Indore Special: इंदौर को मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि मध्य पश्चिमी भारत के सबसे एडवांस शहरों में गिना जाता है. कुछ लोग इसे मिनी मुंबई भी कहते हैं तो इसे मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी भी माना जाता है. देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा भी इंदौर के ही पास है और यही मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा शहर भी है. देखा जाए तो इंदौर शहर में वो सब खूबियां हैं, जो किसी राज्य की राजधानी बनने के लिए होनी चाहिए. आजादी के बाद मध्य भारत प्रांत की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी इंदौर को ही बनाया गया था. लेकिन जब मध्य प्रदेश राज्य का गठन हुआ और उसकी राजधानी चुनने का नंबर आया तो इंदौर का नंबर काटकर भोपाल को राजधानी बना दिया गया, जबकि भोपाल उस समय जिला भी नहीं था. यह पहला मौका था, जब किसी तहसील को पहले राज्य की राजधानी चुना गया और फिर उसे जिला बनाया गया. आखिर क्या कारण था, जो इंदौर मध्य प्रदेश की राजधानी नहीं बन पाया? दरअसल इसके पीछे कई अन्य कारणों के साथ ही दो रियासतों के बीच की नाक की लड़ाई भी बड़ा कारण थी. चलिए हम आपको बताते हैं यह कहानी.
पहले जान लेते हैं इंदौर का इतिहास
इंदौर आज ही नहीं प्राचीन भारत में भी देश का अहम व्यापारिक शहर था. इसे उज्जैन से ओंकारेश्वर जाने वाले नर्मदा नदी घाटी मार्ग पर अहम व्यापारिक शहर के तौर पर स्थापित किया गया था. साल 1741 में इस शहर में इंद्रेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ. इसी मंदिर की बदौलत इस शहर को पहले इंदूर (इंद्रपुरी का मराठी उच्चारण) कहा गया और बाद में धीरे-धीरे यही बदलकर इंदौर हो गया.
इंदौर और ग्वालियर बने थे मध्य भारत की राजधानी
देश की आजादी के बाद 1948 में मध्य भारत प्रांत का गठन हुआ. इस प्रांत के गठन में आजादी से पहले की दो बड़ी रियासतों होलकर और सिंधिया का योगदान था. होलकर का गढ़ इंदौर था तो सिंधिया ग्वालियर के राजा थे. मध्य प्रांत की राजधानी को लेकर यशवंत राव होलकर द्वितीय और जीवाजी राव सिंधिया के बीच सहमति बनी. इस सहमति के चलते 1950 से 1956 तक छह महीने के लिए इंदौर ग्रीष्मकालीन और ग्वालियर शीतकालीन राजधानी बनते थे.
स्टेट कांग्रेस ने इंदौर को चुना था राजधानी, फिर यूं चुना गया भोपाल
इंदौर में हुए कांग्रेस के प्रादेशिक अधिवेशन में मध्य प्रदेश की राजधानी चुने जाने का फैसला हुआ. इस पर प्रदेश के सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं ने मुहर लगाई. यह प्रस्ताव ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी को भेजा गया. इसके बाद 1 नवंबर, 1956 को मध्य प्रदेश राज्य का गठन हुआ. राज्य की स्थायी राजधानी चुनने का मुद्दा उठा तो इंदौर और ग्वालियर दोनों ने दावा ठोक दिया. होलकर और सिंधिया परिवारों की नाक की लड़ाई में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शंकर दयाल शर्मा को हल निकालने की जिम्मेदारी दी. शंकर दयाल शर्मा ने भोपाल को देश के सबसे बड़े प्रदेश (उस समय छत्तीसगढ़ भी इसका हिस्सा था) के मध्य में होने के कारण इसे राजधानी बनाने की सलाह दी, जिस पर नेहरू ने भी समर्थन की मुहर लगा दी. तर्क दिया गया कि इंदौर या ग्वालियर, राज्य के किनारे पर हैं और वहां हर हिस्से से लोग आसानी से नहीं पहुंच पाएंगे. इंदौर में तब रेल सुविधा भी नहीं थी, जबकि भोपाल मेन लाइन पर स्थित था.
इंदौर रियासत की भारत विलय में देरी भी बना कारण
आजादी के बाद जब सरदार पटेल ने 562 रियासतों के भारत में विलय के लिए इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पेश किया. इस पर ग्वालियर ने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन इंदौर रियासत ने 6 महीने बाद यह काम किया. इसके चलते इंदौर का महत्व केंद्र सरकार की नजर में थोड़ा कम हो गया. इंदौर के बजाय भोपाल को राजधानी बनाते समय यह भी तर्क पेश किया गया.
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