Storm in Summers: गर्मियों में क्यों आती हैं आंधियां, न आते तूफान तो क्या होता?

नीलेश मिश्र | Updated:May 02, 2022, 10:29 AM IST

गर्मियों में चलती हैं धूल भरी आंधियां

हर साल गर्मी के महीने में आंधी और तूफान कुछ ज्यादा ही आने लगते हैं. आखिर इसका कारण क्या है और अगर तूफान न आए तो क्या असर पड़ सकता है?

डीएनए हिंदी: दुनियाभर में मौसम का खेल ऐसा है जो काफी रोचक और हैरान करने वाला होता है. कहीं देखते ही देखते बारिश होने लगती है तो कहीं पल भर में तूफान आ जाता है. कहीं-कहीं तो सड़क के इस पार बारिश होती है और दूसरी तरफ पानी की एक बूंद नहीं गिरती. गर्मी के मौसम में तूफान और आंधी जैसी घटनाएं बढ़ जाती हैं. धीरे-धीरे बारिश आती है और इन घटनाओं का रूप बदल जाता है. कई बार ये काफी विनाशकारी भी होता है. आइए समझते हैं कि आखिर गर्मियों में आंधी-तूफान क्यों आते हैं और इसका नफा-नुकसान क्या है...

ये मौसम का जादू है मितवा
न अब दिल पे क़ाबू है मितवा...

फिल्म 'हम आपके हैं कौन' का ये गाना वैसे तो सलमान खान और माधुरी दीक्षित के रोमांस को दिखाने के लिए फिल्माया गया है, लेकिन हमें इसमें अपना कीवर्ड मिल गया. 'मौसम का जादू'. दरअसल, विज्ञान की बारीकियां न समझने वालों के लिए मौसम एक जादू ही है और हो भी क्यों न. मौसम से जुड़ी घटनाएं होती ही ऐसी हैं कि सबकुछ जादू ही लगता है.

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जैसे इस गाने के मुख्य किरदार सलमान खान और माधुरी दीक्षित हैं, वैसे ही मौसम के मुख्य किरदार तापमान और हवा का दबाव हैं. हवा का ठंडा या गर्म होना, जगह की ऊंचाई, समुद्र तट से दूरी जैसी चीजें मौसम को प्रभावित करती हैं. यही कारण है कि समुद्र तट पर स्थित मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में गर्मी कम पड़ती है और दिल्ली और राजस्थान जैसे इलाकों में पारा चटकता ही रहता है.

मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि मानसून आने से पहले अक्सर आंधी आती है. भारत में मानसून ज्यादातर जून के आखिर या जुलाई की शुरुआत में आता है. पहली वजह तो यही हो गई कि जून-जुलाई में मानसून आने से पहले अप्रैल-मई में जमकर आंधियां आती हैं. ये तेज हवाएं अपने साथ धूल-मिट्टी भी उड़ाती हैं. मौसम सूखा होता है और पानी की कमी होती है, इसीलिए ये तेज हवाएं धूल-मिट्टी से मिलकर आंधी बन जाती हैं.

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सूरज का है अहम रोल
'चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा' इस गाने के बोल सूरज की गति के बारे में बताते हैं. धरती पर सूरज की किरणें हमेशा एक जैसी नहीं पड़तीं. इसी की वजह से मौसम में बदलाव होता है. 21 दिसंबर को सूरज भारत से कुछ दूर होता है, यही वजह है कि दिसंबर-जनवरी में भयंकर ठंड पड़ती है. 21 दिसंबर के बाद सूरज धीरे-धीरे भारत की ओर लौटता है. सूरज के लौटने के साथ ही सर्दियां ढल जाती हैं और गर्मियां बढ़ने लगती हैं. 21 जून को सूरज ठीक भारत के ऊपर चमकता है, इस वजह से गर्मी सबसे ज्यादा होती है. 21 जून से गर्मी कम होती जाती है, लेकिन इससे पहले गर्मी का कहर सबसे ज्यादा होता है.

तापमान और दबाव का खेल
हवाएं हमेशा हाई प्रेशर की ओर से लो प्रेशर यानी कम दवाब की ओर चलती हैं. गर्मियों के समय सूरज की किरणें तेज होती हैं और तापमान बढ़ता जाता है. इस समय हम देख रहे हैं कि तामपान 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है. ऐसी स्थिति में हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर उठ जाती है. हवा के ऊपर उठने से दबाव यानी प्रेशर कम हो जाता है. दूसरी तरफ, पानी वाली जगहों पर या कम तापमान वाली जगहों पर दबाव ज्यादा होता है. अब ये हवाएं, उस जगह की ओर भागती हैं जहां दबाव कम होता है. 

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ये हवाएं काफी तेज गति से चलती हैं. ठीक वैसे ही, जैसे मेट्रो में सीट खाली होने पर यात्री सीट के लिए दौड़ पड़ते हैं. उसी तरह ये ज्यादा प्रेशर वाली हवा कम प्रेशर वाली जगह को भरने के लिए तेजी से भागती है. तेजी से भागती हवा गर्म मौसम में अपने साथ धूल और मिट्टी भी उठा लेती है. इसके अलावा धरती के घूमने, जगह की समुद्र तल से ऊंचाई का भी तापमान और दबाव पर असर पड़ता है और हवाओं में परिवर्तन होता है. जगह के हिसाब से इन हवाओं के प्रकार बदलते रहते हैं और इन्हें अलग-अलग नाम से जाना जाता है.

गर्मी के मौसम में ज्यादा होता है प्रकोप
मई-जून के समय पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) के कारण हवाएं पश्चिम की ओर से उत्तर पश्चिम के मैदानी भाग की ओर बढ़ती हैं. दूसरी तरफ, अगर पूर्व दिशा से भी हवा आना शुरू हो जाए और गर्मी ज्यादा हो तो तापमान और दबाव का ऐसा संयोजन बनता है कि हर तरफ से तेज हवाएं आने लगती हैं. यही हवाएं भीषण आंधी और तूफान का रूप ले लेती हैं और तबाही मचाती हैं.

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आंधी और तूफान का कोई केंद्र नहीं होता है. यह बहुत छोटे से इलाके से शुरू होकर वहीं खत्म भी हो सकता है और कई बार बहुत बड़े इलाके में भी फैल सकता है. कई बार इनका अनुमान भी सिर्फ़ कुछ घंटे पहले ही लगाया जा सकता है. तापमान और दबाव के अध्ययन के आधार पर इनका अनुमान लगाया जाता है. आंधी और तूफान कुछ घंटों में अपने-आप समाप्त हो जाते हैं, लेकिन इनकी स्पीड कई बार कुछ मिनटों में ही भयंकर तबाही मचाकर चली जाती है. 

क्या हो अगर तूफान न आए?
तूफान, हवा, आंधी, बारिश ये सब धरती पर जीवन चक्र का हिस्सा हैं. सूरज की रोशनी के रहते और धरती पर हवा बहते रहने तक यह संभव नहीं है कि आंधी और तूफान जैसी घटनाएं रुक जाएं. बल्कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से वैज्ञानिकों का मानना है कि आगे आने वाले सालों में इस तरह की घटनाएं और बढ़ेंगी और कहीं-कहीं ये और भी ज्यादा विध्वंसकारी रूप ले सकती हैं.

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वैसे भी तूफान और आंधी का कोई अपना मकसद नहीं होता है, इनका होना या न होना किसी चीज को प्रभावित भी नहीं करता है. इससे सिर्फ़ और सिर्फ़ नुकसान ही होता है. ये घटनाएं तापमान, दबाव और अन्य मौसमी घटनाओं के संयोजन का परिणाम होती हैं, तो इनका कोई अपना महत्व नहीं होता है. हां, कहीं-कहीं गर्मी के बाद अचानक से आंधी आ जाने से तापमान में गिरावट हो जाती है और लोगों को कुछ समय के लिए राहत मिल जाती है. 

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