Organic Farming: ऑर्गेनिक फार्मिंग फायदे का सौदा है या नुकसान का, जानें इस धंधे में कब मिलता है प्रॉफिट

अभिषेक शुक्ल | Updated:Apr 15, 2023, 01:33 PM IST

South Africa के Lancet से ऑर्गेनिक खेती के गुर सीखकर आए हैं नितिन ड्यूंडी.

ऑर्गेनिक खेती की ओर शिफ्ट करने पर किसानों को तत्काल घाटा लगता है. बाजार, जांच प्रक्रिया और विधि की सही जानकारी न होने की वजह से शुरुआत के 4 साल घाटे के साल होते हैं.

डीएनए हिंदी: ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) शुरुआती दिनों में सब्र का सौदा है. ऐसा भी हो सकता है कि ऑर्गेनिक फॉर्मिंग के लिए आपने को पूंजी लगाई है, वह डूब जाए. कृषि विशेषज्ञों भी सलाह देते हैं कि किसानों को छोटे स्तर पर पहले फॉर्मिंग की शुरुआत करनी चाहिए, जिससे दूसरी फसलों से उनका घाटा पूरा होता रहे. ऑर्गेनिक खेती में लागत ज्यादा लगती है लेकिन मुनाफा कम होता है. वजह यह है कि शुरुआती दिनों में किसानों को सही बाजार नहीं मिल पाता.

किसानों के लिए ऐसे ग्राहकों को ढूंढ पाना बेहद मुश्किल होता है जो ऑर्गेनिक खाद्य उत्पादों को प्रमुखता से खरीद लेते हों. क्योंकि अगर एक सब्जी बाजार में 30 रुपये किलो है, वही सब्जी अगर ऑर्गेनिक है तो 60 रुपये में मिलेगी. दोगुने दाम पर सब्जी खरीदने वाले ग्राहकों का दायरा शहरों तक सीमित है. ग्रामीण आबादी के लिए यह फर्क कम पड़ता है कि सब्जी उगाने की विधि क्या है. ऐसे में जहा ऐसी फसलें उगाई जाती हैं, वहां किसानों को बाजार मिल जाए, यह मुश्किल ही है.

हमेशा खुला रखें पारंपरिक खेती का विकल्प

लिन फार्मिंग सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड एक ऐसी संस्था है जो उत्तराखंड में किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग सिखाती है और उन्हें ट्रेनिंग देती है. इसके को-फाउंडर नितिन ड्युंडी कहते हैं कि शुरुआत के तीन-चार किसानों को मुनाफे के बारे में कम सोचना चाहिए. वह अपने लिए आमदनी की वैकल्पिप व्यवस्था रखें और ऐसे उत्पाद पारंपरिक खेती से उगाएं, जिससे लाभ मिले. नितिन दक्षिण अफ्रीका के लैंसेट से ऑर्गेनिक खेती की तकनीक सीखकर आए हैं.

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शुरुआती दिनों में फसल देखकर किसानों को लग सकता है झटका 


जैविक खेती के लिए रसायन और उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं होता है. कुछ फसलों को नर्सरी में तैयार किया जाता है, कुछ फसलों की सीधी बुवाई होती है. किसान अपनी फसलों के पोषण के लिए गो-मूत्र, गोबर, नीम उत्पाद, कंपोस्ट,  इपोमिया की पत्ती का घोल, मट्ठा, मिर्च, लहसुन, राख,  केंचुआ और सनई-ढैंचा जैसे प्राकृतिक रूप से मिलने वाले तत्वों का इस्तेमाल करते हैं. सामान्यतौर पर किसानों की जमीनों पर उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल होता है. ऐसे में सिर्फ प्राकृतिक तत्वों से पोषण मिलने के बाद जमीनों उतनी उपजाऊ नहीं रह जाती हैं. फसलों का उत्पादन 30 से 50 फीसदी तक घट जाता है.

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ऑर्गेनिक खेती घाटे का सौदा है या मुनाफे का?

नितिन ड्यूंडी कहते हैं कि उवर्रक और आधुनिक खेती ने फसलों का उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया है. ऑर्गेनिक खेती के शुरुआती 3 से 4 साल किसानों के लिए फायदेमंद नहीं होते हैं. अगर बहुत अच्छी फसल है तो सामान्य से 30 फीसदी कम फसल, अगर अनुकूल परिस्थितियां नहीं हैं तो 50 फीसदी तक कम फसल पैदा होती है

नितिद ड्यूंडी का कहना है कि शुरुआती दौर में फसलों के उत्पादन में आई इस कमी को किसान समझ नहीं पाते हैं. सही बाजार और ग्राहक न मिलने की वजह से उन्हें घाटा होता है. उन्हें देखकर दूसरे किसान भी यह साहस नहीं कर पाते हैं. ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसान 3 से 4 साल बाद फायदे का सौदा करने लगते हैं.

4 साल बाद जमकर मुनाफा देती है ऑर्गेनिक खेती

ऐसा नहीं है कि यह बोझिल और घाटे की प्रक्रिया है. जिन जमीनों पर इनऑर्गेनिक फसल या पारंपरिक खेती की जाती है, वहां की उर्वरता काफी हद तक यूरिया, फास्फोरस और दूसरे कृषि उवर्रकों पर निर्भर रहती है. जैविक खेती या ऑर्गेनिक खेती के लिए जमीनें पूरी तरह 3 से 4 साल में तैयार होती हैं. एक बार जमीन तैयार हो जाए तो ऐसी जमीनों पर खेती करना फायदे का सौदा होता है.

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