Today's Agenda: विपक्ष का आरोप ED ने ले ली है CBI की जगह! लेकिन उसके सुपरएक्टिव होने का ये भी है कारण

कुलदीप पंवार | Updated:Aug 03, 2022, 04:55 PM IST

विपक्ष सरकार पर अपने विरोधियों के खिलाफ ED का इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहा है, लेकिन यह भी तथ्य है कि पिछले कुछ सालों में ED का दायरा बढ़ा है. उसका स्टाफ बढ़ा है और नए इलाकों में ऑफिस भी खुले हैं. ED के सुपरएक्टिव होने के कारणों पर प्रकाश डालती ये रिपोर्ट.

डीएनए हिंदी: आजकल प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) अपनी कार्रवाइयों को लेकर हर तरफ चर्चा में है. रोजाना कहीं न कहीं पर कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED के छापे की खबर आ रही है. एक दिन में ED की टीम अलग-अलग मामलों में देश के कई शहरों में एकसाथ छापे मार रही है. 

आर्थिक घपलों की जांच करने वाली इस जांच एजेंसी के 'सुपरएक्विटव' रुख को लेकर विपक्षी दल लगातार शोर मचा रहे हैं. विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा (BJP) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ED का दुरुपयोग अपनी विरोधी आवाज को दबाने के लिए कर रही है, जबकि भाजपा इसे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान बताती है. 

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यदि भाजपा नेतृत्व वाले NDA गठबंधन के शासनकाल से पहले देखें तो यही आरोप CBI पर लगा करते थे. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट को भी CBI को लेकर कड़ी टिप्पणी करनी पड़ी थी. ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा के शासन में CBI वाली ही भूमिका ED को दे दी गई है, लेकिन क्या यही सच है या इसका कोई दूसरा पहलू भी है? आइए इस पर एक नजर डालते हैं. 

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सरकार पर विरोधियों को ठिकाने लगाने में ED का इस्तेमाल CBI की तरह करने का आरोप लगने का एक अन्य कारण भी है. दरअसल 2014 में NDA का शासनकाल आने के बाद विपक्षी दलों की सत्ता वाले कई राज्यों ने अपने यहां CBI की एंट्री बैन कर दी. इसके लिए उन्होंने CBI की स्थापना करने वाले Delhi Special Police Act का हवाला दिया और कहा कि जांच एजेंसी के अधिकार सिर्फ दिल्ली तक सीमित हैं. इसे राज्यों में छापेमारी और जांच का अधिकार नहीं है. CBI पर बैन लगाने वाले राज्यों में राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, मेघालय और मिजोरम शामिल हैं.

इन राज्यों में ही ED सबसे ज्यादा एक्टिव दिखाई देती है. दरअसल ED का गठन जिस कानून के तहत हुए है, वह उसे पूरे देश में कहीं भी और कभी भी आर्थिक अपराध की जांच करने का अधिकार देता है. इसके चलते ED को रोकने में ये राज्य बेबस हो गए हैं.

पिछले 4 साल में तेजी से भरे गए हैं ED में खाली पद

विपक्ष भले ही ED की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बता रहा है. दूसरी तरफ, यह भी तथ्य है कि भाजपा के शासन में ED में खाली पड़े पद तेजी से भरे गए हैं और इसका सीधा सा असर उसकी कार्यप्रणाली पर पड़ा है. ज्यादा स्टाफ होने के कारण अब ED पहले से ज्यादा मामले जांच के लिए अपने हाथ में ले पा रही है. 

साल 2018 से अब तक ED में 5 स्पेशल डायरेक्टर और 18 जॉइंट डायरेक्टर भर्ती किए गए हैं. इनमें से कई भारतीय पुलिस सेवा (IPS) से डेपुटेशन पर आए हैं, जिससे एजेंसी की जांच प्रक्रिया ज्यादा मजबूत हुई है. फिलहाल ED में 9 स्पेशल डायरेक्टर, 3 एडिशनल डायरेक्टर, 36 जॉइंट डायरेक्टर और 18 डिप्टी डायरेक्टर हैं. 

आर्थिक अपराधों से जुड़ी एजेंसियों से लिए अधिकारी

इनमें से ज्यादातर अधिकारी आयकर, GST इंटेलिजेंस महानिदेशालय और कस्टम व एक्साइज डिपार्टमेंट से डेपुटेशन पर लाए गए हैं. साथ ही अब ED ने अपने ऑफिस मेघालय, कर्नाटक, मणिपुर, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में भी बना लिए हैं. इससे एजेंसी की पहुंच का दायरा ज्यादा बड़े एरिया में बढ़ा है. 

ED सूत्रों का कहना है कि स्टाफ की कमी पूरी होने के कारण एजेंसी पुराने मामलों में पेंडिंग पड़ी जांच को दोबारा शुरू कर पार रही है और नए मामलों में सही समय में जांच पूरी कर रही है. इसी कारण पहले से ज्यादा छापेमारी हो रही है और संपत्तियां अटैच की जा रही हैं.

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