Mortality Rate: 36 महीने से भी कम अंतर पर पैदा होते हैं 57% बच्चे, कैसे घटेगी शिशु और मां की मृत्यु दर 

Written By अभिषेक सांख्यायन | Updated: Jul 21, 2022, 06:10 AM IST

कई शोध में सामने आ चुका है कि जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करने से मां के स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है. इसके चलते पैदा होने वाली जटिलताएं मां और शिशु, दोनों की मौत का कारण बनती हैं.

डीएनए हिंदी: एक ओर भारत में, हर साल अनुमानित 2.6 करोड़ बच्चों का जन्म होता हैं. वहीं हर एक मिनट में एक बच्चे की मौत भी हो जाती है.  तेजी से बढ़ती आबादी और देश की खराब खराब शिशु और मातृ मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण दो बच्चों की बीच उचित अंतर न होना भी है. जल्दी-जल्दी मां बनने से बच्चों और मां के  स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है. जल्दी गर्भधारण करने से गर्भावस्था के दौरान, प्रसव के वक्त और बाद में जटिलताएं पैदा हो सकती है. जिस कारण से मां और शिशु दोनों की जान पर खतरा बन आता है. 

दो बच्चों के बीच तीन साल का अंतराल क्यों जरूरी

दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने के बाद भी स्वास्थ्य मानकों जैसे मातृ मृत्यु दर (MMR) और शिशु मृत्यु दर (IMR) पर भारत का रिकार्ड अच्छा नहीं है. माँ और बच्चे दोनों की खराब सेहत के लिए पोषण की कमी, संक्रमण, पिछली डिलीवरी और असुरक्षित गर्भपात में जटिलताएं होना शामिल है. 

UNICEF के अनुसार, 2020 में भारत की शिशु मृत्यु दर (IMR) की दर 30.2 थी यानि हर 1,000 में से 30 बच्चों की मौत हो जाती है. वहीं, मातृ मृत्यु दर (MMR) की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2017-19 में भारत की मातृ मृत्यु दर 103 थी यानि 1,00,000 में से 103 माँ की मृत्यु बच्चे को जन्म देने के बाद हो जाती है. 

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यही नहीं कम अंतराल में दूसरे बच्चे को जन्म देना जोखिम को बढ़ा देता है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार एक से दूसरे बच्चे के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतराल होना चाहिए. इससे मां और शिशु दोनो स्वस्थ रहते हैं.  

57 % बच्चों के जन्म में 36 महीने से कम का अंतर  

NFHS -5 के सर्वे के अनुसार, भारत में 57 % बच्चों का जन्म 36 महीने से कम के अंतराल में हुआ. छोटी उम्र की महिलाओं की तुलना में बड़ी उम्र की महिलाओं में बच्चों के जन्म में लंबे समय का अंतराल देखा गया. 

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NFHS-5  सर्वे में यह भी पाया गया कि धनी घरों में महिलाओं ने लंबे अंतराल के बाद अगले बच्चे को जन्म दिया.  शिक्षा के आधार पर बात करे तो स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं की तुलना में 12 या अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं ने अगले बच्चे के जन्म के लिए अधिक समय लिया. 

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किशोरियों के बच्चों के अंतराल काफी कम  

NFHS -5 के सर्वे में पाया गया कि 15 से 19 साल की किशोरियों मे दो बच्चो के बीच काफी कम अंतर है. केवल 8% किशोरियां ही ऐसी है जिन्होंने दो बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतर रखा. 33% किशोरियां ने अगले  बच्चे के लिए 7 से 17 महीनों तक का ही गैप लिया.

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32% ने 18-23 महीने लिए वही 28% ने 24-35 महीने लिए, यानि कम उम्र में माँ बनी किशोरियों के बच्चों के जन्म के बीच का अंतराल काफी कम है. सर्वे के अनुसार किशोरियों में बच्चे के जन्म के बीच औसत 21 महीने का अंतराल है जो कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा सुझाए गए अंतराल से काफी कम है. 

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गांव के मुकाबले शहरों की औसत ज्यादा 

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भारत में दो बच्चों के जन्म के बीच औसत अंतराल 32.7 महीने है. NFHS -5 के सर्वे के आंकड़े बताते है कि गांव में बच्चे के जन्म में शहरों की तुलना में कम महीनो का अंतर रहता है. शहरों में जहां दो बच्चों के बीच की औसतन  36.7 महीने का अंतर होता है वही गांव में यह कम होकर 31.6 महीने ही रह जाता है. 

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