उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का एक लंबा राजनीतिक इतिहास रहा है. कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन कई बार जुड़ा है, कई बार टूटा है. एक बार फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक (India Bloc) उतरा है.
कांग्रेस (Congress) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने एक बार फिर हाथ मिलाया है. कई दौर की बैठकों के बाद दोनों पार्टियों के बीच सहमति बन पाई है.
समाजवादी पार्टी यूपी में कांग्रेस को 17 सीटें दे रही है. इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेस को यूपी जैसे राज्य में सीट मिलना, किसी चमत्कार की तरह है. वजह यह है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अपना गढ़ अमेठी गंवा चुके हैं.
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कांग्रेस को सिर्फ रायबरेली से जीत मिली थी, जहां से सोनिया गांधी सांसद हैं. जाहिर तौर पर इस गठबंधन से सपा को बड़ा फायदा होता नजर नहीं आ रहा है, अलबत्ता कांग्रेस का जनाधार बढ़ सकता है.
किन सीटों पर लड़ेगी कांग्रेस?
अमेठी
रायबरेली
कानपुर नहर
फतेहपुर सीकरी
बांसगांव
सहारनपुर
प्रयागराज
महराजगंज
वाराणसी
अमरोहा
झांसी
बुलंदशहर
गाज़ियाबाद
मथुरा
सीतापुर
बाराबंकी
देवरिया
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इन सीटों पर किसका घाटा-किसका मुनाफा?
सहारनपुर को छोड़ दें तो ये वही सीटें हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) मजबूत स्थिति में है. इन सीटों पर समाजवादी पार्टी खुद बहुत मजबूती से चुनाव लड़ती तो जीतना मुश्किल था. ऐसे में सपा ने कांग्रेस को टिकट थमा दिया है.
इन सीटों में रायबरेली, अमेठी, सहारनपुर, कानपुर और अमरोहा ऐसी सीटें हैं, जहां कांग्रेस को जीत मिल सकती है. बीजेपी ने यूपी में 80 का टार्गेट रखा है. अब हाल ये है कि सपा और कांग्रेस दोनों बराबर ही सीटें जीत सकती हैं.
कैसा रहा है कांग्रेस के साथ दोस्ती का अतीत?
साल 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा एक साथ आए थे. समझौते में 105 सीटें कांग्रेस को मिलीं. कांग्रेस के हाथ महज 7 सीटें आईं. ऐसे में कांग्रेस को सपा भी नहीं उबार पाई है. देखने वाली बात यह है कि इस बार दोनों की दोस्ती का अंजाम क्या होता है.
क्या बसपा के साथ गठबंधन जैसा होगा अंजाम
लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी ने मायावती के नेतृत्व वाले बसपा के साथ गठबंधन किया था. अंजाम ये हुआ कि खुद मजबूत स्थिति वाली सपा महज 5 सीटों पर सिमटी लेकिन मायावती के 12 सांसद जीत गए.
सपा का मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ है. ओबीसी का एक बड़ा तबका सपा को वोट करता है. कांग्रेस को सपा के साथ गठबंधन की स्थिति में वह तबका कांग्रेस का साथ दे सकता है लेकिन कांग्रेस के वफादार वोटर अब नहीं हैं.
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विधानसभा चुनावों प्रियंका गांधी की पूरी जोर आजमाइश के बाद भी कांग्रेस ढाक के तीन पात जैसी स्थिति में रही. स्थितियां अब भी नहीं बदली हैं. जहां बीजेपी जगह-जगह चुनावी रैली के मूड में आ गई है, वहीं राहुल गांधी भारत न्याय यात्रा निकाल रहे हैं.
कब सियासित समझेगा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व?
मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी जैसे नेता यूपी की जमीन से दूर हैं. ऐसे में उन्हें तो सपा की मेहनत का फायदा तो मिलता नजर आ रहा है लेकिन सपा को उनकी मेहनत का फायदा मिलेगा या नहीं, इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कहीं अखिलेश के साथ साल 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे रिपीट न हो जाएं. इस गठबंधन से कांग्रेस को तो फायदा है, अखिलेश को कितना है, यह चुनावी नतीजों के बाद ही पता चलेगा.
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