डीएनए एक्सप्लेनर: कैसे नए कृषि कानून बदल सकते थे किसानों की जिंदगी?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 22, 2021, 05:20 PM IST

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) नियम, 2020 पर केंद्र सरकार का दावा था कि इससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी.

डीएनए हिंदी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को ऐलान किया कि केंद्र सरकार ने तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है. यह अपने आप में एक बेहद चौंकाने वाला फैसला रहा. बीते एक साल से प्रदर्शनकारी किसान इस कानून को वापस लेने का दबाव केंद्र सरकार पर बना रहे थे. जहां केंद्र सरकार के इस फैसले पर देश के किसानों का एक तबका खुश है वहीं छोटे किसान एक बड़े लाभ से एक बार फिर वंचित रह गए.

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि कृषि सुधार कानूनों का मकसद किसानों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना था लेकिन सरकार कृषि कानूनों का लाभ किसानों को समझाने में फेल हो गई. 

तीनों कृषि कानूनों में फारमर्स (एंपॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइस  एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस एक्ट, 2020, द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिएशन) एक्ट, 2020 और एसेंशिएल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 शुमार थे. कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी ने एक कमेटी बनाने का निर्णय लिया है जिसमें मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) को और प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए सुझाव दिए जाएंगे. 

कैसे किसानों की जिंदगी बदल सकते थे कृषि कानून?

केंद्र सरकार का दावा था कि कृषि सुधार कानूनों के जरिए किसान बिचौलियों के जाल से बच जाएंगे. फारमर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कमर्स (प्रोमोशन एंड फैसिलिएशन) एक्ट 2020 के जरिए सरकार का दावा था कि किसान अपने उत्पादों को बाहर के बाजारों में बेच सकते हैं. जिन बाजारों में कृषि उत्पादों को बेचा जा रहा था उन्हें स्टेट एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटीज (एपीएमसी) कानूनों के तहत नोटिफाई किया गया था.  

द फार्मर्स (एंपॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020  में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का प्रावधान जोड़ा गया था. द इसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट 2020 के जरिए कृषि के क्षेत्र में लगे स्टॉक प्रतिबंधों को हटाया गया था जिसमें व्यापारी सीधे किसानों से खाद्य उत्पाद खरीदे जा सकते थे. व्यापारी किसानों से बड़ी मात्रा में खाद्य उत्पादों को खरीद सकते थे. 

नया मॉडल कैसे एपीएमसी सिस्टम से था अलग?

एपीएमसी रेगुलेशन की वजह से किसान केवल उन्हीं लोगों को उत्पाद बेच सकते थे जिन्हें बाजार में लाइसेंस प्राप्त बिचौलिए का दर्जा मिला है. मतलब साफ है कि किसान केवल अपने इलाके में ही फसल बेच पाते थे. यह कानून किसानों को स्थानीय एपीएमसी में बेचने के लिए मजबूर करता है. नए कानून से किसानों को बाहर के बाजारों में अपने उत्पादों को बेचना का मौका मिल सकता था.

एपीएमसी बाजारों की शुरुआत 1960 के दशक में हुई. इसका मकसद था कि किसानों की मुश्किलें कम हों और उन्हें अपने उत्पादों को बेचने के लिए सही बाजार मिले. मंडी बाजार किसानों के लिए मुश्किल का सबब बन गए. उन्हें समितियों में अपने उत्पादों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है. मध्यस्थों और बिचौलियों के जाल की वजह से किसानों को अपने प्रोडक्ट्स का सही दाम नहीं मिल पाता है. 

क्यों आंदोलन कर रहे थे किसान?

किसानों को डर लग रहा था कि अगर यह कानून लागू हो गया तो बड़े कॉर्पोरेट घरानों का कृषि उत्पाद बाजारों पर कब्जा हो गया जाएगा. इसकी वजह से इस क्षेत्र में दिग्गजों का एकाधिकार हो जाएगा और स्थानीय स्तर पर वे किसानों को नुकसान पहुंचाने के लिए एक फिक्स दाम कर देंगे. किसानों की जिंदगी इससे दूभर हो जाएगी. नए कृषि कानूनों के तहत व्यापारियों को कोई शुल्क न देने का प्रावधान भी दिया गया था. किसानों को इस बात का डर था कि अगर ऐसे कानून लागू हो जाते हैं और बिना सरकारी हस्तक्षेप के प्राइवेट प्लेयर्स का दखल इस क्षेत्र में बढ़ गया पारंपरिक बाजारों को नुकसान पहुंच सकता है.

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