Sri Lanka Crisis: श्रीलंका की तरह इन देशों के बड़े नेताओं को भी दूसरे देश की लेनी पड़ी शरण
Sri Lanka Crisis: पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्रियों के देश छोड़कर जाने का सिलसिला पुराना है. यहां कई बेनजीर भुट्टो से लेकर नवाज शरीफ तक कई पीएम ने विदेश में शरण ली.
डीएनए हिंदीः श्रीलंका में आर्थिक संकट (Sri Lanka Crisis) के बीच राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rakapaksa) परिवार समेत देश छोड़कर जा चुके हैं. देर रात वह सेना के एंटोनोव-32 विमान से मालदीव के लिए रवाना हो गए. उनके इस्तीफे की खबर भी सामने आई है. इसी बीच श्रीलंका में इमरजेंसी (Sri Lanka Emergency) का ऐलान कर दिया गया है. बता दें कि प्रदर्शनकारियों ने पहले राष्ट्रपति आवास और इसके बाद प्रधानमंत्री ऑफिस पर भी कब्जा कर लिया. श्रीलंका में जैसे हालात इस वक्त हैं वैसा दुनिया के कई देशों में पहले भी हो चुका है. कई तानाशाहों को भी सत्ता परिवर्तन के बाद देश छोड़ना पड़ा है.
तालिबानियों से बचने के लिए अशरफ गनी ने ली यूएई की शरण
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान के कब्जे के बाद सत्ता तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) के हाथ से निकल गई. जैसे-जैसे तालिबान का काबुल पर कब्जा बढ़ता गया अफगानिस्तान के कई मंत्रियों और वीवीआई ने देश छोड़ दिया. तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी यूएई में शरण ली. उनके देश छोड़कर भागने के फैसले की काफी आलोचना हुई. यह भी आरोप लगा कि वह अपने साथ भारी मात्रा में कैश लेकर गए हैं. हालांकि गनी ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि वह काबुल के लोगों की जान बचाने और हिंसा को टालने की वजह से देश छोड़कर गए हैं.
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बेनजीर भुट्टो ने दुबई और लंदन में ली थी शरण
पाकिस्तान (Pakistan) की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो (Benazir Bhutto) के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को जनरल जिया उल हक ने उनके पद से हटाकर फांसी पर लटका दिया था. पिता के निधन के बाद बेनजीर भुट्टो काफी समय तक लंदन में रहीं. उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए लंदन में रणनीतिक और राजनीतिक महत्व का इस्तेमाल किया. बेनजीर 35 साल की उम्र में ही पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी थी. 1988 में वह पहली बार चुनाव जीतकर पीएम बनी. 1990 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. 1993 में बेनजीर फिर से पीएम बनी लेकिन 1996 में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. इस पर उन्हें जेल जाना पड़ा और जब जेल से बाहर आईं तो उन्हें देश छोड़ना पड़ा. वह दोबारा लंदन चली गईं. कुछ समय के लिए वह दुबई में भी रहीं. साल 2007 में बेनजीर वापस पाकिस्तान लौट आईं. वह दोबारा चुनाव लड़ना चाहती थीं. प्रचार के दौरान उन्होंने आतंकी संगठनों पर जमकर निशाना साधा था. दिसंबर 2007 में चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें गोली मार दी गई. हमलावर ने खुद को भी उड़ा लिया था.
नवाज शरीफ ने सऊदी और यूएई में ली शरण
साल 1999 में पाकिस्तान के तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) की सरकार का तख्ता पलट कर दिया. इसके बाद पाकिस्तान की सेना ही शरीफ के खून की प्यासी हो गई थी. उस समय दुनिया का कोई भी देश नवाज शरीफ को शरण देने के लिए तैयार नहीं था. ऐसे में सऊदी अरब ने शरीफ को पनाह दी. इसके बाद लंबे समय तक वह सऊदी में रहे. 2013 में हालात बदले और वह दोबारा पाकिस्तान के पीएम बने. 2017 तक वह पाकिस्तान के पीएम रहे. इस दौरान सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हें दोबारा देश छोड़ना पड़ा. अब लंबे समय से वह लंदन में रह रहे हैं.
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पाकिस्तान के तानाशाह परवेज मुशर्रफ को भी छोड़ना पड़ा देश
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) को भी देश छोड़कर जाना पड़ा था. 1999 में परवेज मुशर्रफ ने सैन्य तख्तापट किया था. परवेज मुशर्रफ पर 3 नवंबर, 2007 को पाकिस्ता में इमरजेंसी लगाने का आरोप लगा. मामला कोर्ट तक पहुंचा. इस मामले में परवेज मुशर्रफ के खिलाफ को सत्ता परिवर्तन के बाद दिसंबर 2013 में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था. परवेज मुशर्रफ को 31 मार्च, 2014 को देशद्रोह का दोषी ठहराया गया था. परवेज मुशर्रफ इलाज के बहाने 18 मार्च 2016 को दुबई चले गए. पहले उन्होंने इलाज के बाद देश लौटने का वादा किया था लेकिन गिरफ्तारी के डर से उन्होंने पाकिस्तान वापस आने से इनकार कर दिया.
बेलारूस में स्वेतलाना तिख़ानोव्सक्या ने दी थी तानाशाह राष्ट्रपति को कड़ी टक्कर
सत्ता परिवर्तन और राजनीतिक विद्रोह के कारण देश छोड़ने वाले नेताओं में सिर्फ एशिया के देश ही शामिल नहीं है. यूरोप के भी कई देशों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. अगस्त 2020 में बेलारूस (Belarus) में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए. पिछले 28 साल से लेबारूस में राष्ट्रपति अलेग्जेंडर लुकाशेंको (Aleksandr Lukashenko) की सत्ता है. उन्हें यूरोप का आखिरी तानाशाह भी कहा जाता है. लुकाशेंको के खिलाफ विपक्षी उम्मीदवार के तौर पर स्वेतलाना तिख़ानोव्सक्या (Sviatlana Tsikhanouskaya) खड़ी थीं. उन्होंने लुकाशेंको पर धोखे से चुनाव जीतने का आरोप लगाया. कुछ ऐसा ही रूझान एग्जिट पोल में भी दिखा था. इसी के बाद लुकाशेंको के खिलाफ लोगों ने लड़क पर उतर प्रदर्शन शुरू कर दिया. लोगों ने राजधानी मिंस्क के मध्य इलाकों में 'मार्च फॉर फ्रीडम' यानी आज़ादी मार्च निकाला. 37 साल की स्वेतलाना ने अपने जेल में बंद पति सर्गेई तिख़ानोव्सक्या की जगह चुनाव लड़ा था. उनके पति को उम्मीदवार के तौर पर खड़ा होने से रोक दिया गया था. लोगों के विरोध के बाद लुकाशेंको ने स्वेतलाना के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी. जैसे ही इसकी जानकारी स्वेतलाना को मिली, उन्होंने पड़ोसी देश लिथुआनिया में शरण ले ली.
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युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन को भी छोड़ना पड़ा देश
युगांडा में पूर्व तानाशाह ईदी अमीन (Idi Amin) ने राष्ट्रपति के तौर पर आठ साल तक राज किया. इस दौरान उसके आतंक से जनता परेशान रही. उस पर पांच लाख से अधिक लोगों का कत्ल कराने का आरोप लगा है. ईदी अमीन युगांडा की सेना और एयरफोर्स का मुखिया रहा. उनसे 1971 में मिल्टन ओबोटे को सत्ता से बेदखल कर अफ्रीकी देश को अपने कब्जे में ले लिया. इसे अमीन की तानाशाही ही कहें कि उसने खुद को युगांडा का राष्ट्रपति, सभी सशस्त्र बलों का प्रमुख कमांडर, आर्मी चीफ ऑफ स्टाफ और चीफ ऑफ एयर स्टाफ घोषित कर दिया. अमीन के खिलाफ लोगों में विरोध लगातार बढ़ता जा रहा था. 1979 में तंजानिया और युगांडा में अमीन विरोध सेना ने धावा बोला. इसमें अमीन की तानाशाही का अंत हो गया. अमीन को 'मैड मैन ऑफ अफ्रीका' भी कहा जाता था. उसके इंसानी मांस खाने के भी सबूत मिले. अमीन को देश छोड़ने के बाद लीबिया की शरण लेनी पड़ी.
नेपाल के राजा त्रिभुवन वीर शाह देव ने ली थी भारतीय दूतावास की शरण
भारत का पड़ोसी देश नेपाल भी राजशाही के खात्मे को लेकर बड़ा आंदोलन देख चुका है. जिस समय भारत में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा थी उसी दौरान नेपाल में राजशाही का खात्मा करने के लिए आंदोलन शुरू हुआ. इसी दौरान नेपाल कांग्रेस पार्टी का जन्म हुआ. इसी दौरान इधर भारत स्वतंत्र हुआ तो नेपाल में सशस्त्र विद्रोह होने लगा. 18 फरवरी 1951 को नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना कर दी गई. उस समय नेपाल के राजा त्रिभुवन वीर शाह देव और उनके बेटे महेन्द्र बीर बिक्रम शाह देव ने विद्रोहियों से छिपने के लिए भारतीय दूतावास की शरण ली. उस दौरान नेपाल में भारत की ओर से सर सीपीएम सिंह राजदूत थे.
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