जल्लीकट्टू को मंजूरी देने वाले तमिलनाडु के कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, क्या है विवाद की वजह?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 18, 2023, 01:20 PM IST

Jallikattu

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने जलीकट्टू खेल को लेकर तमिलनाडु के नए कानून पर मुहर लगा दी है. तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जल्लीकट्टू का खेल उनके राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है.

डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के जलीकट्टू पर बनाए गए कानून को वैध माना है. तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि जलीकट्टू खेल, उनके राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, इसलिए इस खेल पर लगाई गई रोक, हटा लेनी चाहिए. जस्टिस के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने इसी के साथ बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले महाराष्ट्र के कानून की वैधता भी बरकरार रखी. 

 सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ जलीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ पर रोक लगाने की मांग करने वाली अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. संविधान पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल थे.

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क्या है जलीकट्टू खेल?

जल्‍लीकट्टू तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में पोंगल के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाने वाला एक पारंपरिक खेल है. सांडों के साथ होने वाले इस खेल पर रोक लगाने की मांग भी उठती रही है. पशु संस्थाएं, इसे जानवरों के साथ क्रूरता मानती हैं.

क्यों विवादित है यह खेल?

जलीकट्टू खेल के आयोजनों के दौरान कई मौतें हुई हैं. बैल के हमले में लोगों की जान चली जाती है. यह सुरक्षित खेल बिलकुल भी नहीं है. साड़ों को काबू में करने का यह खेल 400 साल से ज्यादा पुराना है. मट्टू पोंगल के दौरान आयोजित होने वाला यह खेल जल्ली और कट्टू से मिलकर बना है. इसका अर्थ है बैल के सींग में बंधे सिक्के. इस खेल के दौरान साड़ों की सींग में सोने और चांदी के सिक्के बांधे जाते हैं. जो लोग साड़ों की सींग से इन्हें निकाल लेते हैं, वही विजेता होते हैं. वाटी मंजू विराट्टू, वेलि विराट्टू और वाटम मंजूविराट्टू, इस खेल के तीन प्रकार हैं.

इस वजह से रोक लगाने की होती है मांग

इस खेल के लिए सांडों को भड़काया जाता है. उनकी आंखों में मिर्च झोंकी जाती है, उन्हें भागने के लिए मजबूर किया जाता है. उन्हें पीछे से मारा भी जाता है. कई बार सांड भड़क भी जाते हैं, जिसके बाद वे भीड़ के लिए जानलेवा साबित हो जाते हैं. यह खेल जानलेवा होता है. 

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भीड़ सांड की सींग में बंधे सिक्के को हासिल करने के लिए टूटती है और इस कोशिश में कई लोग गंभीर रूप से चोटिल भी हो जाते हैं. कुछ सांडों को लोग शराब भी पिला देते हैं. पेटा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में इस खेल पर बैन लगा दिया था. तमिलनाडु सरकार ने इस खेल से बैन हटाने के लिए कानून बनाया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी.

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