Sukhvinder Singh Sukhu के सामने कैसे बिखर रही हिमाचल कांग्रेस? पढ़ें इनसाइड स्टोरी

Written By अभिषेक शुक्ल | Updated: Feb 28, 2024, 01:47 PM IST

Sukhvider Singh Sukhu 4 बार विधायक रहे हैं. वह कांग्रेस संगठन के मजबूत नेता रहे हैं. साल 2013 से लेकर 2019 तक, 6 साल वे राज्य कांग्रेस के प्रमुख रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में सत्ता संभालने के 14 महीने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) सरकार मुश्किलों में घिर गई है. राज्यसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस अपने विधायकों को एकजुट तक कर पाने में फेल हो गई. अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के राजनीतिक कौशल पर संदेह पैदा हो रहा है.

सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है. नदौन से 4 बार विधायक रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू को सगंठन का मजबूत नेता माना जाता है लेकिन वे पार्टी को एकजुट नहीं कर पाए. साल 2013 से 2019 तक 6 साल तक राज्य कांग्रेस प्रमुख रहे.

सुखविंदर सिंह सुक्खू साल 1998 से 2008 तक 10 साल के लिए युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं. वे कांग्रेस के छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया में रहे. वे साल 1989 से 1995 तक 7 वर्षों तक संगठन के राज्य प्रमुख रहे.
 


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कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं का कहना है कि सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की वजह से चुनावों में पार्टी को और नकुसान हो सकता है. विधानसभा में पर्याप्त बहुमत के बावजूद, 6 विधायकों की ओर क्रॉस वोटिंग की वजह से कांग्रेस उम्मीदवार की हार हुई है. यह हार शीर्ष नेतृत्व को भी नहीं पसंद आया है. 

सुखविंदर सिंह सुक्खू के आलोचक कहते हैं कि उनकी  कमजोर और अहंकारी नेतृत्व की वजह से पार्टी की संभावनाएं बर्बाद हो रही हैं. सुखविंदर सिंह सुक्खू पर आरोप लग रहे हैं कि वे पार्टी में बढ़ते असंतोष को संभालने में नाकाम हो रहे हैं. 

सुखविंदर सिंह सुक्खू दिवंगत वीरभद्र सिंह के परिवार से लगातार टकरा रहे थे. जैसे ही सुखविदंर सिंह सुक्खू ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली, राज्य कांग्रेस चीफ प्रतिभा सिंह से उनकी तकरार बढ़ने लगी. उनके साथ मतभेद बढ़ने लगे जिसे वे संभाल नहीं पाए. 

दिवंगत सीएम वीरभद्र की पत्नी और हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रमुख प्रतिभा सिंह भी वफादारों को दरकिनार किए जाने पर नाखुश थे. कई विधायक सरकार के कामकाज से नाखुश थे.
 


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सत्ता संभालते ही सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने करीबी सहयोगियों को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया. इसके अलावा, यह भी तथ्य सामने आया कि गैर-संवैधानिक अधिकारी विधायक कामकाज में दखल दे रहे थे. 

प्रतिभा सिंह ने साफ कह दिया कि कई विधायक नाखुश हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता राजिंदर राणा की वजह से भी तकरार बढ़ गई. उन्होंने क्रॉस वोटिंग की अटकलों को हवा दे दी. उन्होंने कहा था कि बीजेपी चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर सकती है.

हाल ही में हुए कैबिनेट फेरबदल को देखकर को लेकर मंत्री बेहद नाराज थे. पहली बार विधायक बने देवेंदर भुट्टो के वफाादर कहते हैं कि उनके विधानसभा में भेदभाव किया जाता है. गगरेट के विधायक चैतन्य शर्मा अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों की कमी से नाराज थे.

धर्मशाला से 4 बार के विधायक सुधीर शर्मा, वीरभद्र सिंह की सरकार में मंत्री थे. वह कांगड़ा जिले के आते हैं. उन्हें लग रहा था कि सरकार में मंत्रालय मिलेगा लेकिन नहीं मिला.

सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसके बजाय किशोरी लाल और आशीष बुटल को मुख्य संसदीय सचिव के रूप में शामिल किया. नगरोटा के पहली बार विधायक बने आरएस बाली को राज्य पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष बना दिया गया. यह कैबिनेट स्तर का पद है. इसकी वजह से और कांग्रेस विधायक और नाराज हो गए. 

 


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सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर लिया. सुखविंदर सिंह सुक्खू ने यादविंदर गोमा को अपनी कैबिनेट में शामिल कर लिया. सुधीर कांगड़ा के साथ भेदभाव को लेकर मुखर रहे हैं.

सुजानपुर से तीन बार के विधायक राजिंदर राणा को भी कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी. पिछले कुछ समय से सरकार के खिलाफ भी मुखर हैं.

बड़सर से दो बार के विधायक इंद्र दत्त लखनपाल अपने विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप से नाखुश थे. लाहौल और स्पीति के विधायक रवि ठाकुर भी सार्वजनिक मुद्दों पर मुखर हैं. सियासी तौर पर उन्हें दरकिनार कर दिया गया है.

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