डीएनए हिंदीः देशभर में इन दिनों आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है. अलग-अलग तरीके से कई समारोहों का आयोजन किया जा रहा है. सरकारी संस्थानों और स्मारकों को तिरंगे की रोशनी में जगमगाया जा रहा है. हालांकि ताजमहल (Tajmahal) में किसी भी तरह की रोशनी नहीं की गई है. इतने बड़े मौके पर भी यह स्मारक अंधेरे में डूबा हुआ है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब देशभर के सभी संरक्षित स्मारकों को रोशनी से जगमगाया जा रहा है तो ताजमहल को क्यों इससे दूर रखा गया है. इसके पीछे एक खास वजह है.
द्वितीय विश्व के बाद हुई थी सबसे पहले लाइटिंग
ताजमहल को सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समय दूधिया रोशनी से नहलाया गया था. तब पहले द्वितीय विश्व युद्ध में जीतने पर मित्र देशों की सेनाओं ने ताजमहल को रात में न केवल फ्लड लाइट से रोशन किया, बल्कि अंदर जश्न भी मनाया था. ताजमहल देश का पहला स्मारक था, जिस पर रात में रोशनी की गई थी. 8 मई, 1945 को मित्र देशों की सेनाओं के सामने जर्मनी की सेना ने आत्मसमर्पण किया था. उस दिन को मित्र देशों ने वीई डे के नाम से मनाया. यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना हर साल वीई डे मनाती है. इसी दिन ताज महल पर फ्लड लाइटें डाली गईं थीं.
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आखिरी बार कब हुई ताजमहल पर लाइटिंग
ताजमहल पर आखिरी बार लाइटिंग 20 से 24 मार्च 1997 की रात को की गई थी. तब प्रसिद्ध यूनानी पियानोवादक यान्नी के शो के दौरान रोशनी से जगमगाया गया था. ताजमहल के पीछे ग्यारह सिड्डी स्मारक के पास विश्व प्रसिद्ध यूनानी संगीतकार यान्नी ने शो किया था. तब वहीं से ताज पर रंग बिरंगी फ्लड लाइटें डाली गई थीं. इस कार्यक्रम को भारत समेत विश्व के कई देशों में लाइव दिखाया गया था. इस कार्यक्रम से ताजमहल का जादू विश्व पर्यटन पर ऐसा चला कि ताजमहल आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में ऐतिहासिक बढ़ोतरी देखने को मिली.
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क्यों बंद हो गई ताजमहल पर लाइटिंग
दरअसल यान्नी के कार्यक्रम के अगले दिन ताजमहल के परिसर में कई कीड़े मरे हुए मिले. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसका रासायनिक सर्वे कराया. इसकी जांच में सामने आया कि इन कीड़ों के कारण ताजमहल पर कीड़ों के निशान रह जाते हैं. इससे ताजमहल के संगमरमर को नुकसान होता है. इसी के बाद ताजमहल पर लाइटिंग को बंद कर दिया गया. कई मौकों पर लाइटिंग के लिए इजाजत मांगी गई लेकिन इसे मंजूरी नहीं दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 1998 के आदेश में स्पष्ट कर दिया था कि ताजमहल की 500 मीटर की परिधि में कोई भी कार्यक्रम ताजमहल के पर्यावरणीय परिवेश पर पड़ने वाले प्रभाव का पूर्व अध्ययन कराए बिना नहीं हो सकेगा. इतना ही नहीं ताजमहल की दीवार पर नेशनल इन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) की सिफारिश के अनुसार 50 डेसीबल से अधिक ध्वनि नहीं होनी चाहिए. यान्नी के कार्यक्रम के दो साल बाद 1999 में जी टीवी के कार्यक्रम ‘सारेगामापा’ की ताजमहल के पीछे मेहताब बाग में शूटिंग की गई. इस कार्यक्रम के लिए भी ताजमहल में लाइटिंग की इजाजत मांगी गई थी लेकिन इसे मंजूरी नहीं दी गई. हालांकि इस कार्यक्रम ने भी देसी पर्यटकों को काफी आकर्षित किया था.
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