Ganesh Chaturthi 2022: जब पहली बार मनाया गया था गणेश उत्सव, घबरा गए थे अंग्रेज, जरूर पढ़ें ये दिलचस्प किस्सा

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Aug 31, 2022, 08:10 AM IST

Story of first time celebration of ganpati utsav in india

Freedom Struggle of India: आज गणपति जी को घर लाने की तैयारियां जोर-शोर से हो रही हैं. मोदक, मिष्ठान, आरती, मंत्र और उत्सव को लेकर भी हर ओर शानदार माहौल है. मगर क्या आप जानते हैं कि इस माहौल की और इस उत्सव को इस स्तर पर मनाने की शुरुआत कैसे हुई? किसने की?

डीएनए हिंदी: गणपति के नाम से ही किसी भी शुभ काम की शुरुआत होती है.गणपति विघ्नहर्ता हैं. गणपति को मोदक बेहद पसंद हैं. गणपति ही हमारी धार्मिक आस्था का वह केंद्र हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को माता-पिता के चारो ओर समेट दिया था. और आज गणेश चतुर्थी के दिन से गणपति उत्सव शुरू हो चुका है. यह उत्सव दस दिन तक यानी अनंत चतुर्दशी तक चलेगा. ये सभी बातें हर गणपति भक्त को पता ही होंगी. मगर क्या आप जानते हैं कि गणपति जी हमारे देश की आजादी की लड़ाई में भी शामिल थे. ये भी कहा जा सकता है कि गणेश उत्सव मनाने की शुरुआत ही आजादी की जंग के दौरान हुई थी. पढ़िए क्या है ये दिलचस्प कहानी-

बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी गणेशोत्‍सव की नींव
इतिहास के कुछ पन्ने बताते हैं कि गणेशोत्‍सव मनाने की शुरुआत ही उस दौर में हुई थी जब हम अंग्रेजों से देश को आजाद कराने की लड़ाई लड़ रहे थे. इसकी शुरुआत की थी आजादी की जंग के अहम नायक लोकमान्‍य बाल गंगाधर तिलक ने. उस दौर में आजादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रहा हर व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर देश की जनता को एकजुट करने के तरीके सोचता था. इसके लिए कई बार धार्मिक मार्ग भी चुने गए. इसी में से एक था गणपति उत्सव की शुरुआत.

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महाराष्‍ट्र में पेशवा पहले से ही गणपति पूजा किया करते थे. ये बात जानते हुए ही बाल गंगाधर तिलक ने इस उत्सव को सिर्फ पेशवाओं के घरों तक सीमित ना कर सार्वजनिक रूप से मनाने का सोचा. बस फिर क्या था सन् 1893 में गणेश उत्सव धूमधाम से सार्वजनिक रूप में मनाया गया. 

कई नेताओं ने गणेशोत्सव का विरोध भी किया
गणेशोत्‍सव की शुरुआत करने के लिए बाल गंगाधर तिलक को काफी विरोध सहना पड़ा था. एक तरफ लाला लाजपत राय, बिपिनचंद्र पाल और अरविंदो घोष ने उनका साथ दिया तो दूसरी तरफ व्योमेशचंद्र बनर्जी, दादाभाई नौरोजी, गोपालकृष्ण गोखले इत्यादि ने उनका विरोध किया. इन नेताओं को डर था कि इस उत्सव के चलते दंगे हो सकते हैं. हालांकि बाल गंगाधर तिलक ने अपने कदम पीछे नहीं खींचे और सार्वजनिक रूप से बेहद जोर-शोर के साथ गणेश उत्सव मनाया गया जो अब और भी ज्यादा लोकप्रिय हो चुका है. 

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...और जब घबरा ही गए थे अंग्रेज
उस वक्त अंग्रेजों की तरफ से सार्वजनिक जगहों पर लोगों के मिलने, बातचीत करने पर रोक लगा दी गई थी. ऐसे में गणेश उत्सव लोगों को एकजुट करने के साथ ही सार्वजनिक मीटिंग का भी एक जरिया बना. कहा जाता है कि उस समय गणेशोत्‍सव ने वर्धा, नागपुर और अमरावती जैसे शहरों में आजादी का एक बड़ा जनआंदोलन छेड़ दिया था. इससे अंग्रेज घबरा भी गए थे.उस वक्त यह छोटा ही सही लेकिन अंग्रेजों की चूल हिलाने का एक अहम जरिया भी बना. आज भी गणेश उत्सव देश भर में हर जाति के लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुका है. 

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