Book Review : स्त्री जीवन के संघर्ष का आईना है ‘इस जनम की बिटिया’ किताब की कविताएं

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 09, 2022, 08:36 PM IST

'इस जनम की बिटिया' में सरिता स्निग्ध ज्योत्सना स्त्री जगत की अथाह पीड़ा को ही सामने ला रही हैं. पढ़िए इस पुस्तक की स्मिता सिंह द्वारा की गई समीक्षा.

स्मिता सिंह

“मैंने चांद को नहीं बेचा/न ही सितारों को जमीन पर बुलाया/सपनों का सौदागर बनकर/ना ही सारी महफिल को बनाया/बदबूदार पोस्टमार्टम रूम/और की/अपनी ही स्त्री जाति की हर हत्या के बाद/उसकी लज्जा की वीभत्स चीरफाड़...”

ये पंक्तियां हैं सरिता स्निग्ध ज्योत्सना की कविता "क्रांति का महाकाव्य' कविता की. युवा कवयित्री ने अपने पहले काव्य संग्रह "इस जनम की बिटिया' में बेटी के विरोध, स्त्री के दुख-दर्द और अन्याय के खिलाफ उसकी बुलंद आवाज को भी कविताओं के माध्यम से दर्ज किया है.

एक बेटी की पिता से गुहार

कल ही की तो बात है पापा/जब रेडियो पर सुन रहे थे/ आप सेल्फी विद डॉटर्स/ मेरी प्यारी सी मम्मा के साथ.... "मौन क्यों हैं पापा' कविता की इन चंद पंक्तियों के माध्यम से एक बेटी अपने पिता से कन्या भ्रूण हत्या जैसी सड़ी-गली सामाजिक प्रथा के खिलाफ उठ खड़े होने और उसे हमेशा के लिए खत्म कर देने की गुहार लगाती है. भले ही ग्लोबलाइजेशन के दौर में स्त्रियां हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों के साथ चल रही हैं, लेकिन अभी भी समाज उन्हें अबला होने का भान करा रहा है. "पोट्रेट' कविता की पंक्तियां- एक औरत/ रात के अंधियारे में/आंखों से निकाल कर/ फैला रही थी कागज पर/अथाह पीड़ा की स्याही... स्त्री जगत की अथाह पीड़ा को ही सामने ला रही हैं. एक स्त्री यदि चाह लेती है, तो वह अपनी बात पूरी मजबूती के साथ समाज के सामने रखती है और इरोम शर्मिला जैसी स्त्रियां तो समाज में बदलाव लाकर ही दम लेती हैं. "वो सोलह साल' कविता इरोम शर्मिला के संघर्ष की गाथा कहती है.

स्त्रियों के दारुण जीवन को कविता के माध्यम से समाज के सामने लाया गया है

 शीर्षक कविता "इस जनम की बिटिया' में कवयित्री ने समाज द्वारा किए जा रहे लैंगिक भेदभाव, कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध और फिर स्त्रियों द्वारा सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की अनथक कोशिश को ही परिलक्षित किया है. दुनिया सिर्फ नकारात्मक विचारों और कृत्यों से भरी नहीं है. लड़कियों-स्त्रियों द्वारा अपने लिए तय किए गए लक्ष्य, उन्हें पूरा करने की जिजीविषा सकारात्मकता के दीप जलाती हैं. "कल्पना चावला के प्रति', "मलाला और बाबा', "नीले बॉर्डर के तले', "हारी नहीं नीरजा' आदि कविताएं लड़कियों-युवतियों को जोश से भर देने में सक्षम हैं. कविता संग्रह में बीते जमाने की ख्यातिप्राप्त अभिनेत्री मीना कुमारी को "ये चिराग बुझ रहे हैं' कविता के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की गई है. राजस्थान एवं महाराष्ट्र के कुछ गांवों में सुदूरवर्ती क्षेत्रों से पानी भरने के लिए पुरुष अलग से एक विवाह करते हैं. इस कुप्रथा पर भी "वाटरवाइफ' कविता रची गई है. ऐसी स्त्रियों के दारुण जीवन को कविता के माध्यम से समाज के सामने लाया गया है. 21 वीं सदी में आधुनिकता का दंभ भरते समाज में स्त्रियां आज भी दोयम दर्जे का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं. "आजादी का जन्मदिवस' कविता इसी की तस्दीक करती है. कविता की भाषा सरल है और पाठक मन को झकझोरने में समर्थ है.

पुस्तक: इस जनम की बिटिया

कवयित्री : सरिता स्निग्ध ज्योत्सना

प्रकाशन: लोकोदय प्रकाशन

मूल्य : 180 रुपये

(स्मिता सिंह प्रखर पत्रकार रही हैं, साथ ही उनकी साहित्यिक समझ की भी दाद दी जाती हैं. स्मिता की पुस्तक आलोचनाओं को काफ़ी सराहा जाता है)

(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

 

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