डीएनए हिंदी: श्रीलंका (Sri Lanka) पिछले कुछ महीनों से आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे के बाद हालात और बिगड़ गए हैं. लोग सड़कों पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं. इस प्रदर्शन को रोकने के लिए एक बार फिर श्रीलंका में आपातकाल (Emergency) की घोषणा की गई है. देश में आपातकाल लगाने का फैसला श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने लिया है. इस साल श्रीलंका में यह दूसरी बार आपातकाल लगाया गया है. इससे पहले 8 मई 2022 को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे इमरजेंसी की घोषणा की थी.
बता दें कि श्रीलंका में पहली बार नहीं जब आपातकाल लगाया गया हो. आपातकाल को लेकर श्रीलंका में एक बड़ा इतिहास रहा है. कई बार वहां इमरजेंसी की घोषणा की जा चुकी है. श्रीलंका में पहली बार साल 1958 में इमरजेंसी लगाई गई थी. इसकी वजह थी सिंहली को 'ओनली लैंग्वेज पॉलिसी' के तौर पर अपनाया गया था. उसके बाद 1971 में जब लेफ्ट विंग जनता विमुक्ति पेरामुना ने अपना पहला विद्रोह किया था.
27 साल तक लगी थी सबसे बड़ी इमरजेंसी
इसके बाद श्रीलंका में 27 साल तक इतिहास की सबसे बड़ी इमरजेंसी लगाई गई थी. यह आपातकाल जुलाई 1983 से अगस्त 2011 तक तमिल विरोधी दंगों की वजह से लगाया गया था. तमिल ग्रुप लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के अलग राज्य की मांग के कारण उपजे गृहयुद्ध की वजह से श्रीलंकाई सरकार ने इमरेजंसी लगाने का फैसला किया था. इस ग्रुप को तमिल टाइगर्स के नाम से भी जाना जाता है.
40 साल तक आपातकाल के गिरफ्त में रहा श्रीलंका
इतना ही नहीं, मार्च 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरसेना ने देश के कुछ हिस्सों में मुस्लिम विरोधी हिंसा को रोकने के लिए इमरजेंसी की घोषणा की थी. इस दौरान भड़की हिंसा में 2 लोगों की मौत हो गई थी, इसमें आगजनी और करोड़ों रुपये की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था. 1971 से कुछ संक्षिप्त अंतराल को छोड़ दिया जाए तो श्रीलंका करीब 40 साल तक आपातकाल के गिरफ्त में रहा है.
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कौन करता है देश में आपातकाल की घोषित?
देश में आपातकाल घोषित करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होती है. सविंधान के अनुच्छेद 155 के तहत राष्ट्रपति को ही सरकार का मुखिया माना जाता है. किसी भी देश का राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के तहत आर्थिक आपातकाल की घोषणा तब कर सकता है जब उन्हें लगता है कि देश में भारी आर्थिक संकट पैदा हो चुका है. यह सख्त कदम तब उठाया जाता है तब लगता है कि इस आर्थिक संकट के चलते देश के वित्तीय स्थायित्व को खतरा हो सकता है. राष्ट्रपति के बाद प्रधानमंत्री के पास यह शक्ति होती है कि वह देश में इमरजेंसी लागू कर सकते हैं.
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