भारत में पहली बार कब हुआ था नार्को टेस्ट? आफताब से पहले ये अपराधी उगल चुके हैं राज

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Dec 01, 2022, 11:33 AM IST

Narco Test

What Is Narco Test: नार्को टेस्ट को ट्रुथ सीरम के रूप में भी जाना जाता है. इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब कोई अपराधी बार-बार अपना बयान बदल रहा हो.

डीएनए हिंदी: दिल्ली के चर्चित श्रद्धा हत्याकांड (Shraddha Murder Case) के आरोपी आफताब पूनावाला का नार्को टेस्ट किया जा रहा है. नार्को टेस्ट के बाद उम्मीद की जा रही है कि श्रद्धा का मामला सुलझ जाएगा और पुलिस को सारे सबूत मिल जाएंगे. क्योंकि आरोपी आफताब पुलिस पूछताछ में सही जवाब नहीं दे रहा है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब कोई अपराधी सच को छुपाने के लिए बार-बार अपना बयान बदल रहा हो. इससे पहले भी निठारी कांड, आरुषि मर्डर केस समेत कई संगीन अपराधों में आरोपी सच को छुपाते नजर आए थे. ऐसे में पुलिस को सच को सामने लाने के लिए आरोपियों का नार्को टेस्ट कराना पड़ा था. आइये सबसे पहले जानते हैं कि नार्को टेस्ट होता क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है?

नार्को टेस्ट (Narco Test) को ट्रुथ सीरम के रूप में भी जाना जाता है. नार्को ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है एनेस्थीसिया. नार्को एनालिसिस का उपयोग मनोचिकित्सा की एक ऐसी तकनीक के लिए होता था, जिसमें साइकोट्रोपिक दवाओं (खासकर बार्बिटुरेट्स) का उपयोग किया जाता था. इसको तब कराया जाता है जब कोई अपराधी सच को छुपाने के लिए बार-बार अपने बयान को बदल रहा हो. कोर्ट की अनुमित के बाद ही इस टेस्ट की इजाजत होती है.  इस टेस्‍ट में एक दवा सोडियम पेंटोथल(sodium pentothal), स्कोपोलामिन (scopolamine) और सोडियम एमिटल (Sodium Amytal) को मनुष्य के शरीर में इंजेक्शन के जरिए दिया जाता है.

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यह दवा नस के जरिए थोड़ी देर बाद मनुष्य के खून में फैल जाती है और वह हिप्नोटिक ट्रान्स की हालत में चला जाता है. इससे उसकी झिझक या झूठ बोलने की प्रवृत्ति कम हो जाती है. ऐसे में वह बेझिझक होकर उन सब बातों जवाब दे देता है, जिनका जवाब उसके होशोहवास में रहने पर देने की संभावना ना के बराबर होती है. इससे जांच एजेंसियों को वे जानकारियां भी मिल जाती हैं, जो सबूत नहीं होने के कारण नहीं मिल पाती हैं.

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भारत में पहली बार कब हुआ नार्को टेस्ट?

नार्को टेस्ट कौन करता है? 
नार्को टेस्ट को फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक एक टीम मिलकर करती है. इस दौरान सुस्त अवस्था में सोच रहे व्यक्ति से सवाल किए जाते हैं. जिनका वह सही जवाब देता है. ट्रुथ ड्रग देने के बाद एक्सपर्ट की टीम पहले यह जानने की कोशिश की करती है कि इंजेक्शन सही से काम कर रहा है या नहीं. इसके लिए उस व्यक्ति से पहले आसान सवाल पूछे जाते हैं, जैसे उसका नाम क्या है, उसका, परिवार आदि. इसके बाद उसके व्यवसाय के बारे में पूछा जाता है. जैसे अगर वह वकील है तो उससे पूछा जाएगा कि आप डॉक्टर हो. इससे यह पता चल जाता है कि वह सच बोल रहा है या झूठ. फिर उससे उस घटना से जुड़े सवाल किए जाते हैं.

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