डीएनए हिंदी : राजनैतिक कैदी वरवर राव की ज़मानत याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है. नवीं मुंबई के तालोजा जेल में बंद वरवर राव राजनैतिक कैदी हैं जिनकी ज़मानत याचिका पहले कई बार ख़ारिज हो चुकी है. अस्सी वर्षीय राव Unlawful Activities Prevention Act (UAPA) के अधीन बंदी हैं. उन्हें 28 अगस्त 2018 को हैदराबाद के उनके घर से भीमा-कोरेगांव कांड में भागदारी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. आइए जानते हैं किस अपराध का आरोप है वरवर राव पर, क्या रही है उनकी पहचान और क्यों अदालत उनके ख़िलाफ़ हर बार सख़्त नज़र आती रही है?
पेशे से कवि और प्राध्यापक रहे हैं वरवर राव
1940 में तात्कालीन आंध्रप्रदेश और वर्तमान तेलांगाना के वारंगाल में जन्म लेने वाले वरवर राव कवि के तौर पर जाने जाते रहे हैं. हैदराबाद के ओस्मानिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट राव ने अपना करियर प्राध्यापक के तौर पर शुरू किया था. मार्क्सवादी विचारधारा को मानने वाले राव ने अपनी रचनाओं और कविताओं में जनसरोकारों की वकालत शुरू की. वे पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में व्यापक तौर पर लिखने लगे. 1967 में वरवर राव का राजनैतिक झुकाव बंगाल में शुरू हुए नक्सलबारी आंदोलन की ओर हुआ. इस दौरान आंध्रप्रदेश की राजनीति भी गरमाई हुई थी. यही वक़्त था जब श्रीकाकुलम के किसानों के हथियारबंद संघर्ष के बाद तेलांगना की मांग उठने लगी थी. इस दौरान वरवर राव( Varavara Rao) ने क्रांतिकारी कवियों का एक संगठन बनाया. वे पूरे आंध्रप्रदेश का दौरा करते रहे, किसानों से मिलते रहे और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करते रहे.
अब तक कई बार गिरफ़्तार हो चुके हैं राव, 1973 में हुए थे पहली बार गिरफ़्तार
1973 में आंध्र प्रदेश सरकार ने वरवर राव( Varavara Rao) को मीसा कानून (Maintenance of Internal Security Act (MISA) के तहत गिरफ़्तार किया था. वरवर राव पर आरोप था कि वे अपने लेखन के ज़रिए लोगों को हिंसा के लिए उकसा रहे थे. 1975 के आपातकाल में कांग्रेस सरकार ने उन्हें दूसरी बार गिरफ़्तार किया गया था. उनकी रिहाई 1977 में हुई थी जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई थी.
1985 में सिकंदराबाद षड्यंत्र में भी सामने आया था वरवर राव का नाम
1985 का सिकंदराबाद षड्यंत्र ये बड़ा मसला था. कुछ लोग आंध्र प्रदेश सरकार को हटाने की साज़िश कर रहे थे. इस मामले में पचास लोगों को दोषी बनाया गया था जिसमें वरवर राव( Varavara Rao) भी शामिल थे. इसके ठीक अगले साल राव का नाम आंध्रप्रदेश पुलिस के सिपाही साम्बिया और इंस्पेक्टर येडागिरी रेड्डी की हत्या के षड्यंत्र में सामने आया था. हालांकि 17 सालों बाद 2003 में उन्हें इस आरोप से बरी कर दिया गया था.
नक्सली संस्था पीपल'स वॉर ग्रुप के दूत रहे हैं राव
2005 में सरकार और माओवादियों के बीच शान्ति वार्ता करवाने के लिए राव ने पीपल'स वॉर ग्रुप के दूत की भूमिका निभाई थी. चूंकि यह वार्ता सफल नहीं हो पाई थी, राव को तत्कालीन सरकार ने जन सुरक्षा क़ानून (Public Security Act (PSA) के तहत गिरफ़्तार कर लिया था.
सभी सरकारों की आंखों में खटकते रहे हैं राव
पहली बार 1973 में गिरफ़्तार किए जाने से लेकर 2018 की गिरफ्तारी तक वरवर राव को कई बार जेल जाना पड़ा है. कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों की सरकारों ने राव पर हमेशा कड़ी नज़र रखी है. राजनैतिक हलके के भाग ने उन्हें कई बार अर्बन नक्सल कहकर भी संबोधित किया है. वर्तमान सरकार का आरोप है कि 2018 में जब भीमा कोरेगांव में भीमा कोरेगांव(Bhima Koregaon) युद्ध विजय की 200वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी, राव और उनके कुछ अन्य साथियों ने वहां हिंसा प्रायोजित करवाई जिसमें एक 16 वर्षीय लड़के की मौत हो गई थी. उसके बाद राव को आतंक निरोधी क़ानून UAPA के तहत बंदी बना लिया गया था. गौरतलब है कि यह कानून ग़ैरज़मानती है.