(वरिष्ठ पत्रकार विमल कुमार की याद में जुगनू शारदेय)
बिहार में हिंदी पत्रकारिता की लंबी परम्परा रही है. बिहार बन्धु अखबार के केशव राम भट्ट से लेकर बिहार के निर्माता सच्चिदान्द सिन्हा राजेन्द्र प्रसाद और आचार्य शिवपूजन सहाय और राम बृक्ष बेनीपुरी तक वहां के लेखकों पत्रकारों ने अपनी भूमिका निभाई है.
आजादी के बाद सर्च लाइट इंडियन नेशन और आर्यावर्त जैसे अखबारों और एजेंसी के पत्रकारों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन जब धर्मयुग और दिनमान निकला तो हिंदी पत्रकारिता का दायरा सोच बढ़ा. एक नई दृष्टि विकसित हुई. सत्तर के दशक में बिहार के तीन चार हिंदी पत्रकारों की राष्ट्रीय पहचान बनी थी जिनमें सूर्यनारायण चौधरी और रामजी मिश्र मनोहर के साथ सुरेंद्र किशोर और जुगनू शारदेय भी थे. ये सभी समाजवादी पृष्ठ भूमि से थे. साहित्य प्रेमी लोग थे. बेहद ईमानदार.
जुगनू जी की शुरुआत
जुगनूजी तो रेणु जी की सोहबत में पत्रकार बने थे. धर्मयुग में रेणु पर जो चर्चित लेख छपा था वह जुगनू जी का था. तब हम लोग स्कूल में पढ़ते थे. बाद में जुगनू से मेरा तब परिचय हुआ जब वे अक्सर मेरे दफ्तर यूनीवार्ता आने लगे थे. उनके पुराने मित्र अरुण केसरी हमारे सहयोगी थे. वे उनसे ही मिलने आते थे. वे हमारे दफ्तर के लोगों से बहुत घुलमिल गये थे. कई लोग तो समझते थे कि वे यूएनआई में ही काम करते थे क्योंकि दिन रात वहीं मिलते थे.
जुगनूजी दरअसल उस दौर के पुरस्कार थे जब अरुण रंजन भी प्रकाश में नहीं आये थे. तब लालू नीतीश सुशील मोदी छात्र नेता थे. जे पी आंदोलन का समय था. तब पटना में दिल्ली के अखबारों की धमक शुरू नहीं होती थी.
जुगनू जी के बारे में प्रसिद्ध था कि वे मुँहफट है और किसी की माँ बहन भी कर सकते हैं लेकिन जब भी वे मुझसे मिले अदब से मिले. लेकिन राजनेताओं को वेअक्सर गालियां देते थे.
जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने जुगनूजी को वन्य जीव एवम पर्यावरण बोर्ड का प्रमुख बना दिया था जो मंत्री स्तर का दर्जा था . तब हम लोग यही कहते थे कि नीतीश से उनकी अधिक दिनों तक नहीं पटेगी और वे उनके साथ अधिक दिन नहीं टिक पाएंगे. अंत में हम लोगों की आशंका सही साबित हुई. कुछ दिन बाद वे मेरे दफ्तर
में मिले . तब उन्होंने बताया कि उन्होंने नीतीश से रिश्ता तोड़ लिया है. वे बहुत देर तक नीतीश की तीखी आलोचना करते रहे. हम लोगों ने समझ लिया कि उनकी खटपट नीतीश सेभी हो गयी है.
जुगनू जी कभी दिल्लीतो कभी पटना तो कभी कहीं रहते थे. उनके सामने आजीविका की हमेशा समस्या थी पर नियमित आय का साधन नहीं था. उनका व्यक्तित्व बहुत अराजक किस्म का था.
बेबाक- बेधड़क
बेबाक. बेधड़क . वे किसी की चापलूसी नहीं करते थे. वे बड़े आत्मस्वाभिमानी थे. वे पुराने किस्म के पत्रकार थे आज़ाद पंछी की तरह थे. विष्णु नागर ने शुक्रवार में जुगनू से स्तम्भ लिखवाया. उन्होंने कई तीखी टिप्पणियां लिखी पर शुक्रवार में भी उन्होंने लिखना छोड़ दिया. कुछ दिन वह भाजपा के राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा की पत्रिका में काम करते रहे. उन्हें बिहार के सभी राजनीतिज्ञ जानते थे चाहे वे राजद के हों या जदयू या भाजपा या कांग्रेस के. यह सच है कि जुगनू ने कभी जीवन में समझौता नहीं किया. वे सिगरेट के बड़े शौकीन थे. हमेशा उनकी उंगलियों में कोई सिगरेट होती थी. मेरा दफ्तर उनका अड्डा था. कई बार वह गायब हो जाते थे . फिर अचानक प्रकट हो जाते थे.
रेणु जी कीरचनावली में रेणु नेआलोक धन्वा और जुगनू जी का जिक्र किया है. मैनें रेणु जी पर कई कार्यक्रम किये तो उनको बोला कि वे बोलें पर तकनीकी जानकारी के अभाव में वे ऑनलाइन कुछ कर नहीं सके. यह अफसोस हम दोनों को रह गया. कोविड के कारण कोई उनसे जाकर इंटरव्यू भी नहीं ले सकताथा.
जुगनू जी जैसे पत्रकार कम होते है. फक्कड़ ग़ैर दुनियादार विद्रोही जिद्दी अडियल. . उन्होंनेअपने इस स्वभाव के कारण खुद को ही नष्ट भी किया .
जब उनके निधन की खबर मिली तो मैं भी थोड़ा उदास हुआ. उनसे अधिक परिचय नहीं था लेकिन उनकी एक स्मृति मेरे मन में कैद जरूर है.
(यहाँ दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)