Loksabha Elections 2024 Ayodhya Results: 'अयोध्या में न मथुरा न काशी, सिर्फ अवधेश पासी.'... इस नारे को देते वक़्त शायद ही समाजवादी पार्टी ने किसी चमत्कार की उम्मीद की हो. मगर राजनीति में ऊंट किस करवट बैठ जाए कोई नहीं जानता. हिंदुत्व का गढ़ और देश की हॉट सीटों में शुमार फैज़ाबाद सीट के नतीजों ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है. इस सीट पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है. अयोध्या में समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद को 554289 वोट मिले हैं. वहीं भाजपा के लल्लू सिंह को 499722 वोटों के साथ संतोष करना पड़ा है.
चूंकि भाजपा ने इस सीट को गंवा दिया है. पूरी उम्मीद है कि इस हार से उसे बड़ा झटका इसलिए भी लगेगा क्योंकि अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण 1980 के दशक से ही भाजपा का चुनावी वादा रहा है. पार्टी के नेताओं के अलावा समर्थकों तक को इस बात का पूरा विश्वास था कि, राम मंदिर के बल पर 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी एक तरफ़ा जीत हासिल करेगी.
राम मंदिर के निर्माण और तमाम विकास प्रोजेक्ट के उपहार के बावजूद जिस तरह INDIA ब्लॉक और समाजवादी पार्टी अयोध्या में इतिहास रचने में कामयाब हुआ, हमें हैरान इसलिए भी नहीं होना चाहिए क्योंकि यहां हार की वजह स्वयं भाजपा और राम मंदिर है.
अयोध्या में भाजपा के साथ हुआ खेला
सही सुना आपने. वो भाजपा जिसके लिए उम्मीद जताई जा रही थी कि, वो फैज़ाबाद सीट पर इतिहास रचेगी. मगर यहां एक एक वोट के लिए जूझी. तो इसका कारण राम मंदिर ही है. यक़ीनन अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण और सड़कों का चौड़ीकरण कराकर भाजपा ने अपना बरसों पुराना वादा पूरा किया. मगर इसकी कीमत यदि किसी ने चुकाई तो वो वे अयोध्या वासी थे जो अयोध्या में बरसों से रह रहे थे.
अयोध्या में जिस तरह का ये खेल हुआ, उसकी एकमात्र वजह वो विकास कार्य है. जो राम मंदिर निर्माण के दौरान हुआ. आज भले ही एक शहर के रूप में अयोध्या ऊपर से चमक रही हो. मगर विकास के नाम पर चले बुलडोजर और जेसीबी ने उसे खोखला कर दिया.
शुरू शुरू में लोगों को लगा कि विकास होने से अयोध्या के दिन बहुरेंगे. मगर जब एक बार काम शुरू हुआ तो सरकारी मशीनरी ने किसी को भी नहीं देखा. चाहे वो लोगों के बरसों पुराने घर हों या फिर ठीक ठाक बिजनेस करती दुकानें, सब रामपथ और भक्तिपथ ( जो 13 किलोमीटर लंबा मार्ग है और नयाघाट को सआदतगंज से जोड़ता है) के नाम पर तोड़ दी गईं. बताया ये भी जाता है कि इस मार्ग के पुनर्निर्माण का हवाला देकर शासन द्वारा करीब 2200 दुकानें, 800 घर, 30 के आसपास मंदिर और 9 मस्जिदों को तोड़ा गया.
हो सकता है इतना पढ़कर कुछ लोग इस बात को कह दें कि यदि सरकार ने विकास कार्यों के नाम पर तोड़ फोड़ की तो लोगों को मुआवजा भी दिया. बिलकुल दिया. मगर कितना और किसको दिया इसका जवाब शायद ही कोई दिल्ली, मुंबई या पुणे वाला या फिर नोएडा के किसी चैनल में बैठा कोई पत्रकार दे पाए.
यदि इसे लेकर आप किसी अयोध्यावासी से सवाल करें तो मालूम चलेगा कि सरकार ने मुआवजा उन्हीं को दिया जिनके पास उनकी प्रॉपर्टी के पक्के कागज थे. ध्यान रहे अयोध्या में ज्यादातर भूमि या तो नजूल की है या फिर वक़्फ बोर्ड की और ऐसी जायदाद का किसी के पास पक्का कागज हो थोड़ा मुश्किल है.
गौरतलब है कि इससे लोग टूट गए यह फिर ये कहें कि ठीक ठाक लोग भी इसके चलते सड़कों पर आ गए. ज्ञात हो कि कई बार इन बातों को लेकर स्थानीय लोग जिला प्रशासन से मिले, लेकिन अधिकारियों की तरफ से उन्हें मुआवजे के नाम पर या तो आश्वासन दिया गया या फिर मुक़दमे की बात कहकर उन्हें डराया गया.
जातिगत समीकरण एक प्रभावी कारण
भाजपा द्वारा अयोध्या की सीट हारने के अन्य वजहों पर बात करें तो यहां जातिगत समीकरण भी हमें एक प्रभावी कारण की तरह नजर आता है. ध्यान रहे अखिलेश यादव गठबंधन के नाम पर पूर्व में दूध से जल चुके थे इसलिए इसबार उन्होंने छाछ भी फूंक फूंककर पी और कई ऐसे प्रयोग किये जो हैरान करने वाले थे.
जिक्र जातीय समीकरणों का हुआ है इसलिए ये बता देना जरूरी है कि अयोध्या में ओबीसी वोटर्स की एक बड़ी संख्या है जिसमें कुर्मियों और यादवों की बड़ी भागीदारी शामिल है. अयोध्या में ओबीसी 22% हैं. जबकि, दलित यहां दूसरे नंबर पर आते हैं. अयोध्या में दलितों की तादाद 21 प्रतिशत है और दिलचस्प ये कि पासी बिरादरी भी इसी में शामिल है. इसके अलावा अयोध्या में मुस्लिम आबादी 18 प्रतिशत, ठाकुर 6 पर्सेंट, ब्राह्मण 18 प्रतिशत और करीब 10% वैश्य हैं.
फ़ैजाबाद सीट सामान्य सीट थी मगर अखिलेश ने बहुत सावधानी से अपनी बिसात बिछाई और शहर की सबसे बड़ी दलित आबादी वाली पासी बिरादरी से अपने सबसे मजबूत पासी चेहरे अवधेश पासी को उम्मीदवार बनाया. अवधेश पासी छह बार के विधायक रह चुके हैं. इसके अलावा उनका शुमार समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में होता है. ये बात पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुई और अवधेश पासी से जैसी उम्मीद अखिलेश को थी, उन्होंने वैसी ही पारी खेली.
अवधेश पासी के मामले में दिलचस्प ये रहा कि वो न केवल अपनी बिरादरी को रिझाने में कामयाब हुए. बल्कि उन्हें चुनावी रण में देखकर कुर्मी और मुसलमान बिरादरियां भी उनकी तरफ आकर्षित हुईं और इसका नतीजा क्या निकला अवधेश की जीत के रूप में हमारे सामने है.
बहराहल इसमें कोई शक नहीं है कि अयोध्या के परिणाम चौंकाने वाले हैं. बावजूद इसके हम इतना जरूर कहेंगे कि अगर भाजपा ने अयोध्या में हार का मुंह देखा तो उसकी एक बड़ी वजह ओवर कॉन्फिडेंस भी है. चुनाव से पहले शायद उसे यही लगता था कि लोकसभा चुनावों में उसके लिए अयोध्या को जीतना बच्चों का खेल है. लेकिन भाजपा शायद ये भूल गई कि अखिलेश और राहुल गांधी रहे होंगे कभी, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अब वो बच्चे नहीं हैं.
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