Independence Day 2022: अंग्रेज पहली बार भारत कब, कहां और क्यों आए, जानें हर सवाल का जवाब

Written By कुलदीप सिंह | Updated: Aug 11, 2022, 03:45 PM IST

Independence Day 2022 : देश अपनी स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लालकिले से तिरंगा फहराएंगे. भारत तो यह आजादी करीब 200 सालों तक अंग्रेजों की गुलामी के बाद मिली थी. अंग्रेज पहली बार भारत में कब और कहां आए इसकी शायद आपको जानकारी नहीं होगी. 

डीएनए हिंदीः देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ (Independence Day 2022) मना रहा है. भारत को यह आजादी अंग्रेजों के करीब 200 सालों की गुलामी के बाद मिली. भारत ने अपनी आजादी के लिए लम्बी लड़ाई हुई. हजारों क्रांतिकारियों की इस लड़ाई में मौत हुई. इस वर्ष भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण कर रहा है जिसके उपलक्ष्य में हम आजादी का अमृत महोत्सव पर्व मना रहें हैं. क्या आपको पता है कि अंग्रेज पहली बार भारत कब और क्यों आए थे. कैसे उसका पूरे भारत पर राज हो गया. इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं...

ब्रिटेन की कैसे पड़ी भारत पर नजर 
16वीं सदी में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. इसके पीछे वजह थी कि दुनिया के कुल उत्पादन का एक चौथाई माल सिर्फ भारत में तैयार होता था. दिल्ली में तब मुगल बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर की हुकूमत थी. अकबर की गिनती उस दौर में दुनिया के सबसे दौलतमंद बादशाहों में होती थी. यहां तक कि चीन में भी उससे अमीर कोई बादशाह नहीं था. वहीं उसी दौर में ब्रिटेन गृहयुद्ध से जूझ रहा है. उस समय ब्रिटेन की पूरी अर्थव्यवस्था खेतीबाड़ी पर निर्भर थी और दुनिया के कुल उत्पादन का महज तीन फीसद माल वहां तैयार होता था. ऐसे में महारानी एलिजाबेथ प्रथम की नजर भारत की ओर टिक गई. तब यूरोप की प्रमुख शक्तियां पुर्तगाल और स्पेन, व्यापार में ब्रिटेन को पीछे छोड़ चुकी थीं, ऐसे में ब्रिटेन की नजर भारत पर टिकी थी. 

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ब्रिटेन को मिली भारत की समृद्धि की जानकारी
उसी दौर में ब्रिटेन का घुमंतू व्यापारी था राल्फ फिच. यह हिंद महासागर, मेसोपोटामिया, फारस की खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया की व्यापारिक यात्राएं करता था. इसी दौरान उसे भारत की समृद्धि के बारे में पता चला. राल्फ फिच की ये यात्रा इतनी लंबी थी कि ब्रिटेन लौटने से पहले उन्हें मृत मानकर उनकी वसीयत को लागू कर दिया गया था. जब वह अपने देश पहुंचे तो उनका सबकुछ खत्म हो चुका था और वह भारत के साथ व्यापार करने के लिए कंगाल हो चुके थे. इसके बाद 31 दिसंबर 1600 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को ईस्ट इंडीज के साथ व्यापार करने के लिए ब्रिटिश सम्राज्ञी एलिजाबेथ प्रथम से एक रॉयल चार्टर प्राप्त हुआ था. इसके बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई. 

दुनिया जान चुकी थी भारत की समृद्धि
दरअसल ईस्ट इंडिया कंपनी से पहले पूर्वी एशिया के एक समुद्री मार्ग से 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा का आगमन हुआ. यहीं से भारत और यूरोप के बीच एक समुद्री मार्ग खोजा गया था, इस यात्रा में वास्कोडिगामा का सहयोग अब्दुल मजीद ने किया था, इसके बाद से ही भारत में यूरोप का व्यापार शुरू हो गया. हालांकि इस दौर में व्यापार करना काफी चुनौती भरा था. समुद्री लुटेरों का खतरा तो था ही साथ ही यात्रा में महीनों का समय लगता था. हालांकि भारत में उस दौर में भी ऐसे उत्पाद तैयार किए जाते थे जिसके लिए दुनियाभर के देशों की नजर भारत पर टिकी हुई थी.  

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सबसे पहले कहां आए अंग्रेज? 
अंग्रेजों का सबसे पहले आगमन भारत के सूरत बंदरगाह पर 24 अगस्त 1608 को हुआ. अंग्रेजों का उद्देश्य भारत में अधिक से अधिक व्यापार करके यहां से पैसा हड़पना था. 1615 ईसवी में जहांगीर के शासनकाल में 'सर टॉमस रो' को अंग्रेजों ने अपना राजदूत बनाकर जहांगीर के दरबार में भेजा. सर टॉमस रो जहांगीर से कुछ व्यापारिक छूट पाने में सफल हो गए. हालांकि कहा जाता है कि इसके लिए जहांगीर से कई लुभावने वादे भी किए गए थे. इसी के बाद से ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे पूरे भारत में पैर फैलाने शुरू कर दिए. अंग्रेज भारत से ही पूरे यूरोप में व्यापार करने लगे. यूरोपीय देशों के मध्य भारत में मसालों के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने की होड़ सी लग गई.  

कैसे बनी ईस्ट इंडिया कंपनी?
भारत के उत्पाद और समृद्धि को ब्रिटेन के व्यापारी समझ चुके थे. दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के साथ व्यापार करने के लिए 1600 ई. में जॉन वाट्स और जॉर्ज व्हाईट द्वारा ब्रिटिश जॉइंट स्टॉक कंपनी की स्थापना की गई. इसी को ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता है. शुरुआत में इस जॉइंट स्टॉक कंपनी के शेयरधारक मुख्य रूप से ब्रिटिश व्यापारी और संमृद्ध वर्ग के लोग थे और ईस्ट इंडिया कंपनी का ब्रिटिश सरकार के साथ कोई सीधा संबंध नहीं था. हालांकि बाद में सूरत बंदरगाह पर  सर थॉमस रो (जेम्स प्रथम के राजदूत) की अगवाई में अंग्रेजों को सूरत में कारखाना स्थापित करने के लिए शाही फरमान प्राप्त हुआ. । इसके बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी को मद्रास में अपना दूसरा कारखाना स्थापित करने के लिए विजयनगर साम्राज्य से भी इसी प्रकार का शाही फरमान प्राप्त हुआ था.

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ब्रिटेन ने बढ़ाया अपना साम्राज्य
उस दौर में भारत में कई और देशों की भी व्यापारिक कंपनियां मौजूद थी लेकिन ब्रिटेन ने कूटनीति से इन कंपनियों को भारत से खदेड़ दिया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के सभी तट जैसे कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास और अन्य जगहों पर ब्रिटिश संस्कृति को बढ़ाना शुरु कर दिया. उस दौर में अंग्रेज रेशम, नील, कपास, चाय और अफीम का व्यापार करते थे. इसके अलावा मसालों के लिए भारत पहले से ही दुनिया में पहचान बना चुका था.  

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अंग्रेजों ने कैसे किया कब्जा?
दरअसल करीब 150 सालों पर भारत में व्यापार करने के बाद अंग्रेज समझ चुके थे कि भारत के लोग सामाजिक और आर्थिक तौर के अलावा राजनीतिक तौर पर एक दूसरे से मतभेद रखते हैं. इसी का अंग्रेजों ने फायदा उठाने की कोशिश शुरू कर दी. 1750 के दशक तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था. सबसे पहले अंग्रेजों ने भारत में कलकत्ता में अपनी ताकत का इस्तेमाल किया. 1757 में प्लासी की लड़ाई में रॉबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित कर दिया था. इसी में जीत मिलने के साथ ही भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित हो गया था. भारत कलकत्ता ही भारत की राजधानी था. हालांकि भारत के लोगों को भी धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी के सोच समझ आनी शुरू हो गई थी. जब ईस्ट इंडिया कंपनी अपना अधिकार बनाने लगी तो 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन या 1857 के विद्रोह को देखा गया. इसी के ठीक एक साल बाद 1858 में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत हो गया था. अंग्रेजों ने भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी की विदाई कर दी और ब्रिटिश क्राउन का भारत पर सीधा नियंत्रण हो गया.  

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