Sidhu Moose Wala: लॉरेंस बिश्नोई कैसे बना गैंगस्टरों का मसीहा? जानें पाकिस्तानी आतंकियों के गुर्गे बिश्नोई के विदेशी नंबरों की पूरी कहानी 

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 27, 2022, 02:02 PM IST

sidhu moose wala: लॉरेंस बिश्नोई हर काम के लिए नाबालिगों को ही चुनता था. इसके पीछे भी एक खास वजह है. नाबालिग पर लॉरेंस ज्यादा जोर इसलिए देता था कि वो पकड़े जाएं तो जुवेनाइल एक्ट में कार्रवाई हो और जल्दी जेल से बाहर भी आ जाएं. पढ़ें अमित भारद्वाज की स्पेशल रिपोर्ट.

डीएनए हिंदीः उत्तरी भारत के इलाकों में गन कल्चर को बढ़ावा देकर गैंग लैंड बनाने वालों में सबसे बड़ा नाम गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) का है. लॉरेंस इतने फूल प्रूफ तरीके से यह काम कर रहा है कि उसके खिलाफ सबूतों को ढूंढने में जांच अधिकारियों को एक लंबा वक्त लग जाता है और उसका नेटवर्क इतना मजबूत है कि वो जेल के अंदर बैठ बैठे ही बड़े कारनामों को अंजाम दे देता है. आज हम लॉरेंस के नेटवर्क के पीछे के रहस्य से पर्दा उठाने जा रहे है और आपको बताएंगे की किस तरह लॉरेंस ने अपना नेटवर्क इतना स्ट्रांग किया और उसने कैसे बिना किसी मशक्त के अपना इतना बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया. 

हम आपको बता दें कि यह पूरी पुख्ता जानकारी है जो हमें सूत्रों के माध्यम से मिली है जिन्होंने लॉरेंस से पूछताछ कर हमें गैंगस्टर के पूरे नेटवर्क कहानी बताई है. लॉरेंस से पूछताछ करने वाले आधिकारिक सूत्रों ने हमें बताया कि लॉरेंस के पास खूब दौलत है. वह जेल के अंदर जो कपड़े और जूते पहनता है उनकी कीमत लाखों में है और उसे पता है कि पैसे के माध्यम से ही वह क्राइम की दुनिया का बादशाह बन सकता है. लॉरेंस का पारिवारिक नेटवर्क भी काफी स्ट्रांग है जो राजनैतिक और पुलिस तंत्र के कई बड़े लोगों से जुड़ा हुआ है. यह कहानी लॉरेंस के क्राइम की दुनिया में आने की है जो कुछ साल पुरानी ही है. आपको बता दें कि लॉरेंस काफी शातिर अपराधी है इसलिए वो जो काम करता है उसके पुख्ता सबूत मिटाता है. वह सारे काम किसी और के माध्यम से करता है.  

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कैसे बना गैंगस्टर 
चंडीगढ़ से क्राइम की दुनिया में लॉरेंस ने शुरुआत में छोटी मोटी लड़ाईयां की और कुछ जगहों पर गोलियां चला कर उसने अपनी पहचान बनाई. चंडीगढ़ के क्लबों में जाकर बाउंसर और मालिकों को धमाकर वह अपना नाम बनाने लगा. उसके बाद जब वह उत्तरी भारत के जिलों की जेलों में आपराधिक गतिविधियों के सिलसिले में जेलों में रहने लगा. उसने सोशल मीडिया के माध्यम से अपना डर अलग अलग क्षेत्रों में कायम करना शुरू किया. सबसे पहला काम उसने यह किया कि 2 मोबाइल टेलीफोन नंबर थाईलैंड और मलेशिया से मंगवाए और उन नम्बरों का स्कूल, कॉलेज, डांस क्लबों उन सभी जगहों पर उसका प्रचार कराया जो युवाओं से जुड़ी हुई है और जहां युवाओं का जमावड़ा लगता है. 

युवाओं में बढ़ती गई फैन फॉलोइंग
इसके बाद कई जगहों पर उसके क्राइम के किस्से सुनने के बाद उसके सोशल मीडिया पेज पर युवाओं की फैन फॉलोइंग बढ़ने लगीं और लॉरेंस की टीम ने उनमें से चुनिंदा नाबालिग युवकों को लॉरेंस के पर्सनल नंबर भेजने शुरू कर दिए. यह वही नम्बर थे जो विदेशों से मंगवाए गए थे. इस पर वो भाई भाई के मैसेजेज भेज कर लॉरेंस से जुड़ने की बातें लिखते तो लॉरेंस कुछ दिनों बाद इन युवकों को अपने लोगों को बोलकर पिस्तौल और 6-7 गोलियां दिलवा देता था. कम उम्र के युवाओं के पास अगर हथियार आ रहे थे. कुछ दिन अपने स्कूलों और कॉलेजों में इस गन का जलवा दिखाकर खूब मस्ती की. इन नाबालिगों ने कई जगह हवा में फायरिंग करने के बाद जब गोलियां ख़त्म तो यह फिर से गोलियां लेने के लिए मैसेज भेजने लगे. इस बार हथियारों और गोलियों की क़ीमत होती है और यह कीमत होती है की लॉरेंस के कहे अनुसार किसी की गाड़ी या उसके घर बाहर हवा में गोलियां चलाना.

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क्यों नहीं मिल पाता सबूत 
लॉरेंस गैंग से गोलियां लेने के बाद यह उसी के आदेश पर काम भी करते थे. अगर किसी जगह इनकी पहचान हो भी गई तो सीधे लॉरेंस के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिल पाता था. ये सभी लोग लॉरेंस के नाम पर अपराध करते थे और कहा जाता था कि यह लॉरेंस शूटर्स है. किसी भी घटना के समय ना तो लॉरेंस मौके पर होता था और ना ही वह किसी भी तरह से सबूत छोड़ता था. इसलिए उसे किसी भी अपराध में सीधे फंसाना आसान नहीं था. 

कहां से आते थे हथियार 
लॉरेंस ने जिन विदेशी नंबरों को फैलाया था उसी से माध्यम से किसी हथियार सप्लायर से संपर्क हो जाता था. लॉरेंस के लोग मैसेज के जरिए नए संपर्क में आए युवकों तक फोन के माध्यम से पहुंचते थे. हथियार सप्लायर का नंबर देकर दोनों को एक जगह बुलाया जाता था. इसके बाद हथियारों की डिलीवरी कराई जाती थी. बता दें कि हथियार सप्लायर का विश्वास लॉरेंस पर इसलिए बना हुआ है कि जहां लॉरेंस ने 2 हथियारों को ख़रीदना होता है वो वहां  50 हथियारों को ख़रीदता है क्योंकि लॉरेंस के पास खर्च करने के लिए पैसा ख़ूब है. पूछताछ में लॉरेंस ने बताया कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी यू पी, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों के गांव-गांव में उसने अपना नेटवर्क खड़ा किया. 

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नाबालिगों को ही क्यों चुना जाता?
लॉरेंस बिश्नोई हर काम के लिए नाबालिगों को ही चुनता था. इसके पीछे भी एक खास वजह है. नाबालिग पर लॉरेंस ज्यादा जोर इसलिए देता था कि वो पकड़े जाएं तो जुवेनाइल एक्ट में कार्रवाई हो और जल्दी जेल से बाहर भी आ जाएं. दूसरी वजह ये कि नए-नए लड़कों में खून गर्म होता है उनमें काफी जोश होता है साथ ही नए लड़के हाथ में हथियार पकड़ने को हमेशा बेताब रहते थे और यही वजह है कि हथियारों के लालच में जो भी उनसे कहा जाए, वो करने को राजी हो जाते हैं.  

सोशल मीडिया के माध्यम से करता था संपर्क 
लॉरेंस अपना सारा काम सोशल मीडिया के माध्यम से कोड वर्ड में करता था. एक दूसरे से संपर्क के लिए सिग्नल, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम और फेसबुक का इस्तेमाल किया जाता. टेलीग्राम पर बात करना सेफ है कि नही, इसके लिए कोड जेनरेट होता. जैसे काल्पनिक नाम संपत ने मीतू को (..) दो डॉट भेजे तो सामने से 3 डॉट (…) आने चाहिए. अगर 2 या 4 डॉट आए तो इसका मतलब  की बात करना अभी सेफ नहीं है. इसके अलावा बातचीत के लिए वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (VoIP) की मदद ली जाती थी. VoIP कॉल को ट्रैस करना मुश्किल होता है क्योंकि आईपी एड्रेस लगातार चेंज होता रहता है और लॉरेंस और उसके गुर्गों को इसमें महारत हासिल थी. 

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