'जंगल-जमीन और हक की लड़ाई', वो वजहें जो कर रही मणिपुर को खोखला

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jul 30, 2023, 09:44 PM IST

मणिपुर में उग्रवादी गुटों की वजह से मुश्किल हुए हालात.

मणिपुर के जातीय संघर्ष के मूल में आदिवासी भूमि अधिकारों की लड़ाई है. मैतेई, कुकी और नगा जनजातियों की यह लड़ाई, अपने सबसे हिंसक दौर में पहुंच गई है. आइए जानते हैं इस हिंसा के मूल में क्या है.

डीएनए हिंदी: मणिपुर (Manipur) में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच भड़की हिंसा नई नहीं है. पूर्वोत्तर के राज्यों में जनजातीय संघर्ष का इतिहास पुराना है. सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के लागू होने की वजह, पूर्वोत्तर के राज्यों का संघर्ष ही है. यह संघर्ष 3 दशक से ज्यादा पुराना है. कुकी समुदाय का संघर्ष, दूसरे जनजातियों से होता रहा है. मणिपुर से लेकर नागालैंड तक, जनजातीय टकराव अंतहीन रहे हैं.

कुकी और उनकी उप-जनजातियां मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा म्यांमार और दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश में चटगांव पहाड़ी इलाकों में रहने वाली पहाड़ी जनजातियां हैं. पूर्वोत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक और जातीय रूप से विविध है, जिसमें अलग-अलग भाषाओं, बोलियों और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले 200 से अधिक जातीय समूह हैं, जिनमें मणिपुर की 34 जनजातियां शामिल हैं.

ऑल ट्राइबल स्‍टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद 3 मई को मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा में 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और 600 से अधिक घायल हुए हैं.

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पहाड़ी बनाम मैदानी संघर्ष की नींव है पुरानी 

कुकी आदिवासियों को लगा कि अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिल जाता है, तो भूमि अधिकार सहित उनके विभिन्न अधिकार कम हो जाएंगे और मैतेई लोग उनकी मौजूदा जमीन खरीदकर वहां रह सकेंगे. गैर-आदिवासी मैतेई और कुकी आदिवासियों के बीच चल रहे संघर्ष को पहाड़ी बनाम मैदानी संघर्ष भी कहा जा सकता है.

मणिपुर की 30 लाख आबादी में मैतेई लोगों की हिस्सेदारी 53 फीसदी है, जबकि आदिवासी समुदायों की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है. इनमें से नागा जनजातियां 24 प्रतिशत और कुकी/ज़ोमी जनजातियाँ 16 प्रतिशत हैं. घाटी क्षेत्र, जहां मैतेई लोग रहते हैं, मणिपुर के कुल भौगोलिक क्षेत्रों का लगभग 10 प्रतिशत हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र शामिल हैं.

खून से सना है पूर्वोत्तर के जातीय संघर्ष का इतिहास

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-इसाक-मुइवा गुट के उग्रवादियों ने 13 सितंबर 1993 को मणिपुर की पहाड़ियों में लगभग 115 कुकी नागरिकों की हत्या कर दी. हालांकि, नागा संगठन हत्याओं की ज़िम्मेदारी से इनकार करता है. वर्ष 1990 में जमीन को लेकर झड़पें हुईं. 

कुकी अक्सर दावा करते थे कि उनके 350 गांव उजड़ गए; 1,000 से अधिक लोग मारे गए; और 10,000 लोग विस्थापित हुए. वर्ष 1993 में मैतेई पांगल और मैतेइयों के बीच झड़पें हुईं. मुस्लिम यात्रियों को ले जा रही एक बस में आग लगा दी गई और 100 से अधिक लोग मारे गए.

उग्रवादियों का गढ़ रहा है मणिपुर

मणिपुर में बड़ी संख्या में उग्रवादी संगठन थे और हिंसा बड़े पैमाने पर विद्रोहियों द्वारा भड़काई गई थी. दो समूहों के तहत कुल 23 भूमिगत संगठन वर्तमान में अगस्त 2008 से केंद्र सरकार के सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SOO) के तहत हैं. इनमें आठ यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) के तहत और 15 कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) के तहत हैं.

मणिपुर में विद्रोही गुटों का है बोलबाला, नहीं करते सरकार में यकीन

मणिपुर मैतेई, नागा, कुकी, ज़ोमी और हमार विद्रोही समूहों की गतिविधियों से भी प्रभावित है. पूर्वोत्तर राज्यों के विद्रोही समूहों द्वारा अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए, कुल 16 विद्रोही संगठनों ने गैरकानूनी गतिविधियां (UAPA) अधिनियम, 1967 के तहत गैरकानूनी संघ और आतंकवादी संगठन घोषित किया है. इन 16 में से आठ मणिपुर से हैं. 

ये हैं पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेईपाक (पीआरईपीएके), कांगलेइपक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), कांगलेई याओल कनबा लुप (केवाईकेएल), समन्वय समिति (कोर-कॉम), एलायंस फॉर सोशलिस्ट यूनिटी कांगलेइपाक (एएसयूके), और मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (एमपीएलएफ), एनएससीएन-आईएम और पड़ोसी नागालैंड में अन्य नागा संगठनों ने 1997 में केंद्र के साथ युद्धविराम समझौता किया था, मणिपुर घाटी स्थित उग्रवादी संगठन (मैतेई समूह) जैसे यूएनएलएफ, पीएलए, केवाईकेएल आदि अभी तक वार्ता के लिए तैयार नहीं हुए हैं.

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कुल 2,266 कुकी कैडर 22 अगस्त 2008 को केंद्र और मणिपुर सरकारों द्वारा त्रिपक्षीय सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) पर हस्ताक्षर करने के बाद से मणिपुर में विभिन्न नामित शिविरों में रह रहे हैं, जब कांग्रेस मणिपुर में सत्ता में थी.

अफीम की खेती, जंगल की जमीन और हक की लड़ाई

मणिपुर में अधिकारियों ने आरोप लगाया कि कुकी नेशनल आर्मी, ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी और कुकी रिवोल्यूशनरी आर्मी के कैडर राज्य में अफीम की खेती करने वालों को सरकार के खिलाफ भड़का रहे हैं क्‍योंकि सरकार अवैध अफीम की खेती करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. वन भूमि में, विशेष रूप से आरक्षित और संरक्षित वनों में अफीम के खेतों को वह नष्ट कर रही है. हालांकि, कुकी संगठनों के एक प्रमुख संगठन ने आरोपों को खारिज कर दिया है.

आदिवासियों ने 10 मार्च को तीन पहाड़ी जिलों में अवैध अफीम की खेती करने वालों और वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ राज्य सरकार की कार्रवाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था जिन्हें कथित तौर पर कुकी उग्रवादियों का भी समर्थन प्राप्त था.

कई जगहों पर रैलियां हिंसक हो गईं, जिसमें कई लोग घायल हो गए. मणिपुर सरकार ने अगले ही दिन एकतरफा तौर पर एसओओ सौदे से खुद को अलग कर लिया. हालाँकि, केंद्र सरकार ने अभी तक सस्‍पेंशन ऑफ ऑपरेशन समझौते से हटने के मणिपुर सरकार के फैसले को मंजूरी नहीं दी है.

ड्रग्स का धंधा भी हिंसा की है एक वजह

मणिपुर सरकार ने यह भी दावा किया कि म्यांमार के अप्रवासी सीमा पार से आकर अवैध अफीम की खेती और नशीली दवाओं के व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं. कुकी इंडिपेंडेंट आर्मी ने 9 अप्रैल को म्यांमार की सीमा से लगे चुराचांदपुर जिले के चुंगखाओ में अपने निर्दिष्ट शिविरों में रहने वाले कुकी आतंकवादी समूहों के शस्त्रागार से 25 अत्याधुनिक हथियार लूट लिए.

मणिपुर पुलिस ने कुकी इंडिपेंडेंट ऑर्गनाइजेशन के आतंकवादियों की ओर से हथियारों की लूट की जांच शुरू की, जो सरकारों के साथ त्रिपक्षीय युद्धविराम समझौते का गैर-हस्ताक्षरकर्ता है. हथियारों की लूट मणिपुर पुलिस द्वारा केआईए प्रमुख थांगखोंगम हाओकिप की गिरफ्तारी के लिए सूचना देने वाले को 50,000 रुपये का इनाम देने की घोषणा के तीन दिन बाद हुई.

कुकी-चिन उग्रवादी ने छेड़ी है 'जंगल-जमीन और हक' की लड़ाई

दक्षिणी मणिपुर के पहाड़ी और वनाच्‍छादित चुराचांदपुर जिले में, जो म्यांमार और मिजोरम की सीमा पर है, कई कुकी-चिन उग्रवादी समूहों का गढ़ है. लगभग डेढ़ दशक पहले जब से गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय के सदस्यों ने उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत करने की मांग शुरू की, तब से कुकी आदिवासी और उनके अलग-अलग संगठन इस मांग का पुरजोर विरोध करते हुए कहते रहे हैं कि यदि मैतेई समुदाय को आदिवासी घोषित किया जाता है तो आदिवासियों के रूप में लाभ की हिस्सेदारी कम कर दी जाएगी और समुदाय के लोगों को पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन खरीदने की अनुमति दी जाएगी.

क्या अलगाव से ही निकलेगी शांति की राह?

जातीय हिंसा के बीच कुकी समुदाय के 10 आदिवासी विधायकों ने मणिपुर आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग की है. सत्तारूढ़ बीजेपी के सात विधायकों सहित 10 विधायकों ने अपनी मांग के समर्थन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक ज्ञापन भी भेजा. केंद्रीय विदेश और शिक्षा राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में कहा कि यह मांग कुकी उग्रवादियों सहित विभिन्न हलकों के भारी दबाव में की गई थी. (इनपुट: IANS)

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