'लौह पुरुष' से 'BJP का असली चेहरा', PM इन वेटिंग से भारतरत्न तक LK Advani का ऐसा रहा राजनीतिक सफर

Written By अभिषेक शुक्ल | Updated: Feb 03, 2024, 02:19 PM IST

लाल कृष्ण आडवाणी. (फाइल फोटो)

1990 के दशक में लाल कृष्ण आडवाणी राम मंदिर आंदोलन के अगुवा रहे हैं. उनकी रथ यात्रा ने बीजेपी के लिए जो जमीन तैयार की, उसका फल बीजेपी को आज मिल रहा है.

डीएनए हिंदी: भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता लाल कृष्ण आडवाणी को केंद्र सरकार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित करेगी. वह ऐसे राजनेता रहे हैं, जो एक जमाने में हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं. लाल कृष्ण आडवाणी का किरदार संसदीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा. वह देश के सातवें उप प्रधानमंत्री थे, वहीं उनके नाम सबसे ज्यादा दिनों तक संसद में विपक्ष के नेता बने रहने का भी रिकॉर्ड है, जिसे कोई अब शायद ही तोड़ पाए.

1980 और 1990 के दशक में जब कांग्रेस की तूती बोल रही थी, तब अगर किसी ने बीजेपी के लिए सियासी जमीन तैयार की तो वह लाल कृष्ण आडवाणी ही थे. वे देखते ही देखते बीजेपी के लौह पुरुष बनते गए. पार्टी की कमान सिर्फ उनके हाथ में थी. वह संगठनात्मक तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी से ज्यादा मजबूत थे लेकिन अपना नेता वह उन्हें ही मानते थे. उन्हें विपक्ष कट्टरपंथी हिंदू मानता था, वह विपक्ष को छद्म सेक्युलर कहते. विपक्ष के धुर विरोध के बाद भी वे भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहे. विपक्ष उन्हें बीजेपी का असली चेहरा बताता था, वहीं उनके उलट अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति अजातशत्रु वाली रही है.

लाल कृष्ण आडवाणी को हर बार नया तमगा मिलता रहा. पीएम इन वेटिंग, कर्णदार, लौह पुरुष से लेकर कट्टरपंथी तक का खिताब उन्हें मिल चुका है. हर कोई लाल कृष्ण आडवाणी को अलग-अलग रूप में याद करता है. पर 90 के दशक में जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन के लिए जमीनी संघर्ष देखा है, उनके लिए लाल कृष्ण आडवाणी से बड़ा हीरो कोई नहीं है. वे उन्हें लौह पुरुष कहते हैं, हिंदू हृदय सम्राट कहते हैं.

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कैसे शुरू हुआ सियासी सफर?
लाल कृष्ण आडवाणी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता रहे हैं. जब साल 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की, तब आडवाणी इस पार्टी से जुड़ गए. उन्होंने पार्टी को अपनी जिदंगी दे दी. साल 1951 से 57 तक उन्होंने पार्टी सचिव की भूमिका संभाली.

ऐसे बढ़ता गया आडवाणी का कद
आडवाणी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति करते थे. एक ध्वज, एक राष्ट्र और एक संविधान का राग गाने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सही उत्तराधिकारी वही थे. साल 1973 से लेकर 77 तक वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे. जब इंदिरा गांधी के इशारे पर देश में इमरजेंसी लगा तो आडवाणी 19 महीने जेल से बाहर ही नहीं आए. और ऐसे हिंदू हृदय सम्राट बन गए लाल कृष्ण आडवाणी
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना साल 1980 में हुई. 1986 तक लाल कृष्ण आडवाणी ही पार्टी के महासचिव रहे. उनकी जिम्मेदारी बढ़ी और 1986 से 1991 तक अध्यक्ष का पद उन्हें संभालना पड़ा. यह वही साल था जब अयोध्या में रामलला मंदिर के लिए आंदोलन तेज हो रहा था. आडवाणी चाहते थे अयोध्या में बाबरी मस्जिद मुस्लिम पक्ष खाली करे और वहां भव्य राम मंदिर बने. उन्होंने इसी साल 1990 में राममंदिर आंदोलन चलाया. उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली. गिरफ्तार हुए, कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगे. 6 दिसंबर 1992 को जब कारसेवकों ने अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया, पूरे मूवमेंट का क्रेडिट लाल कृष्ण आडवाणी को जा मिला. राम मंदिर चाहने वाले हिंदुओं की नजर में लाल कृष्ण आडवाणी सम्राट हो गए.

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पीएम इन वेटिंग कैसे बने
लाल कृष्ण आडवाणी 3 बार बीजेपी के अध्यक्ष रहे. राज्यसभा से लेकर लोकसभा तक, लाल कृष्ण आडवाणी की हर जगह धाक रही. साल 1977 से 1979 तक केंदीय सूचना प्रसारण मंत्री का कार्यभार संभाला. वे 1999 में एनडीए की सरकार में गृह मंत्री बने, 2002 में वे उप प्रधानमंत्री बने. उन्होंने बीजेपी को जमीन से खड़ा किया. उन्होंने बीजेपी को सींचा. जो बीजेपी साल 1984 में महज 2 सीटें जीत सकी थी, उसकी बीजेपी की तूती बोल रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 283 सीटों पर जीत मिली थी, 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 336 सीटें जीतीं.

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अब बीजेपी का दावा है कि 2024 के चुनाव में 400 सीटें बीजेपी जीतेगी. यह सच है कि ये उपलब्धियां उनकी मेहनत की वजह से मिलीं. उन्होंने ही बीजेपी का संगठन मजबूत किया था. नरेंद्र मोदी उनके राजनीतिक शिष्य रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक रूप से संन्यास लेने के बाद साल 2009 का लोकसभा चुनाव लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में ही लड़ा गया. बीजेपी को भीषण हार मिली. वह डिप्टी पीएम तो बन चुके थे, पीएम बनते-बनते ही रह गए. वह इंतजार करते ही रह गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बन गए.

अब मिलेगा भारत रत्न
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लाल कृष्ण आडवाणी के राजनीतिक शिष्य हैं. प्रधानमंत्री मोदी अक्सर उनका आशीर्वाद लेने उनके आवास पहुंचते हैं. राम मंदिर आंदोलन के दिनों से ही नरेंद्र मोदी, लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी रहे हैं. गुजरात दंगों के बाद ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी उनसे नाराज थे. उनके कोप से आडवाणी ने ही बचाया था. लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देकर सरकार उनके योगदान के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रही है.

कहां पैदा हुए थे बीजेपी के लौह पुरुष?
जैसे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को एकीकृत किया था, ठीक वैसे ही लाल कृष्ण आडवाणी ने हिंदुओं के बटे हुए तबकों को एक करके एक पार्टी के तले लाने में अहम भूमिका निभाई. पाकिस्तान के कराची में 8 नवंबर 1927 को जन्म लाल कृष्ण आडवाणी केडी आडवाणी और ज्ञानी आडवाणी की संतान हैं.  उन्होंने कराची से शुरुआती पढ़ाई की थी और मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था.ऑ

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