पहली बार कांग्रेस के करीब कैसे आए थे सिद्धारमैया, किससे मिला धोखा, पढ़ें पूरी कहानी

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 20, 2023, 01:04 PM IST

कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धारमैया.

कर्नाटक के होने वाले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया हमेशा से कांग्रेसी नहीं रहे. वह कभी धुर सोशलिस्ट नेताओं में शुमार रहे हैं. वह JDS में भी रह चुके हैं. उनके कांग्रेस में आने की कहानी भी दिलचस्प है.

डीएनए हिंदी: कर्नाटक के होने वाले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, कांग्रेस के जननेता हैं. उनकी लोकप्रियता प्रदेशभर में है और विधायकों का भी उन्हें समर्थन मिला है. यही वजह है कि कांग्रेस आलाकमान ने डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाया और सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया. कांग्रेस पर कोई भी आफत आए, डीके शिवकुमार संकटमोचक की तरह काम करते हैं लेकिन उनका यह योगदान भी सिद्धारमैया पर भारी नहीं पड़ सका.

सिद्धारमैया पुराने कांग्रेसी नहीं हैं. वह जनता दल (सेक्युलर) में भी रह चुके हैं. एक वक्त था, जब उन्हें धुर राष्ट्रवादी माना जाता था, फिर वह सोशलिस्ट हुए और जब कांग्रेस में आए तो उन्होंने अपने कद का कोई दूसरा नेता खड़ा नहीं होने दिया. 

सिद्धारमैया पुराने कांग्रेसी नहीं हैं. वह राजनीति में सक्रिय होने से पहले वकील थे. साल 2006 में उन्हें JDS ने निकाल दिया था. कांग्रेस उनके लिए नई जगह थी, लेकिन देखते ही देखते उन्हें पार्टी के भीतर समर्थन मिलता चला गया. उनके कांग्रेस में आने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

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राइट विंग के दिग्गज नेता रहे हैं सिद्धारमैया

चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से 1983 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. साल 1985 के उपचुनाव में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत मिली. साल 1989 में जब सिद्धारमैया ने तीसरी बार चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा तो उन्हें बड़ा झटका लगा. सिद्धारमैया को कांग्रेस के के एम राजशेखर मूर्ति ने करारी शिकस्त दी थी. हार के बाद भी उनके सियासी कद पर कोई असर नहीं पड़ा और साल 1992 में, वह जनता दल के महासचिव बनाए गए.

साल 1994 में, सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी सीट से एक बार फिर चुने गए और एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में वित्त मंत्री बने. वह साल 1996 में उपमुख्यमंत्री बने जब जेएच पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया.

जनता दल के विभाजन ने बढ़ाया सियासी कद

साल 1996 में जनता दल का विभाजन हुआ और सिद्धारमैया देवगौड़ा के नेतृत्व वाले JDS गुट के अध्यक्ष बने. वह साल 1999 में फिर से चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट पर कांग्रेस के एएस गुरुस्वामी से हार गए. साल 2004 के विधानसभा चुनाव के बाद, सिद्धारमैया उपमुख्यमंत्री बने. कांग्रेस और JDS ने मिलकर यह सरकार बनाई थी. 

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इस वजह से JDS से निकाले गए थे सिद्धारमैया

जब साल 2004 में कांग्रेस और जेडीएस की संयुक्त सरकार बनी तो दोनों के पास सीएम पद को लेकर एक फॉर्मूला भी तैयार हुआ था. तत्कालीन डिप्टी सीएम सिद्धारमैया यह जानते थे कि जब कांग्रेस दो साल के लिए JDS को सत्ता सौंपेगी, तब उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा. 

एक फैसले ने बनाया सिद्धारमैया को जननेता

सिद्धारमैया ने अपना सियासी कद बढ़ाने के लिए अहिन्दा नाम से एक गैर राजनीतिक मंच बना लिया. इसका पूरा नाम था- एसोसिएशन ऑफ माइनॉरिटीज, बैकवर्ड क्लासेस एंड दलित्स. संगठन का उद्देश्य था कि राज्य के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय को एकजुट किया जाए.

किससे मिला था उन्हें धोखा?

संगठन बनने पर एचडी देवेगौड़ा बेहद नाराज हुए. उन्होंने सिद्धारमैया से कहा कि वह डिप्टी सीएम के पद  से हट जाएं. साल 2006 में उन्होंने जेडीएस छोड़ दी. तब तक राज्य में उनकी पिछड़े समुदायों के नेता के तौर पर छवि बन गई थी. उनके राजनीतिक बैकग्राउंड को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें अपना लिया. उन्होंने उसी साल चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से उपचुनाव जीता. कांग्रेस के साथ जाने से उनका वोट बैंक और बढ़ गया.

साल 2008 में उन्होंने वरुणा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा. वह 5वीं बार विधायक चुने गए. वह कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. यह वही साल था, जब बीजेपी की जीत हुई थी और राज्य में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी. 

कब मुख्यमंत्री बने सिद्धारमैया?

सिद्धारमैया पहली बार साल 2013 में मुख्यमंत्री बने. कर्नाटक में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की शानदार जीत हुई थी. तब तक उनका कद इतना बढ़ चुका था कि कांग्रेस आलाकमान ने बिना सोचे-समझे राज्य की कमान उन्हें सौंप दी. वरुणा विधानसभा सीट से भी वह जीतने में कामयाब रहे. साल 2013 से 2018 तक मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा रहा. उनके साथ विवाद भी जुड़े रहे. अब वह 20 मई को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं.

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