Nagaland violence: जानें क्या है AFSPA कानून और क्यों हो रहा इतना विवाद

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Dec 07, 2021, 05:37 PM IST

पूर्वोत्तर में आफस्पा पर बवाल

नागालैंड में हालिया हिंसा के बाद से एक बार फिर विवादित AFSPA कानून हटाने की मांग जोर पकड़ रही है. जानें इस कानून से जुड़े सभी पहलू.

डीएनए हिंदी: नागालैंड के मोन जिले में सिलेसिलेवार गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत हो गई. इस घटना की गूंज नागालैंड की सड़कों से लेकर संसद तक सुनाई दे रही है. घटना के बाद स्थानीय लोग आक्रोश में हैं और AFSPA (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट) हटाने की मांग कर रहे हैं. आइए समझते हैं क्या है आफस्पा और इसे हटाने की क्यों उठती रहती है मांग? 

क्या है आफस्पा कानून 
पूर्वोत्तर के राज्यों में अलगाववादी गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव को देखने के बाद 11 सितंबर 1958 को आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट पारित किया गया था. संविधान के तहत यह प्रावधान है कि अशांत क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आफस्पा कानून लागू किया जा सकता है. हालांकि, अशांत क्षेत्र या डिस्टर्ब्ड एरिया घोषित करने के लिए डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट है. 

1990 में कश्मीर में लागू हुआ आफस्पा 
1900 में जम्मू-कश्मीर में बढ़ती आतंकी गतिविधियां और असामान्य परिस्थितियों को देखते हुए आफस्पा लागू किया किया गया. आफस्पा कानून किसी प्रदेश में तभी लगाया जा सकता है जब वहां की सरकार क्षेत्र को अशांत घोषित कर दे. पंजाब और चंडीगढ़ भी कुछ समय के लिए इस कानून के जद में आए थे, लेकिन 1997 में वहां इसे खत्म कर दिया गया. 

16 साल भूख हड़ताल पर रहीं  इरोम शर्मिला
मणिपुर से आफस्पा हटाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला 16 सालों तक भूख हड़ताल पर रहीं. इरोम के इस संघर्ष को देश ही नहीं कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पहचान मिली. 

पूर्वोत्तर की जनता करती रही है आफस्पा का विरोध 
स्थानीय नागरिकों की मौत की घटना के विरोध में एक बार फिर नागालैंड के लोग सड़कों पर हैं. हालांकि, इससे पहले भी कई बार इस विवादित कानून को हटाने की मांग होती रही है. आफस्पा कानून हटाने के पीछे सबसे मजबूत तर्क दिया जाता है कि यह सशस्त्र सेना को असीमित अधिकार देती है. इस कानून का सेना बलों के द्वारा दुरुपयोग का दावा स्थानीय नागरिक करते रहे हैं. 

अंतरराष्ट्रीय संगठन भी करते रहे हैं आफस्पा का विरोध 
आफस्फा का विरोध मानवाधिकार कार्यकर्ता, अंतरराष्ट्रीय संगठन भी करते रहे हैं. 31 मार्च, 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि लोकतंत्र में आफस्पा का कोई स्थान नहीं है. इसे रद्द किया जाना चाहिए. ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी इसकी आलोचना की है. 

आफस्पा के पक्ष में भी हैं तर्क 
कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में अलगाववादी गतिविधियों को देखते हुए सेना बल और सरकार कई बार इसका समर्थन कर चुकी हैं. इसके पक्ष में सबसे मजबूत दलील राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों पर नकेल कसने का दिया जाता है.  

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