डीएनए हिंदी: मणिपुर में मैतेई, कुकी और नागा समुदाय के बीच भड़की हिंसा खत्म नहीं हो रही है. सरकार की ओर से उठाए गए कदम अब तक नाकाफी साबित हो रहे हैं. राज्य में अराजकता का माहौल है. सोशल मीडिया अफवाहों का बाजार भी गर्म है. हर दिन हिंसा एक नए पड़ाव पर पहुंच गई है. विद्रोहियों के अलग-अलग गुट गांवों में भी तैयार हो रहे हैं. आत्मसुरक्षा के नाम पर आम आदमी हथियार उठा रहे हैं.
बहुसंख्यक मैतेई और अल्पसंख्यक कुकी समुदाय में हिंसक झड़पें हो रही हैं. राज्य में लगातार झड़पों की वजह से नागा, नेपाली और तमिल जैसे कई समुदाय डर के माहौल में जी रहे हैं. मैतेई और कुकी दोनों समुदाय, एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं.
मणिपुर की एन बीरेन सिंह सरकार पर न केवल दंगों को बढ़ावा देने बल्कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ साथ देने के भी आरोप लग रहे हैं. यह देश के लिए एक बड़ा सवाल यह है कि कैसे वहां दोबारा शांति बहाल हो सकती है. यह वही जामीन है जहां आज़ाद हिंद सेना के बहादुर योद्धाओं ने अपना खून बहाया. देश के बाकी हिस्से से बहुत पहले यहां तिरंगा लहरा चुका था. आइए समझते हैं कैसे मणिपुर में जारी हिंसा थम सकती है.
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राष्ट्रपति शासन की है राज्य में जरूरत
राज्य में विपक्षी पार्टियों ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार न केवल स्थिति को नियंत्रित करने में फेल रही है, बल्कि एक विशेष समुदाय के दंगाइयों की खुलेआम मदद भी की. जनजातीय समूह का सरकार से भरोसा उठ रहा है. राज्य में शांति लाना मुश्किल होता जा रहा है. विपक्ष का कहना है कि राज्य में तत्काल राष्ट्रपति शासन लगे.
AFSPA का वापस लौटना है जरूरी
मणिपुर राज्य सरकार ने हाल ही में मार्च 2023 में इम्फाल घाटी से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को हटा दिया है. राज्य में लगातार हिंसक हथियारों से विद्रोह हो रहे हैं. जगह-जगह बमबाजी हो रही है. घाटी में उग्रवादियों की फौज सक्रिय हो गई है. पूरे मणिपुर में तत्काल प्रभाव से AFSPA लागू करने की पुरजोर सिफारिश हो रही है. राज्य में उग्रवादी समुदायों के खिलाफ एक्शन लेने में सरकार को इससे मदद मिलेगी.
महिलाएं बनी हैं उग्रवादियों की ढाल
मणिपुर में महिलाएं उग्रवादियों के लिए ढाल बन गई हैं. उनकी आड़ लेकर उग्रवादी गांवों तक हथियार पहुंचा रहे हैं. जब भी सुरक्षाबल उग्रवादियों की गिरफ्तारी के लिए दबिश देते हैं, महिलाओं को आगे कर दिया जाता है. ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जब महिलाओं ने पुलिस के चंगुल से उग्रवादियों को मुक्त करा लिया है.
सुरक्षाबल इस वजह से अल्पसंख्यक समुदायों के जलते गांवों तक पहुंच नहीं सके. इस पर लगाम लगाने की जरूरत है. राज्य में असम राइफल्स और भारतीय सेना में मुख्य रूप से पुरुष सैनिक तैनात हैं, इसलिए उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल है. इस समय, इस खतरे को नियंत्रित करने के लिए मणिपुर में सीआरपीएफ, आरएएफ और अन्य अर्धसैनिक बलों की महिला बटालियनों को लाना जरूरी हो गया है.
अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन जैसे गुटों के खिलाफ एक्शन की जरूरत
ये दोनों समूह अपने नेताओं के उग्र भाषणों और दंगों में उनकी सीधी भागीदारी के कारण खबरों में हैं. आज तक, इनके खिलाफ मणिपुर राज्य सरकार कोई भी कार्रवाई करने में विफल रही है. केंद्र सरकार की ओर से उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई से न केवल हिंसा को रोकने में मदद मिलेगी बल्कि अन्य समुदायों का विश्वास भी बढ़ेगा. मणिपुर में शांति बहाली के लिए यह अनिवार्य है.
हिंसक क्षेत्रों में बफर जोन बनाएं
कई ऐसी जगहें हैं जहां हिंसक समुदाय उग्रवादियों के संपर्क में हैं. केंद्रीय सुरक्षा बलों को इन गांवों या इलाकों के बीच अस्थायी बफर जोन स्थापित करना चाहिए जिससे दंगाई एक तरफ से दूसरी तरफ न जा सकें. राज्य में पूर्ण शांति होने तक इन बफर जोन से अतिक्रमण पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
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कुकी उग्रवादियों पर लगाम
कुकी उग्रवादी गुटों पर भी हिंसा में सक्रिय भाग लेने का आरोप है. केंद्र सरकार को प्रभावित इलाकों में सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) समूहों पर सख्त लगाम लगाने की जरूरत है. उन्हें अपने शिविरों तक ही सीमित रहना चाहिए. उनके सभी हथियारों का अच्छी तरह से हिसाब रखना चाहिए. हुसंख्यक समुदाय का विश्वास जीतने के लिए भी यह जरूरी है.
ड्रग सिंडिकेट के अपराधी हों गिरफ्तार
ड्रग का कारोबार हिंसा के प्रमुख कारणों में से एक रहा है. बड़ी संख्या में कुकी परिवार सीमावर्ती पहाड़ियों में अफीम की खेती कर रहे हैं. जांच का मुद्दा यह है कि इस व्यवसाय के सरगना कौन हैं? नशीली दवाओं का कारोबार इस पैमाने पर आतंकवादी समूहों और राजनेताओं की मदद के बिना फल-फूल नहीं सकता है. मुख्य अपराधियों को पकड़ना केंद्र सरकार का कर्तव्य है, जिससे नशीली दवाओं के खतरे पर अंकुश लगाया जा सके. पोस्ता के खेतों को जलाने से सीमित और अस्थायी कामयाबी हासिल होगी.
कुकी, मैतेई और नगा समुदायों के नेताओं से बातचीत की है जरूरत
लंबे समय तक शांति के लिए समुदाय और धार्मिक नेताओं को शामिल करने की जरूरत है. मैतेई समुदाय चाहता था कि उसे जनजाति का दर्जा मिल जाए. कुकी समुदाय को इस पर ऐतराज था. हिंसा के मूल में यही था. दोनों समुदाय इस मुद्दे के लिए ही एक-दूसरे के जान के प्यासे बने हैं. इन समुदायों के नेताओं से बातचीत करने की सख्त जरूरत है.
हर समुदाय पर केंद्र की पैनी नजर है जरूरी
मणिपुर राज्य सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि हिंसा प्रभावित लोगों के बीच राहत सामग्री का बंटवारा पक्षपातपूर्ण तरीके से हो रहा है. केंद्र सरकार को हर समुदाय की स्थिति पर पैनी नजर रखनी चाहिए. जो गांव हिंसा में जल गए हैं, वहां तत्काल मदद की जरूरत है. केंद्र सरकार को अब मणिपुर की कमान पूरी तरह से संभाल लेनी चाहिए, नहीं तो हालात, कभी नहीं संभलेंगे.
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