कौन है Sarabjeet Singh Khalsa, जिनके सांसद बनने से फिर चर्चा में आई Indira Gandhi की हत्या, Khalistan से क्या है नाता

Written By कुलदीप पंवार | Updated: Jun 07, 2024, 09:30 AM IST

Who is Sarabjeet Singh Khalsa: पंजाब की फरीदकोट सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार सरबजीत सिंह खालसा ने आम आदमी पार्टी और भाजपा उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की है.

Who is Sarabjeet Singh Khalsa: लोकसभा चुनावों के परिणाम (Lok Sabha Chunav 2024) आने के बाद पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद एक बार फिर चर्चा में है. दरअसल पंजाब में इस बार दो ऐसे सांसद चुने गए हैं, जिनका खालिस्तान (Khailstan) मुद्दे से करीबी नाता रहा है. खडूर साहिब सीट से जेल में बंद अमृतपाल सिंह ने जीत हासिल की है, जबकि फरीदकोट सीट से सरबजीत सिंह खालसा (Sarabjeet Singh Khalsa) को जीत मिली है. दोनों 'आजाद' यानी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतकर भारतीय संसद में बैठने के दावेदार बने हैं. सरबजीत सिंह की जीत ने 40 साल बाद एक बार फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indir Gandhi) की हत्या को चर्चा में ला दिया है. दरअसल सरबजीत सिंह के पिता बेअंत सिंह, उन दो सिक्योरिटी गार्ड्स में से एक थे, जिन्होंने 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री आवास के अंदर अंधाधुंध गोलियां बरसाकर हत्या कर दी थी. 


यह भी पढ़ें- Lok Sabha Election Result 2024: सभी सीटों पर आया फाइनल रिजल्ट, जानिए किस पार्टी को मिली हैं आखिर में कितनी सीट  


70,000 वोट से जीते हैं सरबजीत सिंह खालसा

सरबजीत सिंह खालसा ने फरीदकोट सीट पर 70,000 वोट से जीत हासिल की है. 46 साल के सरबजीत सिंह खालसा ने 298062 वोट हासिल किए, जबकि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार व पंजाबी फिल्म एक्टर करमजीत सिंह अनमोल को 228009 वोट मिले. तीसरे नंबर पर पंजाबी गायक व भाजपा उम्मीदवार हंसराज हंस रहे. 


यह भी पढ़ें- Uttar Pradesh BJP में 'भितरघात' की गूंज, बन रही रिपोर्ट, ऊपर से नीचे तक बदलेगा संगठन?


6 साल की उम्र में देखी थी पिता की मौत

बेअंत सिंह ने जब इंदिरा गांधी की हत्या की थी, तब सरबजीत महज 6 साल के थे. बेअंत सिंह दिल्ली पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे, जिन्होंने स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लूस्टार का आदेश देने के कारण इंदिरा गांधी की हत्या की थी. बेअंत सिंह को सुरक्षा बलों ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मौके पर ही मार गिराया था, लेकिन इस हत्या के लिए सिख समुदाय ने बेअंत सिंह को कौमी शहीद का दर्जा दिया था. इसके बावजूद सरबजीत सिंह का बचपन ज्यादा आसान नहीं रहा. लोकसभा चुनाव के शपथपत्र के हिसाब से एक दुकान चलाकर रोजी-रोटी कमाने वाले खालसा किराये के मकान में रहते हैं.


यह भी पढ़ें- PM Modi Oath Ceremony: UCC से Agniveer तक, JDU ने रखी है ये 4 मांग, BJP भी 3 मंत्रालय नहीं देने पर अड़ी


मां-दादा के सांसद बनने के 35 साल बाद जीते हैं सरबजीत

सरबजीत सिंह की मां और दादा भी सांसद रह चुके हैं. साल 1989 के लोकसभा चुनावों में सरबजीत की मां बिमल कौर ने रोपड़ और दादा ने बठिंडा सीट से जीत हासिल की थी. इसके 35 साल बाद अब सरबजीत खुद सांसद बन गए हैं. हालांकि इससे पहले वे कई चुनाव लड़कर हार चुके हैं. सरबजीत सिंह खालसा 2004 में शिरोमणि अकाली दल के टिकट पर बठिंडा लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर 1.13 लाख वोट से हारे थे. साल 2007 में पंजाब की भदौड़ विधानसभा सीट से भी उन्हें महज 15 हजार वोट पाकर बेहद बुरी हार देखनी पड़ी. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में BSP ने उन्हें टिकट दिया, लेकिन वे फिर से हार गए.


यह भी पढ़ें- Modi 3.0: PM रहे हों या CM, मोदी को नहीं अल्पमत की सरकार चलाने का अनुभव, क्या होगी मुश्किल, इन 6 मुद्दों से समझिए  


बेअदबी का मुद्दा उठाने से बढ़े समर्थक

सरबजीत सिंह खालसा का राजनीतिक करियर तब उछाल पर आया, जब उन्होंने 2015 में फरीदकोट के बरगाड़ी गांव में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी का मुद्दा उठाया. इसके बाद वे पंथक नेता के तौर पर पॉपुलर होते चले गए. सरबजीत का कहना है कि वे इसी कारण चुनाव लड़ना चाहते थे ताकि बेअदबी का मुद्दा संसद में उठाया जा सके. वे संसद में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी पर मौत की सजा का कानून पारित कराना चाहते हैं. साथ ही पंजाब में नशे के कारोबार के खिलाफ काम करना चाहते हैं. 

ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगलफेसबुकxइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.