Kargil Vijay Diwas: वो फोन कॉल, जिसने कर दिया था कारगिल युद्ध का भारत के पक्ष में फैसला

Written By कुलदीप पंवार | Updated: Jul 26, 2024, 08:44 AM IST

Kargil Vijay Diwas: कारगिल में 3 मई, 1999 को युद्ध शुरू होने के लगभग एक महीने तक भारत हार रहा था. लेकिन फिर एक ऐसी फोन कॉल सामने आई, जिसने भारत का पलड़ा पाकिस्तान पर भारी कर दिया.

Kargil Vijay Diwas: कारगिल में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भारतीय सेना के अदम्य साहस को 25 साल पूरे हो गए हैं. मई के महीने में भी हाड़ कांपने के लिए मजबूर करने वाली ठंडी हवाओं के बीच इस युद्ध में भारतीय सेना ने अपना इलाका पाकिस्तान से वापस छीनने से पहले 527 जवान खोए थे और 1363 जवान आहत हुए थे. सही मायने में 3 मई, 1999 को शुरू हुए इस युद्ध में पहले एक महीने तक भारतीय सेना ने केवल जवान और अफसर ही गंवाए थे और उसके हाथ कुछ खास सफलता नहीं लगी थी. पाकिस्तान इस युद्ध में अपना हाथ मानने को तैयार नहीं हो रहा था और इसे कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए कथित मुजाहिदीनों का ऑपरेशन बताकर पल्ला झाड़ रहा था, लेकिन मई के महीने के आखिरी सप्ताह में हुई एक फोन कॉल ने पूरा नजारा ही बदल दिया. पाकिस्तानी सेना के दो आला अफसरों के बीच की इस एक फोन कॉल को इंटरसेप्ट भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने अपने हुक्मरानों को वह मौका दे दिया, जिसके बाद पाकिस्तानी राजनेताओं को बैकफुट पर आने और दूसरे देशों को भी उस पर दबाव बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा.


यह भी पढ़ें- Kargil Vijay Diwas: घुसपैठ से आखिरी दिन तक, जानिए 84 दिनों के कारगिल युद्ध में क्या सब हुआ था 


26 मई, 1999 की रात में जब बजी थी फोन की घंटी

कारगिल युद्ध के समय भारतीय सेना प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक के सिक्योर फोन पर 26 मई, 1999 की रात 9.30 बजे एक कॉल आया. फोन पर रॉ के सेक्रेटरी अरविंद दवे थे, जिन्होंने एजेंसी द्वारा पाकिस्तान के दो टॉप जनरल के बीच की बातचीत इंटरसेप्ट करने की जानकारी दी. एक जनरल पाकिस्तान के इस्लामाबाद में बैठे थे और दूसरे जनरल चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद थे. दवे ने जैसे ही बातचीत के अंश जनरल मलिक को बताए, उन्होंने तुरंत ट्रांस-स्क्रिप्ट मांगी. जनरल मलिक ने बाद में BBC से बातचीत में कहा कि दवे से मिली ट्रांस-स्क्रिप्ट मिलते ही मैंने उसमें परवेज मुशर्रफ की आवाज पहचान ली. मैंने दवे को दोनों टेलीफोन नंबरों की रिकॉर्डिंग जारी रखने की सलाह दी.

रॉ ने दूसरी रिकॉर्डिंग में पकड़ ली बेहद खास बात

रॉ ने फिर से दोनों पाकिस्तानी जनरल के बीच की एक और बातचीत इंटरसेप्ट की. जनरल मलिक ने बताया कि ये दोनों टेप 1 जून तक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी कैबिनेट को सुनाए जा चुके थे. इसे रॉ की बड़ी उपलब्धि माना गया. इन टेप से ये भी सामने आ गया कि कारगिल पाकिस्तानी सेना का ऑपरेशन है, लेकिन वहां की सेना ने अपने राजनीतिक नेतृत्व को इस बारे में जानकारी नहीं दी है यानी चोरी-छिपे ये ऑपरेशन किया जा रहा है.

क्या था फोन पर इंटरसेप्ट की गई बातचीत में

रॉ ने जो फोन कॉल इंटरसेप्ट की थी, वो पाकिस्तानी सेनाप्रमुख परवेज मुशर्रफ और एक अन्य सीनियर जनरल अजीज खान के बीच की बातचीत थी. जनरल अजीज बीजिंग दौरे पर गए मुशर्रफ को कारगिल ऑपरेशन की जानकारी दे रहे थे. जनरल अजीज ने मुशर्रफ को भारतीय MI-17 हेलिकॉप्टर को मार गिराने और भारतीय सेना के दबाव में होने की जानकारी दी थी. साथ ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से बातचीत होने की भी जानकारी दी थी. मुशर्रफ पूरे ऑपरेशन के लिए अजीज खान को बधाई देते और दबाव बनाए रखने का आदेश देते हुए भी सुनाई दे रहे थे.

नवाज शरीफ को गोपनीय तरीके से भिजवाए गए फोन टेप

BBC ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि पाकिस्तानी जनरलों के बीच की बातचीत के टेप इस्लामाबाद में नवाज शरीफ को भिजवाए गए. यह कार्रवाई गोपनीय तरीके से एक सीनियर पत्रकार के जरिये की गई, जिन्होंने नवाज शरीफ से मिलकर उन्हें वे टेप सुनाए और ट्रांस-स्क्रिप्ट भी दी. इस बात का जिक्र रॉ के पूर्व एडिशनल सेक्रेटरी बी. रमण ने साल 22 जून, 2007 को एक मैगजीन में लिखे लेख में भी किया था. शरीफ को टेप इस सोच के साथ भिजवाए गए थे कि कारगिल को लेकर भारत के पास ऐसे और सबूत होने के डर से पाकिस्तान पर दबाव बनेगा.

जून के पहले सप्ताह में भारतीय फौजों ने शुरू किया कारगिल में जीतना

एकतरफ भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने इन इंटरसेप्ट फोन कॉल्स के जरिये पाकिस्तान पर दबाव बना रखा था, दूसरी तरफ भारतीय फौजों ने भी जून के पहले सप्ताह में कारगिल में युद्ध का नजारा पलटना शुरू कर दिया. भारतीय फौजियों की बहादुरी और शहादत ने कई अहम चोटियां वापस भारत के कब्जे में ला दी थीं. इससे भी पाकिस्तान पर दबाव बना हुआ था.

पाकिस्तान ने भेजा विदेश मंत्री, भारत ने सार्वजनिक कर दी कॉल रिकॉर्डिंग

नवाज शरीफ ने फोन इंटरसेप्ट के टेप सुनने के बाद 11 जून, 1999 को अपने विदेश मंत्री सरताज अजीज को दिल्ली भेजा. भारत ने उनके लैंड करने से पहले ही फोन इंटरसेप्ट के टेप मीडिया को दे दिए. साथ ही दिल्ली में मौजूद हर विदेशी दूतावास को भी उनकी कॉपियां दी गईं. यह बातचीत इस बात को साबित कर रही थी कि कारगिल ऑपरेशन में पाकिस्तान का ही पूरा हाथ है. इसके बाद दिल्ली में सरताज अजीज का बेहद ठंडा स्वागत किया गया.

टेप सामने आने पर ही अमेरिका ने किया था हस्तक्षेप

जनरल मुशर्रफ की फोन कॉल को इंटरसेप्ट करने को कारगिल युद्ध खत्म करने वाला फैक्टर इस कारण माना जाता है कि इसके बाद ही अमेरिका ने इसमें हस्तक्षेप किया. इससे पहले अमेरिका ने भारत को कारगिल की पहाड़ियों पर मौजूद दुश्मनों की सही लोकेशन ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) के जरिये बताने से इंकार कर दिया था. रॉ के पूर्व एडिशनल सेक्रेटरी बी. रमण के मुताबिक, इस टेप ने पाकिस्तानी सेना और मुशर्रफ की विश्वसनीयता को पाकिस्तान में ही संदेह के घेरे में ला दिया था. साथ ही इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को वॉर्निंग जारी की कि उसने कश्मीर में LOC का उल्लंघन किया है और उसे हर हाल में भारतीय जमीन से हटना चाहिए. कई अन्य देशों ने भी इसे लेकर पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी. इसके बाद ही नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने का ऑर्डर जारी किया था.

ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगलफेसबुकxइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.