बृजभूषण शरण सिंह से प्यार, खिलाड़ियों से तकरार, आखिर WFI विवाद को सुलझाना क्यों नहीं चाहती है सरकार?

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Apr 28, 2023, 11:16 AM IST

WFI अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह, गोंडा से विधायक हैं.

बृजभूषण शरण सिंह 1991 से लगातार सांसद रहे हैं. अयोध्या के आसपास के इलाकों में उनका वर्चस्व रहा है. अशोक सिंघल से उनकी नजदीकी जगजाहिर थी. बृजभूषण हमेशा विवादों में रहे लेकिन बीजेपी में उनका कद कम नहीं हुआ.

 डीएनए हिंदी: भारतीय जनता पार्टी (BJP) भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का जिस तरह से बचाव कर रही है, विपक्षी पार्टियों का एक धड़ा पार्टी के रवैये पर सवाल खड़ा कर रहा है. यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप होने के बाद भी उनके खिलाफ अब तक न तो कोई एक्शन लिया गया है, न ही उनकी रसूख कम हुई है. जिन पहलवानों ने कैसरगंज के बीजेपी सांसद पर आरोप लगाए हैं वे आम पहलवान नहीं हैं. उनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने वैश्विक स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है. उनके खिलाफ पुलिस FIR तक नहीं दर्ज कर रही है.

पहलवानों का कहना है कि खेल मंत्रालय उन्हें सिर्फ झांसा दे रहा है. साक्षी मलिक,विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया जैसे पहलवान जंतर-मंतर पर बैठे हैं. बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ रहा है लेकिन 4 महीने से अब तक उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है. यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद किसी भी नेता का बचाव बीजेपी ने ऐसे नहीं किया है.

साल 1991 में पहली बार बृजभूषण शरण सिंह लोकसभा चुनाव जीते थे. बृजभूषण शरण सिंह पर बहुबली होने के भी आरोप लगे. साल 1996 में दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों को शरण देने के भी आरोप उन पर लगे. उन्हें टाडा केस में आरोपी बनाया गया. टिकट कटा लेकिन उनकी जगह उनकी पत्नी केकती देवी सिंह को गोंडा से बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतार दिया. साल 1998 का चुनाव ऐसा था, जब वह कीर्तिवर्धन सिंह से चुनाव हार गए हों. चुनाव में हार हो जीत मिले, उनके कद पर कोई असर नहीं पड़ा. उनका रसूख साल-दर-साल बढ़ता ही चला गया. 

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फंडिंग, दबदबा, या तुष्टीकरण, क्यों बृजभूषण शरण को बचा रही बीजेपी सरकार?

बृजभूषण शरण सिंह आम नेता नहीं हैं. वह करीब 50 शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं. अयोध्या से लेकर श्रावस्ती और गोंडा तक उनके स्कूल और कॉलेज हैं. उनके रिश्तेदारों का भी हाल यही है. बृजभूषण शरण सिंह की खासियत है कि वह अपना चुनाव, अपने तरीके से लड़ते हैं. उन्हें अंधाधुंध पैसे खर्च करने से कोई गुरेज नहीं है. उनकी जनता पर मजबूत पकड़ है, बीजेपी को पता है कि अगर वह जाएंगे तो पार्टी का बड़ा नुकसान करेंगे. 

बृजभूषण शरण सिंह अवसरवादी हैं, बीजेपी को भी इस बात का इल्म है. साल 2009 में ही कैसरगंज से एक बीजेपी उम्मीदवार को हराकर उन्होंने जीत हासिल कर ली थी. यूपीए के साथ मिलकर सपा के टिकट पर वह चुनाव जीत गए. सपा का बुरा वक्त आया तो 2014 से पहले साथ छोड़कर बीजेपी में आ गए.

गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती और अयोध्या की कई विधानसभाओं पर बृजभूषण शरण की मजबूत पकड़ है. इन इलाकों में वह हिंदुत्व के प्रमुख चेहरे हैं. सपा के यादव-मुस्लिम समीकरण का तोड़ भी बृजभूषण शरण सिंह के पास है. यही वजह है कि बीजेपी सीधे WFI अध्यक्ष के खिलाफ एक्शन लेने से डर रही है. 2011 से ही WFI के अध्यक्ष रहे बृजभूषण ने कुश्ती संघ कई अहम बदलाव किए हैं. बस धरने पर बैठे खिलाड़ी चाहते हैं कि वह अपना पद त्याग दें. उनके खिलाफ कानूनी एक्शन लिया जाए.

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क्यों बीजेपी नहीं दिखा पा रही है बृजभूषण शरण के खिलाफ एक्शन?

बृज भूषण शरण सिंह का प्रभुत्व गोंडा के साथ-साथ बलरामपुर, अयोध्या और आसपास के जिलो में हद से ज्यादा है. उनके बेटे प्रतीक गोंडा से बीजेपी विधायक हैं. बृज भूषण शरण सिंह के बेटे प्रतीक भूषण भी राजनीति में हैं. प्रतीक गोंडा से बीजेपी विधायक हैं. दोनों लोगों का इलाके में दबदबा है. बीजेपी उन्हें हटाकर खतरा नहीं लेना चाह रही है. बीजेपी का बृजभूषण शरण सिंह से मोह, हरियाणा में सियासी समीकरण बिगाड़ सकता है. आज नहीं तो कल, बृजभूषण शरण के खिलाफ एक्शन होना ही है. ऐसा तय माना जा रहा है.

जंतर-मंतर पर बैठे खिलाड़ी क्या चाहते हैं?

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ खिलाड़ी एक्शन की मांग कर रहे हैं. उन पर आरोप हैं कि महिला पहलवानों के साथ यौन शोषण किया जाता है. लखनऊ में कैंप लगाने को लेकर खिलाड़ी भड़के हैं. उन पर आरोप हैं कि वह खिलाड़ियों को भद्दी गाली देते हैं. खिलाड़ियों का मानसिक शोषण किया जाता है. उनके निजी जीवन में दखल दी जाती है. इसके अलावा उन पर आरोप है कि वह ट्रेनिंग से जुडे़ मामलों में भी दखल देते हैं. खिलाड़ी 6 दिनों से जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं. यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया है लेकिन अब तक बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है.

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