किसी भी थाने में FIR दर्ज करा सकती है बलात्कार पीड़िता, इलाज से लेकर मुआवजे तक ये हैं 5 अधिकार

हिमानी दीवान | Updated:Jul 26, 2022, 05:43 PM IST

Rights of Rape Victim

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में अविवाहित महिला या रेप पीड़िता के अधिकारों से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है. इसी के साथ यह जानकारी अहम हो गई है कि आखिर संविधान की तरफ से रेप पीड़िता को क्या अधिकार दिए गए हैं. बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट में वकील अनमोल शर्मा-

डीएनए हिंदी: केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बेहद अहम फैसला सुनाया है. इस फैसले के अनुसार बच्चों के किसी भी डॉक्यूमेंट में अब पिता का नाम दर्ज होना जरूरी नहीं है. केवल मां के नाम से भी डॉक्यूमेंट को पूरी तरह वैध माना जाएगा. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि अविवाहित माताओं के बच्चे और बलात्कार पीड़िता के बच्चे भी इस देश में निजता, स्वतंत्रता और गरिमा के मौलिक अधिकारों के साथ रह सकते हैं. कोई भी उनके निजी जीवन में दखल नहीं दे सकता है और अगर ऐसा होता है तो इस देश का संवैधानिक न्यायालय उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करेगा. इसी के साथ अब यह जानना भी जरूरी है कि आखिर बलात्कार पीड़िता को संविधान में क्या अधिकार मिलते हैं-

1) Zero FIR का अधिकार
Zero FIR में कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कर सकता है. इसमें यह मायने नहीं रखता है कि घटना कहां की है. एफआईआर की जांच शुरू करने के लिए बाद में संबंधित पुलिस स्टेशन में मामला ट्रांसफर कर दिया जाता है. मान लीजिए दिल्ली में किसी लड़की के साथ रेप की घटना हुई और तब उसने किसी को कुछ नहीं बताया. बाद में वह कानपुर चली गई तो वह चाहे तो कानपुर में किसी भी पुलिस स्टेशन में इस मामले की एफआईआर करा सकती है. वही एफआईआऱ बाद में कानपुर पुलिस द्वारा ट्रांसफर कर दी जाएगी. इस मामले में सन् 2013 में गृह मंत्रालय ने एडवाइजरी भी जारी की थी. इसके मुताबिक ऐसे किसी भी मामले में अगर कोई पुलिस स्टेशन एफआईआऱ दर्ज नहीं करता है तो उसे IPC की धारा 166ए के तहत परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. ऐसे में छह महीने से लेकर 2 साल तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. 

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2) किसी भी निजी अस्पताल में मुफ्त इलाज
सीआरपीसी की धारा 357सी के तहत कोई भी निजी या सरकारी अस्पताल रेप पीड़िता के इलाज के लिए फीस नहीं मांग सकता है. सभी अस्पतालों को निर्देश है कि वह पीड़ित तो तुरंत उपचार उपलब्ध कराएं. यदि कोई अस्पताल ऐसी स्थिति में फीस की मांग करता है तो आईपीसी की धारा 166बी के तहत उसे एक साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों भरना होगा. 

3.) उत्पीड़न मुक्त और समयबद्ध जांच
सीआरपीसी की धारा 154(1) के तहत केवल महिला पुलिस अधिकारी द्वारा बयान दर्ज किया जाएगा. महिला अधिकारी पीड़िता के माता-पिता या अभिभावक की उपस्थिति में ही बयान दर्ज करेगी. 

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4) गरिमा और सुरक्षा के साथ परीक्षण
पीड़िता के चरित्र पर सवाल नहीं किए जाएंगे. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53ए में कहा गया है कि पिछले यौन इतिहास से संबंधित कोई भी प्रश्न अप्रासंगिक है. सीआरपीसी की धारा 327 (3) के तहत पीड़िता द्वारा मजिस्ट्रेट को दिया गया बयान गोपनीय होगा. सीआरपीसी की धारा 173 (1ए) के तहत सूचना दर्ज होने की तारीख से दो महीने के भीतर जांच पूरी की जाएगी. अदालत द्वारा पीड़िता को सुरक्षा दी जाएगी ताकि कोई भी पीड़ित और गवाह को धमकी ना दे सके. साथ ही यह भी पुलिस की जिम्मेदारी है कि वह पीड़िता को घर से अदालत ले जाए और सुनवाई के बाद घर छोड़कर आए. 

5) मुआवजे का अधिकार
सीआरपीसी की धारा 357 ए के रूप में एक नया प्रावधान पेश किया गया है, जो पीड़ित मुआवजा योजना बताता है. इस योजना के तहत कम से कम 4 लाख रुपये और अधिकतम 7 लाख रुपये मुआवजे के रूप में दिए जाएंगे. यदि न्यायलय को लगता है कि पीड़ित को मुआवजे के रूप में दी गई राशि अपर्याप्त है तो अदालत स्थिति के अनुसार राशि बढ़ा सकती है.

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