Noida Twin Towers Demolition: मलबे से बनाई जाती है शानदार सड़क, जानिए पूरी इंजीनियरिंग

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Aug 28, 2022, 10:30 PM IST

नोएडा ट्विन टावर हुए धराशायी

Noida Twin Tower Waste: नोएडा के ट्विन टावरों को गिराने से लगभग 80,000 टन मलबा निकलने का अनुमान लगाया जा रहा है. इस मलबे का सही से इस्तेमाल बेहद ज़रूरी है ताकि पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे.

डीएनए हिंदी: नोएडा के दो टावरों (Noida Twin Towers) को ब्लास्ट से गिराए जाने के बाद उनके मलबों के बारे में चर्चा शुरू हो गई है. हजारों टन मलबे के बारे में लोगों के मन में सवाल है कि आखिर इसका क्या किया जाएगा. खुले में मलबा (Construcion Waste) पड़ा रहने से आसपास के लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है और हवा भी खराब होती है. यही कारण है कि भारत के साथ-साथ दुनियाभर के अलग-अलग देशों में मलबे का इस्तेमाल कई कामों में किया जाता है. मलबे का रीसाइकल और रीयूज करके न सिर्फ़ प्रदूषण को कम किया जा सकता है बल्कि सड़क निर्माण जैसे कामों में मलबे का इस्तेमाल सड़कों को भी मजबूत बनाता है.

भारत में कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री का कूड़ा यानी रेत, सीमेंट, ईंट और कॉन्क्रीट का मलबा काफी बड़ी समस्या है. इसका सही तरह से निस्तारण न हो पाने की वजह से बड़े शहरों में खराब हवा भी आम लोगों की तकलीफ का कारण बनती जा रहा है. कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन (C एंड  D) वेस्ट को लेकर कोई तय नीति भी नहीं है. भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक, हरसाल लगभग 1 करोड़ टन से ज्यादा C एंड D वेस्ट पैदा होता था.

यह भी पढ़ें- Noida Twin Tower ने माधुरी दीक्षित के जरिए बयां किया अपना दर्द? वायरल हुए मजेदार मीम

करोड़ों टन C एंड वेस्ट हर साल होता है तैयार
साल 2013 में ही यह बढ़कर 53 करोड़ टन तक पहुंच गया था. इस मलब को खाली जमीन पर अवैध रूप से डंप कर दिया जाता है. ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब मलबों का इस्तेमाल करके तालाब और झील जैसी प्राकृतिक संरचनाओं को पहले पाट दिया गया और फिर धीरे-धीरे उन पर कब्जा कर लिया गया. इसी तरह की चीजों से निपटने के लिए अब इस मलबे का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है.

भारत में दो साल पहले तक C एंड D वेस्ट को अलग कचरा ही नहीं माना जाता था. साल 2016 में कंस्ट्रक्शन एंड जिमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स को नोटिफाई किया गया. इसकी वजह से इस तरह के मलबे को आम कचरे से अलग माना जाने लगा. अब भारत के सड़क और राजमार्ग मंत्रालय और NHAI जैसी संस्थाओं ने सड़क निर्माण में इस तरह के वेस्ट का इस्तेमाल शुरू कर दिया है.

यह भी पढ़ें-  नोएडा ट्विन टावर: न कोई बिल्डिंग गिरी, न कुछ टूटा, समझिए क्या है वो टेक्नोलॉजी जिसने 9 सेकंड में कर दिया खेल

शहरी विकास मंत्रालय ने PWD और एनबीसीसी को कहा है कि वे सड़क निर्माण में C & D वेस्ट का इस्तेमाल करें. इसके लिए बाकायदा मानक तय किए गए हैं और किसी भी कंस्ट्रक्शन में सॉलिड वेस्ट का इस्तेमाल BIS स्टैंडर्ड के मुताबिक ही किया जा सकता है. भारी निर्माण में इसका 25 फीसदी इस्तेमाल ही किया जा सकता है. वहीं, हल्के निर्माण के लिए 100 फीसदी तक भी इस वेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सड़क बनाने में कैसे होता है मलबे का इस्तेमाल?
कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री से निकलने वाले मलबे को कई कैटगरी में बांटा जाता है. इसमें से मिट्टी और बारीक मलबे को अलग कर लिया जाता है. ईंट और कॉन्क्रीट को अलग से रखा जाता है. सीमेंट वाले कॉन्क्रीट के मलबे को रीसाइकल्ड कॉन्क्रीट ऐग्रेगेट्स यानी आरसीए कहा जाता है. वहीं, ईंट और अन्य ठोस मलबे वाले वेस्ट को रीसाइकल्ड ऐग्रेगेट्स (आरए) कहा जाता है. कैटगरी के हिसाब से ही इनको अलग-अलग कामों में इस्तेमाल किया जाता है.

यह भी पढ़ें- क्या होगा ब्लास्ट के बाद, कैसे हटेगा मलबा, जानें इन सभी सवालों के जवाब

साथ ही, कैटगरी के हिसाब से ही इनके इस्तेमाल का प्रतिशत भी तय किया जाता है. सीमेंट वाली ईंट, गमले, पॉटहोल या इस तरह की हल्की चीजें बनाने में तो आरए या आरसीए का इस्तेमाल 100 फीसदी किया जा सकता है. दूसरी तरफ, सड़क या अन्य भारी चीजें बनाने के लिए इसका अधिकतम 25 प्रतिशत तक इस्तेमाल किया जा सकता है. बाकी का मटीरियल नया ही इस्तेमाल करना होगा. सड़क निर्माण के लिए बेस तैयार करने या निचली सतहों के निर्माण के लिए C एंड D वेस्ट का इस्तेमाल जमकर किया जाता है.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर. 

noida twin tower Construction Waste waste recycling supertech twin tower greater noida news