डीएनए हिन्दी: रुथ सामंथा दक्षिण भारतीय फ़िल्मों का जाना पहचाना नाम हैं. पिछले कुछ दिनों से सामंथा लगातार ख़बरों में बनी हुई हैं. अभी हाल ही में पुष्पा फ़िल्म में उनका एक नया आइटम नंबर रिलीज़ हुआ है. इस आइटम नंबर में लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ और अन्य आपराधिक मसलों को केंद्र में रखकर औरतों के ख़िलाफ़ अपराध करने वाली मानसिकता पर प्रहार किया गया है. ज़ाहिर
तौर पर यह प्रहार मर्दवादी लोगों को अच्छा नहीं लगा और जिन्हें यह अच्छा नहीं लगा वे सामंथा को ट्रोल करने लगे. उन्हें डाइवोर्सी और सेकंड हैंड माल कहा जाने लगा. कुछ लोगों ने सामंथा को नाग चैतन्य से 50 करोड़ लूटने वाली महिला तक कह डाला.
हालांकि सामंथा ने एक साधारण मगर बेमिसाल ट्वीट से अपने ट्रोल्स को चुप करा दिया. मगर यह पहली बार नहीं है जब किसी महिला स्टार को अपने बोल्ड को लेकर उसकी निजी ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव की वजह से ट्रोल किया गया हो.
जिस मानसिकता के विरोध में लिखा गया था गीत, वही मानसिकता दिखाते नज़र आये ट्रोल
पुष्पा फ़िल्म के जिस आयटम नंबर में फैमिली मैन की स्टार अभिनेत्री नज़र आ रही हैं वह गाना आदमियों के द्वारा औरतों को सामान सरीखा समझे जाने पर केन्द्रित है. यही बात मर्दवादियों को नहीं पसंद आयी. मैन एसोसिएशन ने तो सामंथा के ख़िलाफ़ लॉ सूट भी फ़ाइल कर दिया है.
क्यों करते हैं ट्रोल ऐसा?
कई रिसर्च कहते हैं कि औरतों के साथ की जाने वाली ट्रोलिंग मर्दों को सेन्स ऑफ़ एनटाइटलमेंट देती है. कई बार उनके अपने अन्दर की कुंठा ऑनलाइन निकलती है जहां पहचाने जाने का भय नहीं होता. यही कुंठा तब भी काम करती है जब कोई धोनी या विराट-अनुष्का की बच्चियों को रेप करने की धमकी देता है या किसी अन्य सोशल मीडिया पर उपस्थित औरत पर ख़राब लैंगिक हमला करता है. वे अक्सर नहीं पकड़े जाने के भाव से काम करते हैं. आश्चर्यजनक यह है कि इस ट्रोल कैटेगरी में क्लास, शिक्षा या आर्थिक पृष्टभूमि का कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता है. विराट-अनुष्का की बेटी के साथ रेप की धमकी देने वाला ट्रोल आईआईटी का पूर्व छात्र था.
तलाक़शुदा औरतों पर और तेज़ होते हैं हमले
औरत विरोधी मानसिकता के साथ काम करने वाले लोग हर उस महिला पर अधिक तेज़ी से हावी होना चाहते हैं जो तय सामजिक या मानसिक खांचे में फिट नहीं बैठती. तलाक़ को अभी भी भारतीय समाज में टैबू के तौर पर लिया जाता है और तलाक़शुदा महिलाओं को चूकी हुई, चालू या फिर शातिर शब्दावलियों से नवाज़ा जाता है. इन महिलाओं को सेकंडहैंड कहना भारतीय समाज में उपस्थित योनी से जुड़ी इज्ज़त को ही आख़िरी समझने की मानसिकता है. यह तीव्र ऑब्जेक्टीफिकेशन यानि स्त्रियों को सामान सरीखा मानने का मसला भी है.