से ज्यादा कबाइली मार गई. इससे भी बड़ी बात की उन्होंने भारतीय सेना की टुकड़ियों को श्रीनगर एयरफील्ड पर उतरने का मौका दे दिया, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना को वापस भागना पड़ा और पूरा कश्मीर बच गया.
मेजर शर्मा को मिला था देश का पहला परमवीर चक्र
आपको शायद पता नहीं हो, लेकिन मेजर शर्मा इस युद्ध में शामिल होने के लिए फिट भी नहीं थे. उनका हाथ टूटा हुआ था और उस पर प्लास्टर बंधा था. वे बंदूक नहीं चला सकते थे, लेकिन तब भी वे अपने देश की शान बचाने के लिए मोर्चे पर अपने जवानों के साथ तैनात थे. वे शहीद हो गए, लेकिन मोर्चा नहीं छोड़ा था. इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. यह देश के किसी जवान को युद्धभूमि में दिखाई वीरता के लिए दिया गया पहला परमवीर चक्र था, जो देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान है. इन जवानों ने 1947 की उस दिवाली को 'शौर्य' और 'वीरता' की दिवाली बना दिया.
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