Death Anniversary : तानसेन की 16वीं पीढ़ी के अब्दुल राशिद ख़ान भारतीय संगीत में दशकों जगमगाते रहे

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Feb 18, 2022, 02:12 PM IST

पद्मश्री अब्दुल राशिद ख़ान तानसेन की सोलहवीं पीढ़ी के संगीतज्ञ थे. वे स्वयं भी असाधारण संगीत गुरु माने जाते थे.

डीएनए हिंदी : मियां तानसेन के गीतों से अकबर का दरबार गूंजता था और उनकी सोलहवीं पीढ़ी के ख़यालों से भारत का संगीत जगत् हाल तक गूंजता रहा. बात हो रही है अब्दुल राशिद ख़ान की. 

भारतीय संगीत की दुनिया में बाबा के नाम से मशहूर अब्दुल राशिद ख़ान (Abdul Rashid Khan) साहब ने संगीत को दुनिया को सम्मान के लगभग तमाम ओहदे हासिल थे. 

विशुद्ध शास्त्रीय गायक थे 

19 अगस्त 1908 को पैदा हुए अब्दुल राशिद ख़ान (Abdul Rashid Khan) ख़याल, ध्रुपद, ठुमरी और धामर के उस्ताद गायक थे. संगीत उनका जीवन था और राग उस जीवन के लय थे. 

बड़े यूसुफ़ खान और चांद ख़ान के शिष्य रह चुके अब्दुल राशिद ख़ान ने हमेशा अपनी पहचान बनाकर रखी और कभी अपने गाने के तरीक़े में कोई घाल-मेल नहीं किया. उस वक़्त जब फ़्यूज़न का दौर चल रहा था, राशिद खान साहब ख़ालिस शास्त्रीय गायक बने रहे. 
 

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पद्मश्री से सम्मानित संगीतकार 

अब्दुल राशिद ख़ान साहब भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में एक पद्मश्री से सम्मानित हो चुके थे. वे दो सौ साल पुरानी कोलकाता की ITC संगीत रिसर्च अकादमी में गुरु का ओहदा प्राप्त था. उनको जानने वाले अक्सर कहते हैं कि अब्दुल राशिद साहब जितने अच्छे कलाकार थे, उतने ही आला उस्ताद भी थे. लगभग 1500 कॉम्पज़िशन तैयार कर चुके राशिद साहब वयोवृद्ध होने तक भी नवागत सी पुलक से भरे हुए थे. 

कई साल से व्हील चेयर से बंध जाने पर भी न उनका रियाज़ छूटा, ना ही नया करने की ललक. 18 फ़रवरी 2016 को उनकी मृत्यु पर मशहूर गुंदेचा बंधु द्वय के उमाकांत गुंदेचा ने कहा था, उस उम्र में जब संगीतज्ञ सिखाना भी छोड़ देते हैं, अब्दुल राशिद ख़ान (Abdul Rashid Khan) साहब जोश ओ खरोस से शो किया करते थे.

 

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