आईएएस प्रोबेशनर पूजा खेडकर हाल के दिनों में कई गलत वजहों से खबरों में बनी हुई हैं. इनमें महाराष्ट्र की राज्य सरकार और उसकी अलग-अलग ईकाईयां, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (LBSNAA) से जुड़ी खबरें शामिल हैं. कई न्यूज एंकर यूपीएससी की कथित खामियों को लेकर कई तरह की बातें कर रहे हैं, जिसकी वजह से ये धोखाधड़ी का मामला हुआ है. साथ ही वो यूपीएससी के अध्यक्ष की तरफ से दिए गए इस्तीफे को भी इस मामले से जोड़कर देख रहे हैं.
प्रशिक्षण के दौरान क्यों नहीं हुई कार्रवाई?
इस पूरे हंगामे के बीच कई असहज सवाल छूट गए हैं. पूजा खेडकर पुणे कलेक्टर कार्यालय में प्रैक्टिकल प्रशिक्षण के दौरान ही अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही थी. साथ ही वो एक अवैध लालबत्ती वाली निजी लक्जरी कार में घूम रही थी. जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के दफ्तरों में मौजूद अर्दलियों से तरह-तरह की फरमाइश कर रही थी. तमाम तरह की सुविधाओं का लाभ उठा रही थी. ये सब तबतक चलता रहा जबतक कि मीडिया में इससे संबंधित रिपोर्ट्स नहीं आने लगी. सवाल ये है कि इन रिपोर्ट्स के आने से पहले तक पुणे के कलेक्टर ने उन्हें ऐसा करने से क्यों नहीं रोका? व्यावहारिक जिला प्रशिक्षण में एक प्रशिक्षक के तौर पर क्या उन्हें ऐसा नहीं करने की सलाह नहीं देना चाहिए थी. यदि वो इसमें नाकाम रहते तो उन्हें उचित दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए थी? व्यावहारिक प्रशिक्षण के दौरान हर IAS/IPS प्रोबेशनर को अकादमी में एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ जुड़ा होता है, जो उसके पूरे प्रशिक्षण के दौरान उसका काउंसलर होता है. सवाल ये है कि इस दौरान LBSNAA के काउंसलर क्या कर रहे थे. उन्हें पहले राज्य ने वाशिम भेजा था. खबरों के आने बहुत बाद में LBSNAA ने उन्हें प्रैक्टिकल प्रशिक्षण से वापस बुला लिया.
खबरों में आने के बाद ही क्यों हो रही है कार्रवाई, पहले क्यों नहीं?
उनके पिता 2020 में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सेवानिवृत्त हुए हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उन्हें दो बार निलंबित किया जा चुका था. पुणे में मौजूद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो अब उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोपों की जांच कर रहा है. ऐसा कैसे हुआ कि एजेंसी उन्हें उनकी भव्य जीवनशैली और घोर भ्रष्टाचार के बावजूद संदिग्ध अधिकारियों की 'सहमत सूची' में नहीं डाल सकी, सेवा में रहते हुए उन्हें निगरानी, जांच और प्रॉसिक्यूशन की जद में नहीं ला सकी? अब उनकी मां को 2022 में कुछ लोगों को धमकाने के लिए अपने लाइसेंसी हथियार का इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस को अब ऐसा क्यों करना पड़ा? क्योंकि उनके हथियार लहराने का पुराना वीडियो अब सामने आया है? लेकिन उन्होंने पुलिसकर्मियों सहित अधिकारियों को धमकाया था! ऐसा कैसे हुआ कि पुलिस ने तब उन पर मामला दर्ज नहीं किया, लेकिन अब उन पर न केवल उनके लाइसेंसी हथियार का दुरुपयोग करने बल्कि 'हत्या के प्रयास' के लिए भी मामला दर्ज कर रही है?
नगर निगम द्वारा नोटिस दिए जाने के बाद अब उनके परिवार के घर के बाहर फुटपाथ पर अतिक्रमण हटा दिया गया है. क्या निगम का एनफोर्समेंट विंग ने उनसे संबंधित खबरें आने पहले ये अतिक्रमण नहीं देखा था? उन्होंने दृष्टि के लिए और मानसिक विकलांगता के लिए चिकित्सा प्रमाणपत्र प्राप्त किए? उन्हें 2022 में मेडिकल बोर्ड के समक्ष चार अवसर मिले थे, जिनका उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया? उन्हें अचानक विकलांगता के आधार पर नियुक्ति कैसे मिली? जिन डॉक्टरों ने प्रमाणपत्र जारी किए थे, क्या उनसे पूछताछ की गई है? उनके पिता ने अपने 2024 लोकसभा चुनाव घोषणा पत्र में वार्षिक आय 43 लाख रुपये और 40 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी? उन्होंने तहसीलदार से गैर-क्रीमी लेयर OBC प्रमाणपत्र कैसे प्राप्त किया?
UPSC की नाकामयाबी और खामियां
UPSC ने बार-बार नाम, फोटो और आईडी बदलकर परीक्षा देने पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है? क्या 2010 से बायोमेट्रिक वाला आधार उपलब्ध नहीं था? यूपीएससी के पास सिविल सेवा परीक्षा की पवित्रता और अनुशासन को बनाए रखने के लिए पूर्ण शक्तियां हैं और हर साल होने वाली प्रक्रिया के आकार और पैमाने के कारण, अब तक इसकी चयन प्रक्रिया पर आपत्ति जताने की गुंजाइश बहुत कम रही है.ऐसा कैसे हो सकता है कि आधार की मदद से ये तय हो कि उम्मीदवार वो काम न करें जो उसने किया है? एक बार चयनित होने पर उम्मीदवार की विशेष शाखा द्वारा जांच की जाती है. आमतौर पर जिला या शहर पुलिस की विशेष शाखा का एक हेड कांस्टेबल पड़ोस का दौरा करेगा और उम्मीदवार के पूर्व-वृत्तांत का सत्यापन करेगा और पुष्टि करेगा कि क्या वह किसी आपराधिक मामले में शामिल है. हालांकि, यह जांच शायद ही कभी अतिरिक्त-क्षेत्रीय आपराधिक इतिहास का पता लगा पाती है.
जो भी हो, यूपीएससी और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग या गृह मंत्रालय को चयनित उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत प्रमाणपत्रों की गहराई से जांच करने से कौन रोकता है? यह प्रक्रिया उनकी परिवीक्षा की घोषणा से पहले ही पूरी की जानी चाहिए! शिक्षा प्रमाणपत्रों को एकत्रित करके एक समूह में किसी शैक्षणिक संस्थान को भेजा जा सकता है. जाति प्रमाण पत्र और शारीरिक विकलांगता प्रमाण पत्र का सत्यापन राज्य स्तरीय पैनल द्वारा किया जा सकता है. सरकार ने अब उसके प्रमाणपत्रों की जांच के लिए एक पैनल का गठन किया है. क्या यह कानून नहीं होना चाहिए, खासकर उन जगहों पर जहां प्रमाणपत्र के आधार पर कई लाभ उठाए गए हों?
इस व्यवस्था से क्यों हो रहा है खिलवाड़?
लैंट प्रिटचेट ने भारत को एक अस्थिर राज्य कहा था, जहां एक सक्षम प्रमुख के पास अपने निर्देशों को लागू करने वाले हथियारों और पैरों पर पूर्ण नियंत्रण नहीं है. भारतीय प्रशासन की त्रासदी उस शीर्ष में नहीं है जिसमें कुछ बहुत ही समर्पित और विश्व स्तरीय लोग और संस्थान शामिल हैं. यह कोलफेस के पास स्थित है जहां स्टेशन हाउस ऑफिसर, पटवारी, तहसीलदार, सहायक अभियंता, सरकारी डॉक्टर, सरकारी शिक्षक आम आदमी से निपटते हैं. आकस्मिक उदासीनता और भ्रष्टाचार इस स्तर पर सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा हैं और खेडकर जैसे लोग जो व्यवस्था से खिलवाड़ करते हैं, वे सांस लेने के समान साधारण हैं.
न्यूयॉर्क पुलिस विभाग (एनवाईपीडी) ने 1970 में अपने भ्रष्टाचार की जांच के लिए नैप आयोग की स्थापना की थी. आयोग ने भ्रष्ट पुलिसकर्मियों को दो श्रेणियों में रखा था - घास खाने वाले, जो छोटे-मोटे भ्रष्टाचार में लिप्त थे, जो कुछ भी मिलता था उसे खा जाते थे और दूसरे मांस खाने वाले, जो पूरी तरह से जबरन वसूली में लिप्त थे और अवैध रूप से पैसा कमाने के तरीकों की तलाश करते थे, यानी अपने शिकार की तलाश करते थे. लोगों का कहना है कि यदि पूजा खेडकर अपना सिर झुकाए रहती, चरती रहती, और समय से पहले शिकार करने की कोशिश नहीं करती, तो वह भी अपना करियर जारी रखती और बड़ी चीजों की ओर बढ़ती. इससे यह पता चलता है कि पूजा और उसका परिवार अपने अहंकार और कथित मिश्रित अपराधों के लिए नहीं, बल्कि अधीरता के लिए भुगतान कर रहे हैं!
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