डीएनए हिंदी: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 41 मजदूरों को निकालने की कवायद जारी है. सिलक्यारा सुरंग हादसे के 10 दिन बीत चुके हैं लेकिन अभी तक उन्हें बाहर नहीं निकाला जा सका है. NHIDCL टनल प्रोजेक्ट के डायरेक्टर अंशु मनीष खलको ने बताया है कि 6 इंच के पाइप को पूरी तरह साफ कर लिया गया और उसके जरिए मजदूरों के लिए फल और दवाइयां भेजी गई हैं. बीते कई दिनों से मजदूर नमक मांग रहे थे.
केंद्र और राज्य की 6 एजेंसिंयां लगातार काम कर रही हैं. इन एजेंसियों के बीच कॉर्डिनेशन के लिए उत्तराखंड के IAS नीरज खैरवाल को नोडल अधिकारी बनाया गया है. NHIDCL ने सबसे पहले ऑक्सीजन आपूर्ति, भोजन, पानी और दवा की सुविधाएं मजदूरों तक पहुंचाई हैं. अंदर रोशनी और बिजली की आपूर्ति हो रही है.
कैसे मजदूरों तक पहुंच रहा है खाना?
सुरंग के अंदर 2 किलोमीटर तक की जगह है. उन्हें 4 इंच की पाइपलाइन से सूखे मेवे और खाने की अन्य चीजें भेजी जा रही थीं. अब 6 इंच की पाइपलाइन के जरिए एक वॉकी-टॉकी भेजकर उनसे बातचीत भी हो रही है. अंदर तक कैमरा भी पहुंच चुका है. अब उम्मीद जगी है कि मजदूर बाहर आ जाएंगे.
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कब हुआ था हादसा?
12 नवंबर की सुबह सुरंग में ऊपर से अचानक मलबा गिर गया, जिससे 4 किमी लंबी निर्माणाधीन सुरंग के दूसरे हिस्से में नाइट शिफ्ट में काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए. मलबा हटाकर उन्हें निकालने की कोशिश की जा रही है. मजदूरों के निकालने के लिए 10 दिनों से रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. सुरंग के विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स को भी बुलाया गया है, जो अपनी टीम के साथ रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे हुए हैं, लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है.
मजदूरों को निकालने का क्या है 5 एक्शन प्लान
रूट 1: क्षैतिज ड्रिलिंग
NHIDC की एक टीम शुक्रवार को मलबे के माध्यम से 22 मीटर की खुदाई के बाद एक रुकावट आने के बाद सिल्क्यारा की ओर से सुरंग के मुहाने से ड्रिलिंग फिर से शुरू करेगी. इसे हॉरिजेंटल पाइप के जरिए आगे बढ़ाया जा रहा है. इस पर काम बेहद चुनौतियों से भरा है. श्रमिकों को इस 900 मीटर चौड़े पाइप से रेंगकर बाहर निकलना था, लेकिन अधिकारी केवल 22 मीटर ही ड्रिल कर पाए थे, तभी काम रोक दिया गया. ऑगर मशीन या चट्टानों से टकराकर पाइट टूट गई. इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है.
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रूट 2: बगल में से ड्रिलिंग
मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रेल विकास निगम लिमिटेड को सुरंग के एंट्री गेट की ओर से 280 मीटर की दूरी पर माइक्रो-ड्रिलिंग करने की जिम्मेदारी दी गई है. इस ऑपरेशन के लिए नासिक और दिल्ली से मशीनरी भेजी गई है. यह क्षैतिज सुरंग 1.2 मीटर चौड़ी और 170 मीटर लंबी होगी. अगर दो प्लान फेल हुए तो इस पर काम किया जाएगा.
रूट 3: ऊपर से लंबवत ड्रिलिंग
सुरंग के ऊपर से लंबवत रूप से 1.2 मीटर चौड़ा गड्ढा खोदने की योजना बनाई गई है. श्रमिकों तक पहुंचने के लिए एंट्री गेट से से 320 मीटर की दूरी तक इसे चौड़ा किया जाएगा. इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी सतलुज जल विद्युत निगम (एसजेवीएन) को दी गई थी. खुदाई शुरू करने वाली पहली मशीन पहले ही साइट पर पहुंच चुकी है. अगले दो-तीन दिन में गुजरात और ओडिशा से दो और मशीनें पहुंचने की उम्मीद है. यह मुख्य ऊर्ध्वाधर रेस्क्यू टनल होगी.
रूट 4: ऊपर से दूसरी ऊर्ध्वाधर सुरंग
ONGC को बरकोट की ओर से 480 मीटर के निशान पर सुरंग के अंत की ओर एक और ऊर्ध्वाधर सुरंग खोदने का काम सौंपा गया है. यह सुरंग लगभग 325 मीटर गहरी होगी और इस ऑपरेशन के लिए मशीनें अमेरिका, मुंबई और गाजियाबाद से लाई गई थीं.
रूट 5: क्षैतिज बचाव सुरंग
पारंपरिक ड्रिल और ब्लास्ट विधि का इस्तेमाल करके टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा सुरंग के बड़कोट छोर से 483 मीटर लंबी लेकिन संकरी सुरंग बनाई जाएगी. यह एक और बैकअप योजना है और इस पर काम अभी शुरू होना बाकी है.
बचाव कार्य चुनौतीपूर्ण क्यों है?
घटनास्थल की जमीन ऐसी है, जहां रेस्क्यू ऑपरेशन करा पाना बेहद मुश्किल है. कहीं जमीन दलदल वाली है, कहीं ठोस है. कहीं मजबूत चट्टानें हैं इस वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन मुश्किल होता जा रहा है. मशीनों का इस सुरंग में एंट्री बेहद मुश्किल हो रही है. कई मशीनें इसकी वजह से टूट रही हैं. ड्रिलिंग की कोशिशें बेकार हो रही हैं.
क्या है सरकार का जवाब?
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को कहा कि बचाव अभियान चुनौतीपूर्ण है क्योंकि हिमालय क्षेत्र में मिट्टी का स्तर एक समान नहीं है. फंसे हुए श्रमिकों तक पहुंचने के लिए अमेरिकी बरमा के साथ क्षैतिज ड्रिलिंग वर्तमान में सबसे सही तकनीक है. हालांकि, जब मशीनें कठोर चट्टानों से टकरा रही हैं तो परेशानियां और बढ़ जा रही हैं. सुरंग में कंपन बढ़ा तो रेस्क्यू रोक दिया गया.
नितिन गडकरी ने कहा है, 'हम एक साथ छह विकल्पों पर काम कर रहे हैं. पीएमओ भी ऑपरेशन पर बारीकी से नजर रख रहा है. हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता फंसे हुए सभी लोगों को बचाना है और जितनी जल्दी हो सके, जो भी जरूरी होगा वह किया जाएगा.'
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