इन्होंने कविता में पिरोई Manikarnika की वीरता, बनीं भारत की पहली महिला सत्याग्रही

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Feb 14, 2022, 04:48 PM IST

Subhadra kumari chauhan

74 साल पहले सन् 1948 में 15 फरवरी के दिन सुभद्रा कुमार चौहान ने अंतिम सांसे ली थीं. एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया था.

डीएनए हिंदी: 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.' इसे अगर हिंदी की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली कविता कहा जाए तो गलत नहीं होगा. स्कूल की किताबों से लेकर जिंदगी के रंगमंच तक बार-बार यह कविता दिलोदिमाग से टकराती है और पढ़ने वाले में जोश भर जाती है. ऐसा लगता है जैसे रानी लक्ष्मीबाई को साक्षात युद्ध लड़ते देखकर ही यह कविता लिखी गई हो.

यह खास हुनर रखने वाली कवयित्री थीं सुभद्रा कुमारी चौहान. 74 साल पहले सन् 1948 में 15 फरवरी के दिन सुभद्रा कुमार चौहान ने अंतिम सांसे ली थीं, मगर उनकी यह कविता शायद ही कभी हिंदी साहित्य और लोगों के दिलों से दूर हो पाएगी.

नौ साल की उम्र में पहली कविता
16 अगस्त 1904 को प्रयागराज के निहालपुर गांव में सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म हुआ था. उनकी पढ़ाई जिस स्कूल में हुई थी वहीं हिंदी की मशहूर कवयित्री महदेवी वर्मा भी पढ़ती थीं. सुभद्रा कुमारी उनकी सीनियर थीं. सुभद्रा कुमारी चौहान के बारे में बताया जाता है कि नौ साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी. शीर्षक था- नीम. उनकी पढ़ाई सिर्फ 9वीं कक्षा तक ही हुई. बताया जाता है कि वह घोड़ा गाड़ी में बैठकर रोज स्कूल जाती थीं और इस दौरान भी लगातार लिखती रहती थीं. 

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16 साल की उम्र में शादी
16 साल की छोटी सी उम्र में ही सुभद्रा कुमारी चौहान का विवाह खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ कर दिया गया. विवाह के बाद सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति लक्ष्मण सिंह 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने. इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा.  बताया जाता है कि उस दौर में सुभद्रा कुमार चौहान सत्याग्रह में भाग लेने वाली चुनिंदा महिलाओं में थी. उन्हें भारत की पहली महिला सत्याग्रही के तौर पर भी जाना जाता है. 

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स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका
जेल जाने के बाद भी सुभद्रा कुमारी चौहान का संघर्ष रुका नहीं. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना जारी रखा. जेल से रिहा होने के बाद सन् 1942 में वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुईं. स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, सुभद्रा कुमारी चौहान का संघर्ष भारत की आजादी के दिन तक जारी रहा. आजादी के एक साल बाद ही 15 फरवरी 1948 को मध्य प्रदेश में एक कार दुर्घटना में उनका निधन हुआ था.
 
कविता संग्रह

'झांसी की रानी' कविता के अलावा उनके कुछ चर्चित कविता संग्रह हैं- खिलौनेवाला, मुकुल, ये कदम्ब का पेड़. उनकी एक लघु कथा हींगवाला भी काफी चर्चित रही.

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