BJP के लिए आसान नहीं होंगे आने वाले चुनाव, विपक्ष से ज्यादा टेंशन दे रहे ये मुद्दे, 'मोदी फैक्टर' पर टिकी निगाहें

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jun 19, 2023, 12:12 AM IST

PM Narendra Modi. 

BJP को एक बार फिर उम्मीद है कि मोदी फैक्टर असर करेगा. पार्टी के सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे पार पाना आसान नहीं है. कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी को बड़ी हार मिली है. अब एक बार फिर जेपी नड्डा से लेकर अमित शाह तक को नई रणनीति पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

डीएनए हिंदी: भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress) ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं. कांग्रेस, इस बार चुनावों को लेकर ज्यादा उत्साहित है. हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक जैसे अहम राज्यों में पार्टी ने स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाई है.

कांग्रेस का आत्मविश्वास हाल के दिनों में बढ़ गया है. बीजेपी का वोट बैंक प्रभावित हुआ है. दो राज्य गंवाना, बीजेपी जैसी पार्टी के लिए बड़ी बात है. इसका असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ सकता है. हिमाचल और दक्षिणी राज्य में मिली शर्मनाक हार से अपनी प्रतिष्ठा फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है.

राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में इस साल के अंत तक चुनाव होंगे. इन पांच राज्यों में से दो पर बीजेपी, दो पर कांग्रेस और एक पर के चंद्रशेखर राव (KCR) की भारत राष्ट्र समिति (BRS) सत्ता संभाल रही है.

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बीजेपी के पास क्या हैं चुनावी मुद्दे?

बीजेपी अब पूरी तरह से नरेंद्र मोदी के करिश्मे और हिंदुत्व के चुनावी मुद्दे पर निर्भर है. दोनों मुद्दे कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में विफल रहे, जिससे भगवा पार्टी को अपनी चुनावी रणनीति को फिर से तैयार करने के लिए मजबूर होना पड़ा. दूसरी ओर, विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में भगवा शक्ति का मुकाबला करने के लिए गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

अगर बीजेपी इन पांच राज्यों में से चार में जीत हासिल करने में नाकाम रहती है तो अगला संसदीय चुनाव पार्टी के लिए मुश्किल साबित हो सकता है. हालांकि एकजुट विपक्ष बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. अगर बीजेपी को चुनाव जीतना है तो कई जरूरी मुद्दों को बिना सुलझाए काम नहीं चलेगा.  बीजेपी के लिए विपक्ष से बड़ी चुनौतियां कौन सी हैं, अगर इन्हें नहीं सुलझाया गया तो बीजेपी की चुनावी डगर मुश्किल हो जाएगी, आइए समझते हैं.

'मुफ्त की रेवड़ी' BJP को दे रही टेंशन

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने तरह-तरह की मुफ्त योजनाओं का ऐलान किया है. बीजेपी की कल्याणकारी राजनीति इस पर कमजोर पड़ जाती है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया था कि नरेंद्र मोदी सरकार वोट-फॉर-फ्रीबी नीति का सहारा लेने के बजाय लोक कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को प्राथमिकता देती है.

मुफ्त बिजली की उपलब्धता, महिलाओं के लिए मुफ्त बस की सवारी और मुफ्त चावल निस्संदेह आबादी के एक हिस्से को लाभ पहुंचाता है. अब बीजेपी के लिए चुनौती यह है कि बीजेपी या तो इन योजनाओं को खुद भी अपने मेनिफेस्टो में शामिल करे या पहले की तरह इनका मुखरित विरोध करती रहे.

एलपीजी सिलेंडर भी टेंशन की है एक वजह

पिछले एक दशक में, सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर की कीमत में काफी इजाफा हुआ है. पहले लगभग 500 रुपये की कीमत वाले सिलेंडर की कीमत अब 1,150 रुपये है. सरकार ने ज्यादातर उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी समाप्त कर दी है. कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं. परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है, दैनिक मजदूरी कर रहे लोगों के लिए सिलेंडर भरा पाना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. महामारी के बाद स्थितियां मजदूरों के लिए और चुनौतीपूर्ण हो गई हैं.

पेट्रोल और दूध की कीमतें भी बढ़ा रही सरकार की मुश्किलें

मध्यम और निम्न-आय वाले परिवारों के लिए पेट्रोल और दूध की बढ़ती कीमतें टेंशन दे रही हैं. साल 2014 में पेट्रोल की कीमत करीब 70 रुपये थे, वहीं अब 97 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया है. फुल क्रीम दूध की कीमत 46 रुपये से बढ़कर 66 रुपये प्रति लीटर हो गई है. सरकार दूध की कीमतों पर नियंत्रण नहीं करती है लेकिन पेट्रोल की कीमतें कर सकती हैं. जनता पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों पर परेशान है. 

बेरोजगारी पेंशन योजना, BJP के लिए टेंशन योजना 

महिलाओं और शिक्षित बेरोजगार व्यक्तियों के लिए पेंशन का वादा कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में किया था. कांग्रेस पर युवाओं ने भरोसा जताया, जीत मिली. ऐसी योजनाओं, वोटरों को हमेशा से रिझाती रही हैं. यह वित्तीय मदद, एलपीजी सिलेंडर, दूध और सब्जियों की छोटी-मोटी जरूरतें पूरी कर सकती है.

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बार-बार चेहरा बदलती है बीजेपी, कहीं यही तो नहीं है घाटे की वजह

मुख्यमंत्रियों को चुनने और बदलने की बीजेपी की रणनीति कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में उलटी पड़ी है. कई राज्यों में मजबूत स्थानीय नेतृत्व का न होना बीजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है. हाल के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने इशारा किया है कि भले ही पीएम मोदी सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं लेकिन स्थानीय चेहरा भी जीत के लिए चाहिए.

सिर्फ मोदी फैक्टर के भरोसे ही जीत हासिल नहीं की जा सकती है. बीजेपी को जमीनी स्तर पर अपने संगठन को एक बार फिर मजबूत करना होगा. नई योजनाएं लानी होंगी. सिर्फ मोदी मैजिक के भरोसे 2024 का लोकसभा चुनाव और 2023 के विधानसभा चुनावों को जीत लेना, इतना आसान भी नहीं होगा. पार्टी को नए विकल्प तलाशने होंगे.

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