डीएनए हिंदी: Satish Kaushi Passed Away- भारतीय सिनेमा के चर्चित कलाकार और अनूठे फिल्म निर्देशक सतीश कौशिक (Satish Kaushik) का 66 साल की उम्र में अचानक निधन हो गया है. सतीश ने बुधवार को दिल्ली में बिजवासन स्थित अपने फॉर्महाउस पर परिवार के साथ होली खेली थी. इसके बाद रात 11 बजे अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई. अस्पताल ले जाने के बाद उनका निधन हो गया. माना जा रहा है कि सतीश का निधन कार्डियक अरेस्ट से हुआ है, लेकिन उनकी प्रसिद्धि को देखते हुए दिल्ली पुलिस तमाम एंगल से उनकी मौत की जांच कर रही है. बृहस्पतिवार को सतीश कौशिक के शव का पोस्टमार्टम किया गया. इसमें भी उनकी मौत का कारण दिल का दौरा होने की ही संभावना जताई गई है, लेकिन आगे की जांच के लिए उनके शव का विसरा सुरक्षित कर लिया गया है. अब विसरा टेस्ट के बाद आने वाली रिपोर्ट में ही उनकी मौत का असली कारण सुनिश्चित हो पाएगा. आइए आपको बताते हैं कि विसरा रिपोर्ट क्या होती है और इसका टेस्ट कैसे किया जाता है तथा इसका कानूनी तौर पर क्या महत्व है?
पहले जान लें किन परिस्थितियों में सुरक्षित रखते हैं विसरा
किसी भी शव का पोस्टमार्टम के बाद विसरा टेस्ट उन मामलों में किया जाता है, जहां हत्या का शक होता है. ये ऐसे मामले होते हैं, जहां मौत का कारण पोस्टमार्टम से स्पष्ट नहीं होता है. उन मामलों में भी पोस्टमार्टम के साथ ही विसरा टेस्ट भी कराया जाता है, जिनमें आगे मौत के कारण पर विवाद खड़ा होने की संभावना होती है. इससे यह जानकारी मिल जाती है कि जिस मौत के लिए हार्ट अटैक, अस्थमा अटैक आदि को कारण माना जा रहा है, वो किसी खास केमिकल या खाने-पीने की देन तो नहीं है.
इसके लिए शव के खास हिस्सों के सैंपल गहन फोरेंसिक जांच के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं, जिसे विसरा सुरक्षित करना कहते हैं. यह काम पोस्टमार्टम कर रहे डॉक्टर ही करते हैं. कई बार पोस्टमार्टम कर रहे डॉक्टर भी अपने स्तर पर विसरा सुरक्षित करते हैं. डॉक्टर ये काम उस स्थिति में करते हैं, जब उन्हें पोस्टमार्टम से सही कारण समझ नहीं आता है और वे ज्यादा गहन परीक्षण की जरूरत महसूस करते हैं.
कैसे होता है विसरा टेस्ट
फोरेंसिक जांच के लिए पोस्टमार्टम के दौरान शरीर के भीतरी अंगों की जांच करने के बाद उनका सैंपल सुरक्षित रखा जाता है. किसी भी तरह का केमिकल सूंघने या खाने के जरिये शरीर के अंदर जाने पर सेंट्रल कैविटी में मौजूद छाती, पेट आदि से जुड़े अंगों पर उनका असर जरूर होता है. इन अंगों के सैंपल में केमिकल या जहर के असर का विसरा सैंपल की केमिकल जांच के दौरान पता चल जाता है. हालांकि यह जानकारी तभी मिलती है, जब विसरा टेस्ट के लिए पोस्टमार्टम के दौरान लिए सैंपल की जांच 15 दिन के अंदर कर ली जाए. विसरा जांच अमूमन फोरेंसिक साइंटिस्ट करते हैं. इसमें मरने वाले के खून, वीर्य आदि की भी जांच की जाती है.
क्या कानूनी रूप से वैध है विसरा रिपोर्ट
विसरा रिपोर्ट पूरी तरह पुख्ता कानूनी सबूत के तौर पर मान्य है. विसरा रिपोर्ट में मरने वाले के शरीर में किसी भी तरह का जहर या केमिकल मिलने पर मामले की जांच कर रही एजेंसी उसे नेचुरल डेथ घोषित नहीं कर सकती है. इसे किसी भी मौत के मामले में कारण पता करने का सबसे पुख्ता तरीका माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी 21 जनवरी 2014 को एक फैसले में मौत के संदिग्ध मामलों में शव का विसरा टेस्ट कराना जांच एजेंसियों के लिए अनिवार्य घोषित कर दिया था.
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