डीएनए हिंदी: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने आज देश के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले ली है. इस दौरान उनकी संथाली साड़ी की भी काफी चर्चा रही. यह साड़ी सफेद रंग की थी. इस पर भगवा और हरे रंग का बॉर्डर बना था. बताया गया कि यह साड़ी उन्हें उनकी भाभी ने तोहफे में दी थी. इसी के साथ संथाली साड़ियों को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है. जानते हैं ये साड़ियां कैसे बनती हैं, इनकी कितनी कीमत होती है और कैसे ये साड़ी अन्य साड़ियों से अलग होती हैं. यह भी बता दें कि संथाल परंपरा के अनुसार खास मौकों पर संथाल साड़ी पहनना शुभ माना जाता है.
कैसे बनती हैं संथाली साड़ियां
संथाली साड़ी को बुनकरों द्वारा बनाया जाता है. बुनकर अपने हाथ से सफेद कॉटन के कपड़े पर रंगीन धागों से इन साड़ियों को तैयार करते हैं. पारंपरिक रूप से इन्हें हैंडलूम पर तैयार किया जाता रहा है. अब इन्हें मिल में भी तैयार किया जाने लगा है.
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कैसे अलग होती हैं संथाली साड़ियां
इनके दोनों छोरों पर एक जैसा डिजाइन होता है. यह डिजाइन आमतौर पर धारियों के रूप में होता है. हालांकि समय बदलने के साथ अब इस डिजाइन में फूल और पक्षियों का आकार भी शामिल हो गया है. ये साड़ियां शुरुआती समय में सिर्फ संथाल परगना क्षेत्र में ही पहनी जाती थीं. धीरे-धीरे अब यह झारखंड और उड़ीसा के अलावा मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों में भी पसंद की जाने लगी हैं.
क्या है संथाली परंपरा में इन साड़ियों का महत्व
संथाल परंपरा से गहरे तक जुड़ी रहीं कलाकार और लेखिका प्रीतिमा वत्स बताती हैं कि इन साड़ियों का संथाल परंपरा में बहुत महत्व है. किसी भी खास अवसर पर इन साड़ियों को जरूर पहना जाता है. इन्हें तीन पंछी साड़ी भी बोलते हैं, क्योंकि इनका बेस सफेद रंग का होता है और इन पर ज्यादातर हरे औऱ नीले रंग का बॉर्डर होता है. हालांकि अब समय में बदलाव के साथ बॉर्डर पर अलग-अलग प्रिंट के डिजाइन भी बनाए जाने लगे हैं.
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जानें कितनी है साड़ी की कीमत?
हाथ से बनने वाली संथाली साड़ियों की कीमत 1 हजार रुपये से शुरू होती है. अब तेजी से मांग बढ़ने की वजह से इन्हें मशीन पर भी बनाया जाने लगा है जिससे इनकी कीमत कई जगह कम भी हो जाती है. महामहिम के इस साड़ी को पहनने के बाद इस साड़ी की मांग में और तेजी आने की उम्मीद भी जताई जा सकती है.
इस फैशन डिजाइनर ने दी संथाली साड़ियों को अलग पहचान
कुछ साल पहले की बात है फैशन डिजाइनर लिप्सा हेमब्रेम (Lipsa Hembram) ने उनकी मां को साड़ी की लंबाई पर परेशान होते देखा. उनकी शिकायत थी कि पारंपरिक संथाली साड़ी की लंबाई बहुत कम होती है और उसमें खुरदरापन होता है. बस यहीं से लिप्सा को Galang Gabaan का आइडिया आया. सन् 2014 में उन्होंने NIFT से डिग्री लेने के बाद अपना खुद का लेबल लॉन्च किया. इसके साथ उन्होंने संथाली साड़ियों को एक अलग फ्लेवर के साथ पेश किया.अब भुवनेश्वर में ये संथाली साड़ियां कॉटन, लिनेन और सिल्क जैसी वैरायटी में भी तैयार होती हैं और देश भर में भेजी जाती हैं.
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