UP Assembly Bypolls 2024: उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव (UP Assembly By Election 2024) को लेकर सियासी सरगर्मी अब चरम पर पहुंच गई है. उपचुनाव का कार्यक्रम घोषित होने से पहले ही उम्मीदवारों का चयन होना शुरू हो गया है. इससे सियासी समीकरण भी बनने-बिगड़ने लगे हैं. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन अब बनने के बजाय बिगड़ता दिख रहा है. सपा के 6 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर देने के बाद दोनों पार्टियों का साथ आना मुश्किल लग रहा है. इसके चलते मायावती बड़ा फैक्टर बनता दिखाई दे रही हैं, जो अपनी परंपरा के विपरीत इस बार उपचुनाव में अपने कैंडिडेट उतारने की तैयारी में है. इससे मुकाबला त्रिकोणीय होता दिखाई दे रहा है.
किन सीटों पर हैं यूपी में उपचुनाव
उत्तर प्रदेश में 20 सीटों पर उपचुनाव होना है. इनमें गाजियाबाद, मझवां, करहल, कटेहरी, कुंदरकी, मीरापुर, मिल्कीपुर, सीसामऊ, खैर और फूलपुर शामिल हैं. इनमें से 5 सीट पर सपा के विधायक थे और 5 सीट भाजपा व उसके सहयोगी दलों के पास थीं. बसपा ने इनमें से कानपुर की सीसामऊ, अयोध्या की मिल्कीपुर समेत कई सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं.
पहले जान लेते हैं सपा-कांग्रेस के बीच कैसे बिगड़ी है बात?
पहले माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में एकसाथ आई समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उपचुनाव में भी मिलकर उतरेंगी, लेकिन 'दो लड़कों' वाला फैक्टर अब खटाई में पड़ता दिखाई दे रहा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 10 में से 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं, जबकि कांग्रेस 5 सीट मांग रही थी. इनमें फूलपुर और मझवां सीट भी हैं, जिन पर कांग्रेस अपने प्रत्याशी उतारना चाह रही थी. ऐसे में दोनों पार्टियों का गठबंधन होना अब मुश्किल ही दिखाई दे रहा है.
अब जान लीजिए मायावती क्यों उतार रही उम्मीदवार?
बसपा इस समय अपने वजूद की जंग से गुजर रही है. एकसमय राष्ट्रीय स्तर पर धमक रखने वाली बसपा इस बार लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई है. ऐसे में उनके सामने अपने पार्टी कैडर के बिखरने का खतरा पैदा हो गया है. पार्टी के लगातार कम होते रुतबे के चलते बहुत सारे नेता साथ छोड़कर जा चुके हैं. ऐसे में मायावती उपचुनाव के जरिये अपनी धमक दोबारा सुनाने की कोशिश में है.
लगातार कमजोर हुई है हाथी की चाल
बसपा का हाथी एकसमय दलित-मुस्लिम वोटबैंक की बदौलत विपक्षी पार्टियों को रौंदने वाला माना जाता था. हालिया सालों में मायावती पर भाजपा की 'बी-टीम' होने का ठप्पा लगा है, जिससे मुस्लिम वोटर उसकी झोली से छिटककर सपा की तरफ खिसक गया है. साथ ही दलित वोटर्स में भी जाटव समुदाय को छोड़कर बाकी जातियां भाजपा की तरफ खिसक गई हैं. इसका नतीजा ये रहा कि इस बार लोकसभा चुनाव में बसपा न केवल सीटों के मामले में शून्य पर सिमट गई, बल्कि वोट शेयर भी सिंगल डिजिट में रह गया. इसके चलते बसपा के हाथी की चाल बेहद कमजोर हुई है.
फिर भी बिगाड़ सकती है सपा-भाजपा का गणित
भले ही बसपा कमजोर हुई है, लेकिन यूपी में हालिया समीकरणों को देखते हुए बसपा अब भी भाजपा-सपा का गणित बिगाड़ने में सक्षम मानी जा रही है. मायावती के नेतृत्व में सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत 2000 के दशक में बसपा को यूपी में सफलता मिली थी. इसमें उसे दलित, मुस्लिम, ब्राह्मण और पंजाबी वोटर्स का साथ मिला था. इसके अलावा जाट वोटर्स ने भी उसके पक्ष में वोट किया था. हालिया लोकसभा चुनावों से साबित हुआ है कि दलित वोटर्स का मोह भाजपा से भंग हुआ है. लोकसभा में दलित वोटर्स ने कांग्रेस के कारण सपा का साथ दिया था, लेकिन माना जा रहा है कि उपचुनाव में दलित वोटर फिर से बसपा की तरफ लौट सकता है. इसके अलावा सपा के मुस्लिम वोटबैंक में भी बसपा सेंध लगा सकती है. लोकसभा चुनाव में ठाकुर वोटर्स भाजपा से नाराज नजर आए थे. ठाकुर वोटर्स को सपा का साथ भी नहीं भाया है. ऐसे में यह वोटबैंक भी बसपा में अपना ठौर तलाश सकता है.
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