डीएनए हिंदी: नोएडा के सुपरटेक टि्वन टावर (Supertech Twin Tower) को सिर्फ़ 8-9 सेकंड में जमींदोज़ कर दिया गया. 30-32 मंजिला ऊंची इमारतों को गिराने के लिए साइंस और टेक्नोलॉजी का ऐसा इस्तेमाल किया गया कि कुछ मीटर दूर ही खड़ी दूसरी इमारतों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. हालांकि, अभी नुकसान की समीक्षा की जा रही है लेकिन फौरी तौर पर यही कहा जा रहा है कि कहीं कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है. इस पूरी घटना में सबसे चर्चित शब्द है 'कंट्रोल्ड ब्लास्ट' (Controlled Blast). यही वह तरीका जिससे इस ध्वस्तीकरण को चुटकियों में अंजाम दे दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह तय हो गया था कि भ्रष्टाचार करके और गलत तरीके से बनाए गए इन टावरों को गिराना ही होगा. कई बार इसकी डेडलाइन बदली लेकिन आखिर में यह तय हुआ कि 28 अगस्त को इन दोनों टावरों को गिराया जाएगा. टावरों को गिराने के लिए Edifice इंजीनियरिंग और दक्षिण अफ्रीका की कंपनी जेट डिमोलिशन को काम मिला. आइए समझते हैं कि कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग और इम्पलोजन क्या होता है जिसकी वजह से इन टावरों को आसानी से गिराया जा सका.
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Controlled Blasting क्या होती है?
सोशल मीडिया, टीवी और हर तरह की खबरों में कंट्रोल्ड ब्लास्ट शब्द ही सबसे ज्यादा चर्चा में है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़ी इमारतों को गिराने के लिए यही तरीका सबसे कारगर साबित होता है. कोयले और अन्य धातुओं की खदानों में ब्लास्ट के लिए यही तरीका अपनाया जाता है. इसमें कोशिश की जाती है कि जगहों तो चिह्नित किया जाए उनके ब्लास्ट की मात्रा और समय भी अपने हिसाब से निर्धारित किया जा सके. कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें ब्लास्ट की वजह से होने वाले वाइब्रेशन, ब्लास्ट की इंटेंसिटी और उसका समय कंट्रोल किया जा सकता है.
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नोएडा के ट्विन टावरों में भी कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग करने के लिए जेट डेमोलिशन ने कुछ तय जगहों पर ड्रिलिंग की और उनमें लगभग 3700 किलोग्राम विस्फोटक पदार्थ लगाए गए. इन विस्फोटकों को इस सीरीज में इस तरह से साधा गया था कि कि वे एक क्रम में एक के बाद एक करके फटें. विस्फोटकों को इस तरह से ब्लास्ट करने का ही नतीजा है कि यह इमारत टेढ़ी होकर किसी दूसरी इमारत पर नहीं गिरी और अपने बेस पर ही धराशायी हो गई.
Implosion क्या होता है?
विस्फोट के लिए अंग्रेजी के शब्दों Explosion और Implosion का इस्तेमाल होता है. इनमें अंतर सिर्फ़ इतना है कि Implosion में जो धमाका होता है वह अंदर की दिशा की ओर होता है. जैसे बम का धमाका होने पर सबकुछ बाहर की ओर भागता है, ठीक उसका उल्टा. नोएडा के ट्विन टावरों के धमाके का वीडियो देखकर आप भी समझेंगे के ब्लास्ट के बाद बिल्डिंग का कोई भी हिस्सा बाहर की ओर नहीं गिरी. Implosion का इस्तेमाल करने की वजह से इमारत के जिन हिस्सों में ब्लास्ट हुआ वहां से मलबा अंदर की ओर गिरा बिल्डिंग अंदर की ओर ही टूटती चली गई.
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Implosion और कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग के तरीके से घरों या इमारतों को गिराने के लिए बिल्डिंग के कुछ-कुछ हिस्सों को इस तरह से तोड़ दिया जाता है कि धमाका करने पर यह बिल्डिंग अपने ही ऊपर गिर पड़े. ऐसा करने के लिए ऊपर से नीचे तक ऐसे पॉइंट चुने जाते हैं जिन पर बिल्डिंग का पूरा भार टिका होता है. सबसे पहले निचले हिस्से में धमाका किया जाता है. इसके बाद नीचे से ऊपर की ओर धमाका होता जाता है और बिल्डिंग के फ्लोर एक के ऊपर एक गिरते जाते हैं. इस तरह गिरने के बावजूद मलबा ज्यादा असरदार नहीं होता क्योंकि ऊपर की मंजिलें भी विस्फोट से ध्वस्त हो चुकी होती हैं. एक ब्लास्ट से दूसरे ब्लास्ट के बीच इतना मामूली अंतर होता है कि आम लोगों को यही समझ आता है कि धमाका एकसाथ हुआ है.
विस्फोट के बाद क्या होगा?
ट्विन टावरों को ढहाने की वजह से लगभग 80,000 टन मलबा तैयार हो गया है. इस पूरे मलबे को हटाने में लगभग 3 महीने का समय लगेगा. नोएडा अथॉरिटी के जनरल मैनेजर इश्तियाक अहमद के मुताबिक, 21,000 क्यूबिक मीटर मलबे को एक खाली जमीन पर डंप किया जाएगा. बाकी बचे मलबे को टावरों के बेसमेंट में बनाए गए गड्ढे में ही छोड़ दिया जाएगा.
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